13.03.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 13.03.2018

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13-03-2018 Belgaon, Balangir, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

अनित्य शरीर से करें आत्मा का कल्याण: आचार्यश्री महाश्रमण

  • धवल सेना संग लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे बेलगांव

13.03.2018 बेलगांव, बलांगीर (ओड़िशा)ः

जन कल्याणकारी अहिंसा यात्रा के साथ देश के बारहवें राज्य के रूप में ओड़िशा राज्य को पावन बना रहे आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग वर्तमान में पश्चिम ओड़िशा क्षेत्र के बलांगीर जिले में यात्रायित हैं। ओड़िशा राज्य के वर्तमान मौसम पर ध्यान दिया जाए तो भारत के अन्य भागों की अपेक्षा यहां गर्मी की अधिकता होती है। शायद इसलिए यहां मार्च के शुरूआत में भी पड़ती गर्मी लोगों को बेहाल करने लगी है। तेज धूप लोगों को अभी से मई का अहसास करा ही है। इससे यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में मई-जून के महीने में गर्मी की क्या स्थिति होती होगी। इन परिस्थितियों के बावजूद अखंड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी जन कल्याण के लिए निरंतर गतिमान हैं।

मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल के साथ सूर्योदय के कुछ समय पश्चात ही बिजेपुर से निकल पड़े अगले गंतव्य की ओर। आज का विहार मार्ग उबड़-खाबड़ होने के साथ उतार-चढ़ाव भी लिए हुए था। आसपास खेतों में कहीं धान की फसल लगी हुई थी तो कहीं खेत खाली भी पड़े हुए थे। इन मार्गों के दोनों ओर दूर-दूर पहाड़ों तक नजर आने वाले वृक्षों में पलाश के वृक्ष अलग ही छटा लिए हुए थे। इन वृक्षों के ऊपर लगे सूर्ख चटक रंग फूल लोगों को अपनी आकर्षित कर रहे थे। मार्ग के आसपास आने वाले ग्रामीणों को अपने आशीष से आत्मिक शांति प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर बेलगांव स्थित स्व. केवलचंदजी जैन के आवास में पधारे। ध्यातव्य है कि स्व. श्री केवलचंदजी जैन पश्चिम ओड़िशा प्रान्तीय सभा के वर्तमान अध्यक्ष थे। जिनका गत 21 फरवरी को अचानक देहांत हो गया था।

उनके आवास परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखाजी ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान की। उसके उपरान्त आचार्यश्री ने अपनी अमुतवाणी से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह हाड़, मांस, रक्त आदि से बना स्थूल शरीर अनित्य है। जो कभी न कभी विनाश को प्राप्त हो जाता है। यह शरीर शाश्वत भी नहीं है। इस शरीर को असूचि कहा गया है। शरीर को दुःख और क्लेश का स्थान भी कहा गया है। फिर भी इस शरीर के माध्यम से धर्म की उत्कृष्ट आराधना की जा सकती है। इसलिए आदमी को अपने शरीर का लाभ उठाते हुए धर्माराधना करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म की आराधना कर आदमी अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। आचार्यश्री स्व. केवलचंदजी जैन के परिजनों के यहां आगमन पर उन्हें मंगल आशीष भी प्रदान किया।

इसके उपरान्त आचार्यश्री ने लोगों को अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी भी स्वीकार कराई। अपने घर-आंगन में अपने आराध्य के पधारने से अतिशय आह्लादित पारिवारिक जनों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देना आरम्भ किया। सर्वप्रथम स्व. श्री केवलचंदजी जैन के सुपुत्र श्री अविनाश जैन ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी कृतज्ञ भावों को अभिव्यक्त किया तथा आचार्यश्री के आगमन को यादगार बनाने हेतु कुछ त्याग भी किए। श्री उमराव जैन परिवार की महिलाओं द्वारा गीत का संगान किया गया। सुश्री मोनिका ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। नेमीचंद उमरा जैन परिवार के नन्हें-मुन्हें बच्चों से सामूहिक स्वर में गीत का संगान किया तथा कुछ बच्चों ने भावपूर्ण प्रस्तुति भी दी। संसारपक्ष में इस परिवार से संबद्ध साध्वी पुनीतप्रभाजी ने भी आचार्यश्री की अभ्यर्थना में अपने भावसुमन अर्पित किए।

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