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महापारणा महोत्सव
मुनि प्रसन्नसागर ने 186 दिनो का मौन व्रत ॐ के उच्चारण के साथ तोडा
तपस्या और साधना के उत्सव का साक्षी बना बाडा पदमपुरा
नरेंद्र अजमेरा,पियुष कासलीवाल/ पदमपुरा
Jain Star News Network | January 18,2018
जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर जिले में दिगंबर जैन मंदिर बाड़ा पदमपुरा अतिशय क्षेत्र कठोर तप करनेवाले मुनि प्रसन्नसागर
का महापारणा महोत्सव हुआ। महोत्सव मे श्रध्दा का ऐसा सैलाब उमडा कि मंदिर परिसर पांडाल ही नही,पार्किग तक मे खडे रहने की जगह नही मिली। जयपुर शहर वासी ही नही देश भर से जैन श्रध्दालु महोत्सव मे शामिल हुए। राष्ट्र संत मुनि तरुण सागर महाराज के सानिध्य व मुनि पियुष सागरजी महाराज व गनिणी आर्यिका गौरवमती माताजी ससंघ निर्देशन मे महामंगल पारणा एवं निष्ठापन समारोह में मुनि प्रसन्नसागर ने अपना 186 दिनो का मौन व्रत ॐ के उच्चारण के साथ तोडा।
महोत्सव का मार्गदर्शन सौम्यमुर्ती पियुष सागरजी ने किया तथा निर्देशन बालब्र्रम्हाचारी तरुण भैया इंदौर ने किया । कार्यकम यशस्वी करने के लिए प्रबंध समिती श्री.दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा बाडा,सकल दिगंबर जैन समाज जयपुर आदि के साथ सुधिरकुमार जैन अध्यक्ष, हेमन्त सौगानी मानद मंत्री, राजकुमार कोठयारी कोषाध्यक्ष आदी के साथ सभी समाज बांधव ने विशेष प्रयत्न किए। पारणा महोत्सव पर मुनिश्री के जीवन पर आधारीत 16 विशेष अको का विमोचन नरेंद्र अजमेरा,पियुष कासलीवाल,दिनेश जैन कलकत्त्ता,विवेक जैन,राजा बाबु जैन फागी,आदि के हाथो संपन्न हुआ ।
समारोह के दौरान चातुर्मास निष्ठापन के तहत पदमपुरा मे चातुर्मास के तहत पदमपुरा मे चातुर्मास करनेवाले अंतर्मना मुनि प्रसन्नसागर महाराज,मुनि पियुष सागर महाराज व गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी ससंघ सहित राष्ट्र संत मुनि तरुण सागर महाराज की पिच्छिका परिवर्तन भी हुआ ।
राष्ट्रीय संत मुनि तरुण सागर महाराज ने कहां कि भगवान महावीर स्वामी के बाद अंतर्मना मुनि प्रसन्नसागर पहले संत है जिन्हाने मौन रहकर 186 दिन की निर्जल उपासना की है।. भगवान महावीर स्वामी ने 365 दिन की मौनसाधना की थी,उनके बाद मुनि प्रसन्नसागर से ऐसे दुसरे संत है जिन्होने 186 दिवस का मौन व्रत पालन किया ।उन्होने उपासना के दौरान प्रतिदिन मंदिर की 111 परिक्रमा की. 200 मंत्र जाप माला फेरी उनके इस तप का अर्थ महावीर स्वामी की निकट को प्राप्त करना है ।मुनि की इस कठोर उपासना ने देश मे नया संदेश दिया है कि महावीर स्वामी के समय जो कठोर साधना होती थी. वही आज के संत भी कर रहे है. अंतर्मना मुनि प्रसन्नसागर महाराज की 186 दिवसीय साधना आज देश दुनिया और समाज के गौरव और धर्म मे सम्मान की साधना रही है। यह देश मे ज्यादा नही तो कुछ युवाओ मे परिवर्तन अवश्य लेकर आएगी ।
*सभी तरह की समस्याओ का समाधान केवल मौन - अंर्तमना प्रसन्नसागर
अंतर्मना प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि सारी समस्याओ का समाधान मौन मे है, जब भी बोले सोच समझकर बोले.उन्होने कहा, साधना और लक्ष्य प्राप्ती के लिए पब्लिक से दुर रहे साधना की पराकाष्ठा पर लोग अपने आप आपके पास आते है. परिग्रह संत की साधना व आत्म उपलब्धि मे बाधक है. उन्होने बताया उनके गुरु ने अपने 50 साल के सन्यास मे 10000 उपवास किए. उनकी प्रेरणा से ही मैने 186 दिवसीय सिंह मौन व्रत साधना की उल्लेखनीय है कि मुनि प्रसन्नसागर ने 30जुन से 10 जनवरी तक सिर्फ 32 दिन ही भोजन किया है. बाकी समय निर्जला रहे है ।
*समारोह में ये भी हुए शामिल
महोत्सव मे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, पुर्व विधानसभा अध्यक्ष चंद्रराज सिंघवी, अभा.दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष निर्मल सेठी, समाज सेवी चिरंजी लाल बागडा, पुर्व भाजपा प्रदेश सचिव सुनिल कोठारी, भाजपा जयपुर शहर अध्यक्ष संजय जैन, डायरेक्टर जनरल बॉर्डर सुरक्षा सेना के.के. शर्मा, श्रीपाल भागचंद चुडीवाला, प्रदिप चुडीवाला, नरेंद्र पाटणी, दिनेश पापडीवाल,प्रविण बडजात्या, राजकुमार सेठी, विवेक गंगवाल कोलकाता, औरंगाबाद से न्या.कैलास चांदीवाल,पंचायत के अध्यक्ष ललीत पाटणी, उपाध्यक्ष विनोद लोहाडे, विश्वस्थ महेंद्र ठोले,बिल्डर संजय कासलीवाल,अॅड.अनिल कासलीवाल,उदयोगपती चंद्रकुमार पाटणी, सहमंत्री दिलीप कासलीवाल,प्रचार प्रसार संयोजक नरेद्र अजमेरा,पियुष कासलीवाल,नितीन सेठी,सचिन बडजाते,सतिश सेठी,ज्योती सेठी,प्रविण लोहाडे, रुपाली बडजाते, काश्मिरा लोहाडे, वर्धमान कासलीवाल, जिनेद्र कासलीवाल, पैठण के महामंत्री विलास पहाडे आदि के साथ औरंगाबाद,पैठण,बॅगलोर,चेन्नई,बिहार, कोलकाता, राची, दिल्ली, धुलियान, लालगोला, मुंबई, नागपुर, इंदौर,जयपुर आदी शहरो से भक्तगन इस पारणा महोत्सव के उपस्थित हुए थे।
महोत्सव का दिप प्रज्वलन श्रीमती.सरीता जी.एम.के जैन अध्यक्ष भारतवर्षीय तिर्थक्षेत्र कमिटी चेन्नई इन्होने किया।पादपक्षालन श्रीमान महावीर कुमार,संजुकुमार,संदिपकुमार बडजात्या परिवार कोलकाता ने किया,मुनिश्री को पिच्छी प्रदान करने का सौभाग्य श्रीमान तिलोकचंद-आचीदेवी,संजय,संगीता,डॉ.पंकज,डॉ.रश्मी एवं समस्त सेठी परिवार किशनगंज बिहार को प्राप्त हुआ,शास्त्र भेट श्रीमान अमितकुमार दर्शना बडजात्या मुंबई के हाथो संपन्न हुआ। पारणा महोत्सव के प्रसादी के दाता श्रीमान मिश्रीलालजी-फुलीदेवी,महेशकुमार,मंजुदेवी गंगवाल परिवार रांची तथा गणेशजी राणा जयपुर अंतर्मना त्रिवर्षीय संघपती अंलंकरण ठाकुरगंज निवासी श्रीमती.तेजीदेवी मुकेश-हरिता,देवेश एवंम समस्त ठोलीया परिवार चेन्नई इनको प्राप्त हुआ.अंतर्मना स्वर्णजयंती महोत्सव अध्यक्ष अलंकरण श्रीमान अमित,दर्शना बडजात्या मुंबई,अंर्तमना स्वर्णजयंती शिरोमणी गौरव तिलक श्रीमान नरेंद्र कुमार नितीनजी जैन दिल्ली आदी का चयन इस महोत्सव मे किया गया।.गुरुपाद पुजा करने का सौभाग्य मुन्नालाल-रिता,पियुष पहाडिया लेक टाउन कोलकाता एवंम श्रीमान शांतीलाल - सुमित्रा देवी अजय सरावगी परिवार कोलकाता को प्राप्त हुआ।
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महापारणा महोत्सव
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तपस्या और साधना के उत्सव का साक्षी बना बाडा पदमपुरा
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महापारणा महोत्सव
मुनि प्रसन्नसागर ने 186 दिनो का मौन व्रत ॐ के उच्चारण के साथ तोडा
तपस्या और साधना के उत्सव का साक्षी बना बाडा पदमपुरा
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महापारणा महोत्सव
मुनि प्रसन्नसागर ने 186 दिनो का मौन व्रत ॐ के उच्चारण के साथ तोडा
तपस्या और साधना के उत्सव का साक्षी बना बाडा पदमपुरा
प्रतिभाओं को दिये गये ‘तथास्तु भव एवार्ड-2017’
भारत निर्माण में प्रतिभाओं का योगदान अपेक्षित: डाॅ. हर्षवर्धन
बरुण कुमार सिंह/नई दिल्ली,15 जनवरी 2018
Jain Star News Network | January 18,2018
स्वयंसेवी संगठन तथास्तु भव ने चिन्मय मिशन आॅडोटोरियम में आयोजित भव्य समारोह में देश के व्यावसायियों, संस्कृतिकर्मियों, फिल्मकारों, समाजसेवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, उद्यमियों, खिलाड़ियों, चिकित्सकों, शिक्षा शास्त्रियों, पर्यावरणविदों, लोक कलाकारो को ‘तथास्तु भव एवार्ड समारोह-2017’ से सम्मानित किया गया। समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात जैन संत मुनिश्री जयंतकुमार ने की, जबकि मुख्य अतिथि विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन थे।
मुनिश्री जयंतकुमार ने कहा कि एक स्वस्थ समाज की संरचना में संत, संस्कृति और संस्कार का बहुत बड़ा योगदान है। प्रगति के साथ-साथ अहिंसा बहुत जरूरी है। अहिंसा सभी स्तरों पर मार्गदर्शक बने, मापदण्ड बने तभी देश का संतुलित विकास संभव है। भौतिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का समन्वय जरूरी है। तथास्तु भव एक स्वयंसेवी संगठन है जो संतुलित समाज निर्माण के लिए कृतसंकल्प है। जिसने देश की प्रतिभाओं को आगे लाने और सम्मानित करने का उल्लेखनीय उपक्रम किया है। एक प्रगतिशील समाज में प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जाना स्वस्थ परम्परा है। आज सबसे बड़ी अपेक्षा यह है कि प्रतिभाओं का मूल्यांकन करना सीखें। यह कार्य राजनीति के आधार पर संभव नहीं है। इसके लिए संतपुरुषों एवं संस्कृतिकर्मियों को जागरूक होना होगा।
मुनिश्री जयंत कुमार ने तथास्तु भव को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज के युग में भी कुछ चुनिंदा लोग ऐसे हैं जो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हित के लिए कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोगों को सम्मानित करना तथास्तु भव की तरफ से अच्छी पहल है।
केन्द्रीय मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने कहा कि एक नये भारत को निर्मित करने में अनेक प्रतिभाओं का योगदान अपेक्षित है। इसके लिए पूर्व में भी प्रयास होते रहे हैं और इस तरह का वातावरण बनाने में अनेक प्रतिभाओं और महापुरुषों ने खून-पसीना बहाकर इतिहास लिखा है। वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से भारत विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय गति कर रहा है। जितना हमने आधुनिकता और टेक्नोलाॅजी को बढ़ाया है उतना ही अब हमें संस्कृति को बल देना है। तथास्तु भव जैसे आयोजन संस्कृति को नया आयाम देने वाले उपक्रम है।
केन्द्रीय मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने कहा कि आज भागदौड़ भरी जिंदगी के बावजूद भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में बेहतरीन कार्य कर रहे हैं और लोगों की वाह-वाही बटोर रहे हैं। बिना किसी चीज की परवाह किए वे सामाजिक कार्य कर रहे हैं, राष्ट्रीयता को समृद्ध बना रहे हैं। डाॅ. हर्षवर्धन ने आगे कहा कि हम बेहद भाग्यशाली हैं जो हमें भारत जैसे देश में जन्म लेने का मौका मिला है क्योंकि यहां शुरू से लेकर आज तक संतों की परंपरा चलती आ रही है। मैं आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ के नैतिक एवं चरित्रमूलक कार्यक्रमों में सहभागी बनता रहा हूं और उन्हीं के परम्परा के मुनिश्री जयंतकुमार भी समाज निर्माण का अच्छा कार्य कर रहे हैं। वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की चेयरपर्सन किरण चोपड़ा के बारे में उन्होंने कहा कि पिछले काफी वर्षों से किरण चोपड़ा बुजुर्गों के लिए निःस्वार्थ कार्य कर रही हैं जो काबिले तारीफ है। इस कार्यक्रम में तथास्तु भव के अध्यक्ष अतर सिंह चैधरी, प्रसिद्ध मीडिया पर्सनालिटी और तथास्तु भव की ट्रस्टी अजीता जैन, सुखी परिवार फाउंडेशन के राष्ट्रीय संयोजक ललित गर्ग, एनआईए के डीआईजी आनंद जैन सहित कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
मुनिश्री जयंतकुमार के सान्निध्य में मुख्य अतिथि केन्द्रीय मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने ‘तथास्तु एवार्ड-2017’ सामाजिक उत्थान के लिए इम्पैक्ट गुरु के सीईओ-पीयूष जैन, क्लासिकल डांसर-शालू जिंदल, मीडिया पर्सनालिटी-रमा पांडे, शिक्षा से जुड़े एनजीओ की प्रमुख-स्नेहा मिस्रान, सामाजिक भागीदारी के लिए-सिद्धार्थ वशिष्ठ चेरिटेबल ट्रस्ट, अभिनेता, गायक एवं संगीत निर्देशक-मिलंद गाबा, महिला क्रिकेटर-सुषमा वर्मा, पहलवान-विकास कुमार डागर, शिक्षाविद्-मनीत जैन, व्यवसायी-हीरालाल गेलड़ा, कलाकार-अन्नु कालरा, मेक इन इंडिया को बढ़ावा देनी वाली-स्मिता श्रीवास्तव, सामाजिक कार्यकर्ता-गौरव गुप्ता, अभिनेता-करण आनंद, सामाजिक कार्यकर्ता-पारूल महाजन, स्टार्टअप लीडर-जावेद अली आदि को उनके विविध क्षेत्रों में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए मोंटेटों एवं प्रशिस्त पत्र देकर सम्मानित किया गया। संस्था के अध्यक्ष श्री अतर सिंह चैधरी ने तथास्तु भव के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यह स्वयंसेवी संगठन सेवा और परोपकार के विभिन्न कार्यों के साथ-साथ राष्ट्र की विभिन्न प्रतिभाओं को सम्मानित करने का उपक्रम करता है।
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प्रतिभाओं को दिये गये ‘तथास्तु भव एवार्ड-2017’
भारत निर्माण में प्रतिभाओं का योगदान अपेक्षित: डाॅ. हर्षवर्धन
बरुण कुमार सिंह/नई दिल्ली,15 जनवरी 2018
Jain Star News Network | January 18,2018
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प्रतिभाओं को दिये गये ‘तथास्तु भव एवार्ड-2017’
भारत निर्माण में प्रतिभाओं का योगदान अपेक्षित: डाॅ. हर्षवर्धन
बरुण कुमार सिंह/नई दिल्ली,15 जनवरी 2018
Jain Star News Network | January 18,2018
बिमारी की जड़ - पकड़
By -आगमवेत्ता साध्वी वैभवश्री जी ‘आत्मा’
क्या आप जानना चाहोगे? सभी बिमारियों की जड़ है - कब्ज़ और कब्ज़ का मानसिक कारण है - पकड़। पुराने की पकड़।
यह पकड़ ही है जो आदमी को कंजूस बना देती है। अक्सर कंजूस प्रवृत्ति वाले लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं, जिन्हें अचेतन में कहीं न कहीं यह भय होता है कि अगर वे पुराने की पकड़ छोड़ देंगे और उन्हें नया नहीं मिला तो वे क्या करेंगे? वे पुराने रिश्तों को, पुरानी बातों को, यादों को, इकट्ठे किए हुए पदार्थों को, वस्तुओं को सदा संग्रहीत करते जाते हैं। उन्हें छोड़ने का उनका मन ही नहीं होता। यहाँ तक कि जो वस्तुएँ Out Of Date हो चुकी है, उन्हें भी छोड़ने का मन नहीं करता। जो पेन स्याही भरे जाने के काबिल नहीं रहे, टूट-फूट गए, तब भी ‘वे सुन्दर तो दिखते हैं,’ ‘कभी बहुत महंगे रहे हैं’, इस सोच के कारण भी उसे फेंकना नहीं चाहते। कई लोग वर्षों से अलमारी में पड़े कपड़ों को फैंकने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे शायद कभी काम आ सकते हैं। वे खुद पर कुछ भी खर्च करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कभी संकट के समय पैसों की ज़रूरत पड़ सकती है, तब क्या होगा? कई लोग वर्तमान की अर्हता पर भरोसा ही नहीं कर पाते, इसीलिए सदा भूत से ही चिपके रहते हैं। वर्तमान के जीवन में अगर कुछ भी करना या पाना चाहेंगे तो उन्हें फिर से नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और चूंकि वे अपने भूत में बहुत चुनौतियाँ झेल चुके हैं, और अब पुनः कोई नई चुनौती नहीं चाहते। अतः वे पुरानी कहानियों को ही बार-बार दोहराए जाते हैं और नए ताज़गी भरे वातावरण से मुँह चुराते जाते हैं।
इस तरह पुराने की पकड़ की यह मानसिक सोच शारीरिक तंत्र पर भी लागू होने लगती है और वे बीमारी के कारणों को जाने बिना सदा कब्ज़ी की शिकायत किए चले जाते हैं। जिन्हें कब्ज़ की शिकायत बहुत ज्यादा रहती है, अक्सर वे भरोसे की क्षमता से विहीन या कमज़ोर आस्था वाले लोग होते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें पर्याप्त धन, पर्याप्त साधन, पर्याप्त सम्मान नहीं मिलेगा। इसीलिए आज तक उन्होंने जो भी धन, मान, पद-प्यार पा लिया है, वे उसी को अपने दिलों-दिमाग में बसाए हुए जीते चले जाते हैं। कई लोग हैं, जो खुद की पकड़ छोड़ना ही नहीं चाहते, कभी खुद को खुशियाँ भी नहीं दे पाते, सदा आशंकित बने रहते हैं। ऐसे लोग, जो खुद से प्यार व जीवन के बदलते प्रवाह को स्वीकार नहीं कर पाते, वे कब्ज के मरीज़ बनकर अन्य अनेक बीमारियों को भी न्यौता दे डालते हैं।
किसी अनुभवी ने कहा है कि जैसे हम आज का भोजन पाने के लिए पिछली रात के कूड़े को नहीं खंगालते हैं, उसी प्रकार हमें आज का दिन जीने के लिए पुराने की पकड़ बनाने की ज़रूरत नहीं है, वरन् आज की उपलब्धियों पर भरोसा करने की ज़रूरत है। जीवन का प्रवाह सदा वर्तमान में गतिमान है। वह कभी पीछे की ओर नहीं जाता। अतः खुद को मानसिक तौर से पीछे धकेलने की आदत छोड़िए और प्रवाह के साथ लयबद्ध बनिए।
आत्मज्ञानी श्री विराट गुरूजी का कहना है कि-
जो अतीत को छोड़ने का पुरूषार्थ करता है,
वह धार्मिक है
व जो पकड़ बनाए रखता है, वह अधार्मिक है।
हमारी हर ज़रूरत पूरी होती ही है और जो पूरी नहीं होती है तो वह पूरी होने योग्य नहीं होगी, ऐसा सोचिए और स्वयं को लययुक्त कीजिए तो आपको ना तो मानसिक कब्ज़ रहेगी, ना ही शारीरिक। याद रहे, सब रोगों की जड़ कब्ज़ है, जो बढ़ गई तो हार्ट अटैक तक का कारण बन सकती है।
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