News in Hindi
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*19/01/18* दक्षिण भारत मे मुनि वृन्द, साध्वी वृन्द का सम्भावित विहार/ प्रवास
दर्शन सेवा का लाभ लें
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री धर्मरूचि जी ठाणा 4* का प्रवास
*Tarakh niwas*
1-11-27 1st floor
Laksmi Nager Shivajipalam विशाखापट्नम
☎8890269128,9884901680
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी* *के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ठाणा* 2 का प्रवास *Shree Jain Swetamber Terapanth sabha*
No 5 Thalayattam Bazzar
Near police station *Gudiyattam* Tamilnadu
☎9003789485,9150179971
9488921371
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*शान्तीलाल जी मारू के निवास स्थान हुँसुर* (कर्नाटक)
☎9448385582
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*Sobhag Mal ji Saand*
49,sinivasan street
*CUDDALORE-2* (तमीलनाडु)
☎8107033307,9443421378
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य डॉ *मुनि श्री अमृत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*हनुमान मन्दिर*
*पंचवटी* (तमिलनाडु)
☎9786805285,9566296874
9655117000,9655118000
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*Jain Bhawan*
TD Road Near Convent in
*ERNAKULAM* (केरला) ☎9672039432,7907269421
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितिय' ठाणा ५* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*KGF* (कर्नाटक)
☎8890788495
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या "शासन श्री" साध्वी श्री यशोमती जी ठाणा 4* का प्रवास
*चिलकपालायम टोलगेट से 13km का विहार करके रणस्थलम हाई स्कुल पधारेगे*
Bhubaneswar se Visakhapatnam highway
☎7297958479,9025434777
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा ५* का प्रवास
*तेरापंथ सभा भवन*
*गॉधीनगर बैगलौर*
☎7624946879.22912735
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास
*North Town Apartment*
Binny Mill Villa No 10
*Chennai*
☎9962649649,9380361000
9841036201
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*जैन भवन*
114/48, Big Street (Periya Teru),
*Vadivishwaram,Nagercoil*
(तमिलनाडु)
☎9629840537
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*बल्लारी* (कर्नाटक)
☎7230910977,8830043723
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*हासन*
☎9601420513,
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मघुस्मिता जी ठाणा 7* का प्रवास
*कन्हैयालाल जी गिड़िया* के निवास स्थान पर
*कुमारापार्क बैगलौर*
(कर्नाटक)
☎7798028703,9731333388
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प्रस्तुति:- 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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Terapanth Sangh Samvad
News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".
👉कोलकत्ता - बने श्रेष्ठ अभिभावक
👉 राजाजीनगर - "डर के आगे जीत है" कार्यशाला का आयोजन
👉 विजयनगर - प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षण व प्रेक्षाध्यान लेवल 1 की परीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉 KGF - ट्रिपल- एम कार्यशाला का आयोजन
👉 इंदौर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते कदम
👉 K.G.F - बने सर्वश्रेष्ठ अभिभावक कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*
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👉 दिल्ली: *श्रीमती मोहिनी देवी भंसाली द्वारा "तिविहार संथारे" का प्रत्याख्यान*
प्रस्तुति: 🙏🏻तेरापंथ *संघ संवाद*🙏🏻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 240* 📝
*संस्कृत-सरोज-सरोवर आचार्य समन्तभद्र*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
*रत्नकरण्ड श्रावकाचार* श्रावकाचार संबंधी यह उत्तम ग्रंथ है। इसके सात अध्याय और 150 पद्य हैं। ग्रंथ की शैली सरस है और भाषा अर्थगरिमा से पूर्ण है, सरल है, सुबोध है, गुणरत्नों से भरा पिटारा है, अतः इस ग्रंथ का नाम रत्नकरण्ड उपयुक्त है। कृति में अपने विषय का प्रतिपादन समीचीन है। सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चरित्र इस रत्नत्रयी का भी पर्याप्त विवेचन इस ग्रंथ में है।
ग्रंथ के प्रथम अध्याय में अष्टांग सहित सम्यग्दर्शन का, द्वितीय अध्याय में सम्यग्ज्ञान का, तृतीय अध्याय में सम्यक् चारित्र (मुनि आचार संहिता एवं श्रावक आचार संहिता) का, चतुर्थ अध्याय में दिग्व्रत, अनर्थ-दंडव्रत एवं भोगोपभोगव्रत श्रावक के इन तीन गुणव्रतों का, पंचम अध्याय में चार शिक्षाव्रतों का, छठे अध्याय में संलेखना का और सातवें अध्याय में श्रावक प्रतिमा का पर्याप्त विवेचन है।
श्रावक चर्या संबंधी सामग्री प्रस्तुत करने वाले ग्रंथों में यह ग्रंथ प्राचीन माना गया है। वादिराजसूरि ने इस ग्रंथ को अक्षय सुखावह की संज्ञा प्रदान की। आचार्य समन्तभद्र ने इस ग्रंथ पर संस्कृत टीका लिखी, जो वर्तमान में प्रकाशित है।
आचार्य समन्तभद्र के ग्रंथों में गंभीर दार्शनिक दृष्टियां हैं एवं आस्था का छलकता निर्झर है।
जैन दर्शन को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय आचार्य समन्तभद्र को है।
*समय-संकेत*
जैनेंद्र व्याकरण में समागत 'चतुष्ट्यं समन्तभद्रस्य' (सूत्र 5 /4 /16) के उल्लेख से आचार्य समन्तभद्र पूज्यपाद (देवनन्दी) से पूर्ववर्ती प्रमाणित होते हैं।
आचार्य समन्तभद्र की सर्वज्ञता विषयक मान्यता की पुष्टि में प्रदत्त तर्कों का शाबर भाष्य के व्याख्याकार मीमांसक कुमारिल ने निरसन किया है। मीमांसक कुमारिल भट्ट ईस्वी सन् 625 से 680 तक के विद्वान् माने गए हैं। इस आधार पर आचार्य समन्तभद्र का समय विक्रम की पांचवी-छठी शताब्दी अनुमानित होता है। डॉ महेंद्र कुमार ने सिद्धिविनिश्चय टीका की प्रस्तावना में आचार्य समन्तभद्र का समय ईस्वी सन् द्वितीय शताब्दी बताया है। कई इतिहासकार उनको पांचवी शताब्दी एवं अनेक विद्वान् उनको विक्रम की छठी शताब्दी के मनीषी आचार्य मानने के पक्ष में हैं।
*दिव्य विभूति आचार्य देवनन्दी (पूज्यपाद) के प्रभावक चरित्र* के के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 64* 📝
*मायाचंदजी अग्रवाल*
*तुलसी की माला*
नाथद्वारा चातुर्मास के पश्चात् जयाचार्य उदयपुर पधारे। वहां से मालव भूमि की ओर जाने की भावना से कानोड़ पधार गए। वहां मायाचंदजी अग्रवाल और भेरजी गांधी ने दर्शन किए। वे रथ पर सवार होकर रतलाम से आए थे। दो घुड़सवार उनकी सुश्रुषा और सुरक्षा के लिए साथ थे।
जयाचार्य मालव की सीमा के पास ही पधार चुके थे, परंतु तब तक उन्होंने वहां जाने के लिए घोषणा नहीं की थी। मायाचंदजी और भेरजी ने घोषणा कर देने के लिए बार-बार प्रार्थना की, फिर भी जयाचार्य न जाने क्या सोचकर यही फरमाते रहे कि अवसर आने दो, अभी क्या शीघ्रता है? मायाचंद्रजी से तब रहा नहीं गया। उन्होंने अपनी जेब में से तुलसी की माला निकालकर जयाचार्य की गोद में रख दी और कहने लगे— "हमारे पूर्वज वैष्णव थे। तुलसी की माला छोड़कर उन्होंने जैन धर्म ग्रहण किया। हम भी अपने पूर्वजों की उस पद्धति को श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं। परंतु आपका भी कर्तव्य है कि समय-समय पर हमें संभालते रहें। अब या तो आप मालव भूमि में पधारने की घोषणा कर दें या फिर हमें पुनः तुलसी की माला अपना लेने की आज्ञा दे दें। जयाचार्य उनकी भक्ति भरी प्रार्थना सुनकर द्रवित हो गए और उसी समय उन्होंने मालव पदार्पण की घोषणा कर दी।
रतलाम वालों ने उस यात्रा में सेवा का अच्छा लाभ लिया। जयाचार्य मंदसौर पधारे तब रतलाम के 50 भाई-बहिन सेवा के लिए आए। जयाचार्य ने भी रतलाम पर विशेष कृपा की। जावरा होते हुए वे प्रथम बार वहां पधारे और संवत् 1911 का चातुर्मास वहीं किया। उसके पश्चात् बड़नगर आदि क्षेत्रों में पधारकर पुनः रतलाम पधारे और कई दिन विराजे। उस यात्रा में मायाचंदजी की सेवाएं बहुत महत्त्वपूर्ण रहीं।
*निर्णायक तत्त्वज्ञान और असंदिग्ध आत्मविश्वास के धनी विरल श्रावक चैनजी श्रीमाल के जीवन-वृत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम
👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "उत्कल हाइट पहाल, कटक भुवनेश्वर रोड (ओड़िशा)" पधारेंगे
प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
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संप्रेषक: 🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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