20.02.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 20.02.2018

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20-02-2018 Balangir, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

पश्चिम ओड़िशा के प्रवेश द्वार बलांगीर में शांतिदूत का भव्य मंगल पदार्पण

-स्वागत को उमड़ा सकल पश्चिम ओड़िशा श्रद्धालुओं का जनसमूह -कौशल कला मंडल पड़िया से महातपस्वी ने अहिंसा, संयम व तप रूपी धर्म को किया व्याख्यायित

20.02.2018 बलांगीर (ओड़िशा)ः

अपनी श्वेत सेना के साथ पूरे विश्व का शांति, सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देने के लिए अहिंसा यात्रा पर निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगलवार को अपनी धवल सेना के साथ पश्चिम ओड़िशा का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले जिला मुख्यालय बलांगीर में मंगलवार को भव्य मंगल प्रवेश किया तो मानों पश्चिम ओड़िशा मंगलमय के साथ महाश्रमणमय बन गया और वातावरण में गूंज उठा सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति का संदेश। बहने लगी ज्ञानगंगा की वह अविरल धारा जो लोगों मानस को पवित्र बनाती है।
    मंगलवार को सूर्योदय से पूर्व ही मालमुण्डा में विराजमान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में श्रद्धालुओं का समूह उपस्थित होने लगा था। जैसे-जैसे सूर्य उदय होता गया, वैसे-वैसे जनसमूह में इजाफा होता गया। आचार्यश्री ने अपने निर्धारित समय पर मालमुण्डा से मंगल प्रस्थान किया। लगभग 48 वर्षों पूर्व इस पश्चिम ओड़िशा की धरा पर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमे आचार्यश्री तुलसी का पदार्पण हुआ था। इतने लंबे समय के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता के रूप में पश्चिम ओड़िशा की धरा पर किसी तेरापंथी आचार्य का मंगल पदार्पण हो रहा था। वर्षों से अपने आराध्य का सान्निध्य पाने को पश्चिम की यह उत्कल धरा इस सुअवसर के निकट आने से पुलकित नजर आ रही थी। हर मन में एक उत्साह, उमंग और उल्लास का ज्वार उठ रहा था जो उनके चेहरे पर मुखरित भी हो रहा था।
    आचार्यश्री का आज का विहार भले ही लगभग छह किलोमीटर का ही था, किन्तु प्रत्येक कुछ मीटर के बाद उत्साही श्रद्धालु आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हो रहे थे और इस तरह वृद्धिंगत हो रही थी श्रद्धालुओं की संख्या और उनका उत्साह। आचार्यश्री जैसे ही पश्चिम ओड़िशा का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले बलांगीर की धरती पर चरण टिकाए तो मानों उत्साह के ज्वार से भरे श्रद्धालु समूहों का समुद्र उमड़ पड़ा अपने आराध्य के अभिनन्दन में। भव्य स्वागत जुलूस के रूप में परिणम यह जनसमूह जब गगनभेदी जयघोष कर रहा था तो उसके साथ उत्साह का भाव उसे और प्रवर्धमान बना रहा था। अन्य जैन एवं जैनेतर लोगों का जनसमूह भी ऐसे महातपस्वी के दर्शन को लालायित नजर आ रहा था। सभी पर अपने करकमलों से आशीषवृष्टि करते आचार्यश्री भव्य स्वागत जुलूस के साथ बलांगीर मुख्यालय स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
    भवन से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौशल कला मंडल पड़िया में बने भव्य व विशाल ‘महाश्रमण समवसरण’ में जब आचार्यश्री का मंगल पदार्पण हुआ तो वहां हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने हर्षित जयघोष से आचार्यश्री का अभिन्नदन किया। वहीं आचार्यश्री के स्वागतार्थ खड़े विश्वात्म चेतना परिषद के स्वामी सत्यप्रज्ञानंदजी ने भी आचार्यश्री का अभिनन्दन किया।
    अपने आराध्य के आगमन से प्रमुदित बलांगीरवासियों द्वारा अपने स्वागत-अभिन्दन का उपक्रम किया। इस कार्यक्रम में सर्वप्रथम बलांगीर तेरापंथ महिला मंडल, युवक परिषद व कन्या मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। पश्चिम ओड़िशा प्रान्तीय सभा के अध्यक्ष श्री केवलचंद जैन, मंत्री श्री केशव नारायण जैन तुषारा के श्री तुलसी जैन, बलांगीर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री पृथ्वीराज जैन, तेयुप अध्यक्ष श्री दिनेश जैन, महासभा के निवर्तमान अध्यक्ष श्री प्रफुल्ल बेताला, टीपीएफ के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र जैन, श्री मनोज जैन व श्रीमती उमादेवी ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। पश्चिम ओड़िशा में विहरण करने वाले मुनि अर्हतकुमारजी ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। इसके उपरान्त गुरुधाराणा का कार्यक्रम भी रहा। जिसमें स्थानीय क्षेत्र व आसपास के लोगों ने आचार्यश्री के श्रीमुख से गुरुधारणा स्वीकार की।
    इसके उपरान्त पश्चिम ओड़िशा की धरा पर पहली बार अपनी अहिंसा यात्रा संग पधारे आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जन समूह को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के जीवन में यदि धर्म हो तो मानना चाहिए कि जीवन सफल हो जाता है और धर्म के बिना व्यतीत जीवन निष्फल अथवा दुष्फल भी हो सकता है। जिस आदमी का दिन धर्म के बिना बीत जाए, उसे मुर्दा के समान माना गया है। आदमी को सजीव तभी माना गया है जब उसके हृदय में धर्म रूपी चेतना का संचार होता रहे।
    धर्म के तीन आयाम बताए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप। इससे उत्कृष्ट कोई धर्म नहीं हो सकता। इस संसार का कोई भी प्राणी वध के योग्य नहीं होता। इसलिए आदमी को किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करने का प्रयास करना चाहए। अपने जीवन में संयम अनुपालन करते हुए यथासंभव अपने जीवन का कुछ समय तप मंे लगाने का प्रयास करना चाहिए तो मानों जीवन मंे धर्म की आराधना हो सकती है। आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन धर्म, जैन साधुचर्या व अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की। आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने संकल्पत्रयी स्वीकार की। आचार्यश्री ने बलांगीरवासियों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां धार्मिक भावना प्रबल होती रहे और धर्म की चेतना पुष्ट होती रहे।
    आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त विश्वात्म चेतना परिषद के स्वामी सत्यप्रज्ञानंदजी महाराज ने कहा कि आज का दिन बहुत सौभाग्यशाली है जो इस बलांगीर की और पश्चिम ओड़िशा की धरती पर आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महासंत के चरण पड़े हैं। मेरे आदर्श रहे आचार्य महाप्रज्ञजी के पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर बहुत प्रसन्नता हुई। इनके साथ साध्वीप्रमुखाजी आदि संतों और साध्वियों के दर्शन कर पन पुलकित हो रहा है। आपकी अहिंसा यात्रा भारत को विश्वगुरु का सम्मान दिलाने में सक्षम है, क्योंकि आज इन्हीं संदेशों की अपेक्षा है। आपकी अहिंसा यात्रा हम सभी के लिए एक दृष्टांत है। मैं आपकी अहिंसा यात्रा की मंगलकामना करता हूं।
    इसके उपरान्त साध्वी पुनीतप्रभाजी, साध्वी लब्धिप्रभाजी ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी तो ओड़िशा की धरा से बालसाध्वीद्वय साध्वी आदित्यप्रभाजी और साध्वी कमनीयप्रभाजी ने गीत के माध्यम से अपनी धरा पर अपने आराध्य का वंदन किया। समणी कमलप्रज्ञा, समणी रत्नप्रज्ञा, समणी आदर्शप्रज्ञा तथा दीक्षार्थी अंजली ने भी अपने आराध्य की अभिवन्दना की।
    इसके उपरान्त व्यवस्थाओं का हस्तांतरण का भी उपक्रम रहा। इस क्रम में कटक मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मोहनलाल सिंघी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उसके उपरान्त पूर्वी ओड़िशा ने पश्चिम ओड़िशा को अहिंसा यात्रा की व्यवस्थाओं का दायित्व जैन ध्वज के रूप में पश्चिम ओड़िशा के पदाधिकारियों को सौंपा। इस संदर्भ में मंगलपाठ सुनाया और सभी को अपने आशीष से अभिसिंचन प्रदान किया।

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