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10-02-2018 Luhapank, Sambalpur, Odisha:
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
करें सामायिक की कमाई: आचार्यश्री महाश्रमण
-अनगुल की सीमा अतिक्रांत कर महातपस्वी अपनी धवल सेना संग संबलपुर जिले में किया पावन प्रवेश
10.02.2018 लुहापंक, संबलपुर (ओड़िशा)ः अपने प्रवचनों के प्रभाव से जन मानस के मानस में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सद्गुणों का संचार करने तथा मानवता को स्थापित करने के लिए अपनी जनकल्याणकारी अहिंसा यात्रा के साथ वर्तमान में ओड़िशा राज्य में निरंतर गतिमान हैं। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ जिस क्षेत्र से गुजरते मानों उस क्षेत्र में अहिंसा की गूंज वातावरण में घुल जाती है। यह गूंज स्थानीय लोगों को भी अहिंसा यात्रा प्रणेता की मंगल सन्निधि में खिंच लाती है। आचार्यश्री के दर्शन को पधारने वाले ग्रामीण दर्शन और आशीर्वाद प्राप्ति के उपरान्त अपने चेहरे पर एक आध्यात्मिक तृप्ति लेकर लौटते हैं।
ऐसे जन-जन के मानस को शांति प्रदान करने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अनगुल जिले के बामुर से मंगल प्रस्थान किया। रास्ते में आने वाले ग्रामीणों व विद्यार्थियों को अपने आशीषवृष्टि से अभिसिंचित करते हुए आचार्यश्री कुछ किलोमीटर आगे बढ़े थे कि ओड़िशा राज्य के अनगुल जिले की आचार्यश्री की चरण धूलि लेकर विदा हुआ तो महातपस्वी के चरणरज को प्रथम बार पाकर पुलकित हुए संबलपुर जिले ने आचार्यश्री का पावन स्वागत किया। अपने क्षेत्र में संबलपुर जिले में स्वागतार्थ अपनी प्राकृतिक सुषमा से भरे जंगल के रास्ते होकर आगे बढ़ रही अहिंसा यात्रा ऐसे लग रही थी मानों जिस जंगल को अभिसिंचन करने के लिए नदी अपनी धवल धारा के साथ प्रवाहित होती है, उसी प्रकार आचार्यश्री की धवल सेना मानवता को अभिसिंचन देने के लिए आगे बढ़ती जा रही थी। कुल लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री संबलपुर जिले के लुहापंक स्थित स्वामी हरिहरानन्दन हाइस्कूल में पधारे।
विद्यालय प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जैन शासन में सामायिक बहुत महत्त्व है। साधु की तो जीवन भर की सामायिक होती है। साधु के तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य योग का त्याग होता है। इसके साथ ही गृहस्थ के लिए भी सामायिक करणीय है, किन्तु गृहस्थ को भी सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ को देश विरति सामायिक आती है। श्रावक का नवां व्रत भी सामायिक होता है। गृहस्थ की सामायिक छह कोटि की होती है, गृहस्थ चाहे तो उसे नौ कोटि की सामायिक भी आ सकती है।
सामायिक एक समता की साधना है। सब रूप में समभाव होकर सामायिक करना होता है। गृहस्थ समता धारण कर सामायिक करने का प्रयास करे तो सामायिक का अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। समता धर्म होता है और राग-द्वेष पाप कर्म का बंध कराने वाला होता है। आदमी को राग-द्वेष की भावना से बचने को प्रयास करना चाहिए और खुद को समत्व में रखने का प्रयास करना चाहिए। जैन शासन का सार है समता। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी श्रावक शनिवार की सायं सात से आठ बजे के बीच यथानुकूलता, यथावसर सामायिक करने का प्रयास करें और उस दौरान ‘तेरापंथ प्रबोध’ का संगान या पाठ हो तो अच्छी धर्माराधना हो सकती है। इससे आदमी को संवर और निर्जरा दोनों का लाभ प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री ने राजा श्रेणिक और पूनिया श्रावक के कथा के माध्यम से श्रद्धालुओं को सामायिक का महत्त्व बताया।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित ग्रामीणों, शिक्षकों व विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा के तीनों उद्देश्यों की अवगति प्रदान कर उनके संकल्प स्वीकार करने का आह्वान किया तो विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों ने सहर्ष संकल्पों को स्वीकार कर स्वयं को अहिंसा यात्रा से जोड़ा। आचार्यश्री के आगमन से हर्षित विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री कैलाशचंद्र बेहरा ने अपनी भावाभिव्यिक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।