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11-02-2018 Badbahal, Sambalpur, Odisha:
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
‘बदबहाल’ गांव को ‘खुशहाल’ बनाने पहुंचे महातपस्वी महाश्रमण
-दुर्लभ मानव जीवन का लाभ उठाने की दी पावन प्रेरणा
11.02.2018 बदबहाल, संबलपुर (ओड़िशा)ः पश्चिम ओड़िशा क्षेत्र के संबलपुर जिले में जैसे ही जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग प्रवेश किए वहीं से आरम्भ हुआ प्राकृतिक सुषमाओं से भरा जंगल मानों महातपस्वी महाश्रमणजी को ओड़िशा राज्य की गर्मी से बचाव में मानों सहायक बना हुआ है। लगभग पूरी यात्रा में सहचर्य के भांति ये जंगल महातपस्वी की इस महान यात्रा में मानों अपना परोक्ष योगदान प्रदान कर रहे हैं।
संबलुपर में गतिमान हुए अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण रविवार को प्रातः लुहापंक से से आगे बढ़े। आज आसमान में बादल छाए हुए थे इस वजह से सूर्य की किरणों से अभी तक धरती का आंचल अछूता था, किन्तु महातपस्वी के चरणस्पर्श धरती का आंचल कर कृतार्थता का अनुभव कर रही थी। जंगली रास्तों के टेढ़े-मेढ़े घुमावदार रास्ते से होते हुए लगभग चैदह किलोमीटर की यात्रा कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग संबलपुर जिले के बदबहाल गांव पहुंचे। यहां स्थित पंचखड हाइस्कूल मंे आचार्यश्री ने पावन पदार्पण किया। आचार्यश्री का यहां आगमन मानों इस बदबहाल गांव को आध्यात्मिक संपदा से खुशहाल बनाने के लिए हुए था।
विद्यालय प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं, ग्रामीणों, विद्यार्थियों व शिक्षकों को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि शास्त्रकार ने मनुष्य भव को दुर्लभ बताया है। चार गतियों और 84 लाख योनियों में मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभ बताया गया है। जीव के कर्म उसे मनुष्य गति में आने ही नहीं देते। बहुत मुश्किलों और कर्मों के अच्छे बंधन के बाद जीवन को मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। किसी-किसी जीव को मनुष्य भव सुप्राप्त होता है। मनुष्य जन्म प्राप्त कर जो आदमी अच्छा कार्य व धर्म का कार्य नहीं करता मानों वह अपने जीवन को उसी प्रकार बर्बाद करता है, जिस प्रकार कोई बहुत परिश्रम के उपरान्त प्राप्त किए चिंतामणि रत्न को समुद्र में फेंक देता है। उसी प्रकार प्रमाद में जीवन व्यतीत कर देने वाला मनुष्य अपने दुर्लभ मनुष्य जीवन को बर्बाद कर देता है।
आदमी को इस मनुष्य गति का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपना जीवन धर्मयुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। धर्म का समाचरण कर आदमी अपने जीवन का लाभ उठा सकता है। आचार्यश्री ने मानव जीवन को एक वृक्ष बताते हुए कहा कि वृक्ष की सार्थकता तब होती है जब वह छायादार और फलवान हो। बिना छाया और बिना फल वाला वृक्ष भला किस काम का। मानव जीवन रूपी वृक्ष के छह फल बताए गए हैं। मानव जीवन रूपी वृक्ष का पहला फल जिनेन्द्र की पूजा अर्थात् तीर्थंकरों की पूजा-उपासना करना। दूसरा फल गुरु की उपासना। तीसरा फल प्राणियों के प्रति दया-अनुकंपा का भाव। चैथा फल शुभ पात्र मंे दान। पांचवां फल गुणों के प्रति अनुराग का भाव तथा छठा फल आगम का श्रवण अथवा भगवान की वाणी को सुनना बताया गया है। मानव जीवन रूपी वृक्ष में यह छह फलों लगे और उनका सम्यक् अनुपालन हो तो मनुष्य अपने जीवन को सार्थक, सफल और सुफल बना सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित ग्रामीणों, विद्यार्थियों, शिक्षकों व अन्य श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की तथा उनसे अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार करने का आह्वान किया तो सभी ने सहर्ष भाव से आचार्यश्री के श्रीमुख से संकल्पत्रयी स्वीकार की। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुभ्रांश कुमार ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षित भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री पावन आशीष प्राप्त की।