21.02.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 21.02.2018
Updated: 21.02.2018

Photos of Today

Location Today:

21-02-2018 Hardatal, Balangir, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्त

मंत्र बने मित्र तो दूर हो व्यथा: महातपस्वी महाश्रमण

-बलांगीर से लगभग 15 किमी का विहार कर शांतिदूत पहुंचे हरड़ाताल स्थित धोवा हाइस्कूल


21.02.2018 हरड़ाताल, बलांगीर (ओड़िशा)ः

मंगल को पश्चिम ओड़िशा के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले बलांगीर में पावन प्रवेश कर तथा आध्यात्मिक चेतना से बलांगीरवासियों को परिपूर्ण कर बुधवार की प्रातः भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग मंगल प्रस्थान किया। अपने आराध्य के आगमन से हर्षित श्रद्धालुओं के भाव अभी मंद भी नहीं पड़े थे कि नगर से विदा करने की घड़ी आ गई। दोहरे भावों से भरे श्रद्धालु अपने गुरु को विदा करने चल पड़े। सभी पर समान रूप से आशीष वृष्टि करते समताधारी आचार्यश्री जन कल्याण को गतिमान हुए।
    लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना संग हरड़ाताल स्थित धोवा हाइस्कूल में पधारे। यहां उपस्थित ग्रामीणों व शिक्षकों ने आचार्यश्री का भावभरा स्वागत किया। विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी महाश्रमणजी ने नमस्कार महामंत्र की महिमा की व्याख्या करते हुए कहा कि यह जैन शासन का महामंत्र है। जिसे बच्चे से बच्चा और बड़े से बड़ा से भी जपता है। इसके जप से कल्याण की प्राप्ति हो सकती है और चेतना भी निर्मल बन सकती है।
    अध्यात्म जगत में साधना का सुन्दर और सुगम एक माध्यम जप है। किसी से उपवास आदि तपस्या न भी हो, तप करना कठिन हो सकता है, किन्तु जप एक सुगम माध्यम है बनता है साधना का। जप में मंत्र का उच्चारण शुद्ध हो, मन में उसका अर्थबोध शुद्ध हो और आदमी की भावना शुद्ध हो तो जप सुफल हो सकता है। इस नमस्कार महामंत्र में कितने-कितने महान आत्माओं, दिव्य आत्माओं को नमस्कार किया गया है। इसमें वीतरागता व्याप्त है। इसमें अर्हतों को नमस्कार किया गया है। जो तीर्थंकर बन गए हैं, ऐसे तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है। जो पूर्ण रूप से वीतरागता को प्राप्त हों वे अर्हत होते हैं। वे राग-द्वेष मुक्त होते हैं। इसलिए उनके द्वारा कही गई बात ही सत्य है अर्थात वहीं सत्य है जो तीर्थंकरों, अर्हतों द्वारा बताई गई है, प्राप्त है। इस महामंत्र में सिद्धों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध भी वीतरागी होते हैं। आचार्य को नमस्कार किया गया है। जो तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं, तीर्थंकर की अनुपस्थिति में वाचना देने वाले होते हैं। वे व्याख्या देने के अधिकारी के शासन के अधिनायक होते हैं। इसमें उपाध्यायों को भी नमस्कार किया गया है। जो स्वयं शास्त्रों का ज्ञाता हो और दूसरों को ज्ञान बांटने वाले उपाध्याय हो, उसे भी नमस्कार किया गया है। पंच महाव्रतधारी साधुओं को भी नमस्कार किया गया है।
    यह महामंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है। शुद्ध भाव से इसका जप आत्मा को शुद्ध बनाने वाला हो सकता है। जप के प्रति निष्ठा हो तो चेतना निर्मलता को प्राप्त हो सकती है। सुबह नाश्ते से पहले नमस्कार महामंत्र की एक माला हो जाए तो जीवन का एक अच्छा क्रम हो सकता है। मंत्र को मित्र बना नलें तो आदमी की व्यथा दूर हो सकती है।
    आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित विद्यालय के शिक्षकों को अहिंसा यात्रा के विषय में अवगति प्रदान करते हुए अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने आ आह्वान किया तो शिक्षकों ने सहर्ष संकल्पत्रयी स्वीकार की और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री मनोज कुमार मिश्र ने भी आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षित भावों की अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

Sources
I Support Ahimsa Yatra
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • HereNow4U
    • HN4U Team
      • Share this page on:
        Page glossary
        Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
        1. Balangir
        2. Hardatal
        3. Odisha
        4. आचार्य
        5. ज्ञान
        6. तीर्थंकर
        7. भाव
        8. महावीर
        Page statistics
        This page has been viewed 258 times.
        © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
        Home
        About
        Contact us
        Disclaimer
        Social Networking

        HN4U Deutsche Version
        Today's Counter: