19.02.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 19.02.2018

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19-02-2018 Malmunda, Suwarnpur, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

‘सुवर्णपुर’ जिले को निखार शांतिदूत ने किया बलांगीर जिले में पावन प्रवेश 

-लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे मालमुण्डा पंचायत हाइस्कूल


19.02.2018 मालमुण्डा, बलांगीर (ओड़िशा)ः

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखंड परिव्राजक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ लगभग एक सप्ताह तक सुवर्णपुर को आध्यात्मिक रूप में कुन्दन की भांति निखारने के उपरान्त सोमवार को सुवर्णपुर जिले की सीमा को अतिक्रान्त कर बलांगीर जिले की सीमा में पावन प्रवेश किया। इसके साथ ही बलांगीर महातपस्वी के ज्यातिचरण से पावन होने वाला दसवां जिला बन गया। ऐसे महासंत का चरणरज पाकर बलांगीर जिला जहां प्रमुदित हो चुका है तो वहीं इस जिले में प्रवासित श्रद्धालुओं के मन मयूर भी नाच उठे हैं। मानों लगभग पाच दशकों बाद उनके घर-आंगन में उनके आराध्य देव अमृतवर्षा करने ससंघ पधार गए हों।
    सोमवार को सुवर्णपुर जिले के डुमेर-बहाल से आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विहार आरम्भ किया। मार्ग के आसपास आने वाले गांवों के ग्रामीणों को अपने आशीर्वाद से आच्छादित करते आचार्यश्री बढ़ते जा रहे थे। कुछ किलोमीटर की यात्रा के पश्चात लगभग एक सप्ताह तक पूज्यचरणों की रज को पाकर तथा मंगल प्रवचनों के श्रवण का अवसर प्राप्त कर कुन्दन-सा निखरा सुवर्णपुरा जिला अंतिम बार चरणरज लेकर विदा हुआ तो महातपस्वी, राष्ट्रसंत के चरण कमलों में बिछकर ओड़िशा राज्य के बलांगीर जिले ने भावभीनी अवगवानी की। अहिंसा यात्रा में सहभागी बना बलांगीर जिला आचार्यश्री की अहिंसा यात्रा का पश्चिमी ओड़िशा प्रांत का दसवां जिला है। लोगों की मान्यताओं के अनुसार बलांगीर जिले को पश्चिमी ओड़िशा का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। इस दृष्टि से आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पश्चिमी ओड़िशा प्रान्त की सीमा में भी मंगल प्रवेश कर लिया। कुल दस किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर आचार्यश्री मालमुण्डा में स्थित मालमुण्डा पंचायत हाइस्कूल में पधारे। विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों व ग्रामीणों सहित पूज्य सन्निधि में पश्चिम ओड़िशा के विभिन्न जिलों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का स्वागत अभिनन्दन किया।
    विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल से आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर से प्रश्न हुआ कि जीवों का सोना अच्छा है या जगना? जीवों का दुर्बल रहना अच्छा है अथवा सबल? जीवों का आलसी होना अच्छा है या परिश्रमी होना? इन प्रश्नों का जवाब देते हुए भगवान महावीर ने कहा कि कुछ जीवों का सोना अच्छा, कुछ का जगना अच्छा, कुछ का दुर्बल होना अच्छा तो कुछ का सबल होना अच्छा। कुछ का आलसी होना अच्छा तो कुछ का परश्रमी होना अच्छा है। इस पर एक और प्रश्न हुआ कि दोनों सही कैसे हो सकता है? तब भगवान महावीर ने इसे व्याख्यायित करते हुए कहा कि अधार्मिकों, हिंसकों का सोना अच्छा है तो धार्मिक और अहिंसक जीवों का जगना अथवा जागरूक रहना अच्छा होता है। वहीं दुष्ट प्रवृत्ति वालों का दुर्बल होना अच्छा तथा सुप्रवृत्ति वालों का सबल होना अच्छा होता है। उसी प्रकार कुछ का आलसी होना तो कुछ परिश्रमी होना भी अच्छा होता है।
    आदमी को आध्यात्मिक दृष्टि से सतत जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। जागने वाले की बुद्धि का विकास हो सकता है और सोने वाला का बहुत कुछ खो सकता है। सोने और जागने दोनों में उपयुक्तता हो तो अच्छी बात हो सकती है। आदमी को सोने और जागने में उपयुक्तता रखने का प्रयास करना चाहिए। यदि विद्यार्थी पढ़ाई या परीक्षा के दौरान नींद ले, तो भला से उसे क्या प्राप्त हो सकता है। इसलिए उपयुक्तता के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे कार्यों के प्रति जागरूक रहें तो बुद्धि भी बढ़ सकती है। नींद को आचार्यश्री ने छह प्रमादों में से एक बताते हुए कहा कि आदमी को ज्यादा नींद लेने से बचने का प्रयास करना चाहिए और निरंतर जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए तो जीवन अच्छा हो सकता है।
    आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात हाइस्कूल के प्रधानाध्यापक श्री चितरंजन पुरोहित ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त किया।

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