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तालबेहट पंचकल्याणक महोत्सव...
सरकोद्धारक अचार्यरत्न श्री ज्ञानसागर जी महाराज, उपाध्याय श्री अभिनंदन सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में दि. 22 से 27.02.2018 तक आयोजित श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ महोत्सव के मध्य केवलज्ञान कल्याणक के दिन प्रातःकाल अनेक इन्द्रों ने श्री जी का अभिषेक, शांतिधारा नित्यपूजन के पश्चात मुनि श्री विश्वास सागर जी महाराज ने अपनी वाणी द्वारा कहा कि यह महोत्सव सत्य का दिग्दर्शन कराने वाली प्रक्रिया है।
आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि समीचीन ज्ञान को सम्यकज्ञान कहते हैं।
दीक्षा लेते ही महामुनि श्री आदिश्वर जी आत्मध्यान में लीन हो गए। 6 माह तक वह ध्यानस्थ रहे। तत्पश्चात जब आहारचर्या के लिए निकले तब श्रावक गण पड़गाहन की विधि नहीं जानते थे। जैसे ही महामुनि उनके नजदीक पहुँचते कोई कहता लो महाराज रत्न, आभूषण, कन्याएं। लगभग 6 महीने से अधिक नवधाभक्ति के अभाव में विधि नहीं मिली। तभी राजाश्रेयांस को पूर्वभवों का स्मरण हो आया और जैसे ही अत्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ कहकर पड़गाहन किया, महामुनि का आहार हुआ, पंचाश्चर्य हुए और वह दिन अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
चार प्रकार के दान की चर्चा शास्त्रों में है जिसमे प्रत्येक का अपना अपना महत्व है।
दोपहर में मन्त्र आराधना, अधिवासना, तिलकदान, मुखोद्घटन, नेत्रोंमिलन, प्राण प्रतिष्ठा, सुरीमन्त्र, केवलज्ञान उत्पत्ति, समवशरण रचना, गणधर के रूप में आचार्य श्री का उदबोधन हुआ।
प्रभु को केवलज्ञान हो जाता है, तब वह इस पृथ्वी से 5000 धनुष ऊपर चले जाते हैं। वहां पर उनकी दिव्य देशना समवशरण में होती है, जिसमें नर्कगति को छोड़कर 3 गति के जीव प्रभु की वाणी सुनते हैं।
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