11.04.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 11.04.2018
Updated: 12.04.2018

Update

✿ Lord Neminatha... Shri Krishna & connection of Mt. Girnar - A Salvation hill worthy write-up indeed...

Neminatha, the 22nd Tirthankara of the Jains, was the son of Samudra Vijaya and grandson of Andhakavrishni. He is said to be a cousin of Krishna, the lord of the Bhagvadgita. Krishna negotiated his marriage with Rajamati, the daughter of Ugrasena but Neminatha taking compassion on the animals which were to be slaughtered in connection with the marriage feast, left the marriage procession suddenly and renounced the world.

There is a mention in the Chhandogya Upanishada, that the sage Ghora Angirasa imparted a certain instructions of the spiritual sacrifice to Krishna, the son of Devaki. The liberal payment of this scarify was austerity, liberality, simplicity, non-violence and truthfulness. These teachings of Ghora Angirasa seem to be the tenets of Jainism. Hence, Ghora Angirasa seems to be the Jain saint. The writers of the Jain scriptures say that Tirthankara Neminatha was the master of Krishna, the Ghora Angirasa. It may be possible to suggest that Neminatha was his early name and when he had obtained salvation after hard austerities, he might have been given the name of Ghora Angirasa.

In the Yajurveda, Neminatha seems to be clearly mentioned as one of the important Rishis. He is described as one who is capable of crossing over the ocean of life and death, as the remover of violence, one who is instrumental is sparing life from injury and so on. The Yajurveda probably beolongs to the twelfth century B. C. This indicates that Neminatha seems to be known at this time and flourished even before.

The king Nebuchadnazzar (940 B. C.) who was also the lord of Revanagara (in Kathiawara) and who belonged to Sumer tribe, has come to the lace (Dwarka) of the Yaduraja. He has built a temple and paid homage and made the grant perpetual in favour of Lord Neminatha, the paramount deity of Mt. Raivata/Mt. Girnar. This inscription is of great historical importance. The king named Nebuchadnazzar was living in the 10th century B. C. It indicates that even in the tenth century B.C. there was the worship of the temple of Neminatha the 22nd. Tirthankara of the Jains. It goes to prove the historicity of Neminatha.

❖ ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ❖

Source: © Facebook

आचार्यश्री के दर्शन पाकर गल्ला व्यापारी की बेटी ने आजीवन बह्मचर्य व्रत धारण किया...

कहते हैं कि आचार्य विद्यासागर के दर्शन पाकर लोग इंसानी जन्म की वास्तविक समझकर लोभ, मोह से दूरियां बना लेते हैं। कई लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन लाभ लेकर बैराग्य धारण कर लिया है और आज वह संघ में शामिल होकर समाज व विश्व शांति की ओर अग्रसर हैं। इन्हीं में जबेरा नगर की एक बेटी भी शामिल हुई है। आचार्यश्री के दर्शन लाभ पाने के बाद जबेरा नगर का गौरव बढ़ाते हुए, नगर के गल्ला व्यापारी कमल चौधरी की सुपुत्री निधि ने आजीवन सयंम ब्रह्मचर्य व्र्रत को अंगीकार किया है। निधि के संबंध में बताया गया है कि यह परिवार की बहुत लाड़ली बेटी हैं, इनके दो बड़े भाई भाइयों नीलेश व नागेश हैं व दो बहन हैं जिनमें यह सबसे छोटी हैं। निधि इन दिनों जैन मंदिर में संचालित श्रीअनेकांत विद्या केंद्र की शिक्षिका भी हैं। परिवार के लोगों ने बताया है कि निधि की रूची शुरू से ही धार्मिक रही है।

जबेरा में आर्यिका संघ के चातुर्मास के बाद से निधि ने स्वयं को पूरी तरह धार्मिक गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया था। निधि ने एम से पोस्ट ग्रेज्युवेशन किया है साथ ही यह कम्प्यूटर शिक्षा में पीजीडीसीए भी किए हुए हैं, इसके अलावा एमएसडब्लू डिप्लोमाधारी भी हैं।

विदित हो कि दमोह जिले के पथरिया निवासी अमित जैन जो अब निराग सागर के नाम से जाने जाते हैं, इन्होंने वर्ष २००९ में आचार्यश्री से अमरकंठक में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था और वर्ष २०१३ में दीक्षा लेकर मुनिपद धारण किया था। वहीं इनके अलावा दमोह के इंकमटैक्स वकील सुनील जैन ने भी आचार्यश्री की दीक्षा लेकर मुनिश्री पद धारण कर लिया था, आज इन्हें निर्मोंह सागर के नाम से जाना जाता है। इन्होंने १८ नवंबर २००७ को ब्रह्मचर्य व्रत सागर जिले के बीना बारह में धारण कर लिया था। १० अगस्त २०१३ में इन्हें आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने मुनि दीक्षा दी थी।

Source: © Facebook

Source: © Facebook

मुगलो की बढ़ती अराजकता एवं दूसरे धर्म के द्वारा की जाने वाली मनमानियों के कारण एक समय जब मुनियो का लगभग लोप सा ही गया था तब दक्षिण के शांतिसागर जी महाराज ने जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर पुनः मुनि चर्या की प्रभावना के लिये दिल्ली के चौराहों व राजमार्गो पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और पुनः जैन धर्म की शान को बढ़ाया

_आचार्य शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पांच शिष्य श्री प्रणम्यसागर जी चंद्रसागर जी वीरसागर जी विशालसागर जी धवलसागर जी महाराज* ने उसी दिल्ली में अब पुनः अपना प्रवेश किया है वह भी तब जब लोगो द्वारा यह कहा जाने लगा कि दिल्ली में धर्म के संस्कार बचे ही नही है इस विषम समय और परिस्थितियों में संघ ने आचार्य भगवंत के दीक्षा के पचासवें वर्ष को मनाने एवं आचार्य श्री के द्वारा की जाने वाली साधना को जन जन तक पहुचाते हुए दिल्ली वालों को संस्कार प्रदान करने का जो अदम्य प्रयास किया है वह अभूतपूर्व है

दिल्ली है दिल वालो की तो हमने बहुतों से सुना है किंतु पहली बार ऐसा हुआ है कि इन संतो के प्रवेश से ही दिल्ली संस्कार वालो की भी हो गयी है अथार्थ अब दिल्ली वाले भी आतुर है कि ऐसे संत जिन्होंने साधना के एक दो नही बल्कि पूरे पचास वर्ष पूरे कर लिये है उनके गुणों को जाने समझे कुछ ना कुछ तो उनके जैसा बनने का प्रयास करे इसी भावना के साथ एक भव्यातिभव्य आयोजन _स्वर्णिम दीक्षा महामहोत्सव_ का संकल्प किया है जिसे समस्त दिल्ली वालों की उपस्थिति में 15 तारीख दिन रविवार को बाल ब्रह्मचारी प्रतिस्थाचार्य श्री प्रदीप जी सुयश के कुशल निर्देशन एवं संचालन में जगत पूज्य मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के आशीर्वाद से दिल्ली में उपस्थित आचार्य संघ के साधुओ के सानिध्य में मनाया जा रहा है

_आयोजन की भव्यता का पूर्वानुमान हम इस बात से ही लगा सकते है कि आने वाले अथितियों की सहमति आयोजन समिति को लगातार मिल रही है और समिति द्वारा उनके रहने खाने पीने और ठहरने का उचित प्रबंध किए जा रहे है आने वालों में उत्साह इसलिये है कि अभी तक आचार्य भगवंत के संघ से दिल्ली पहुचने वाला यह पहला संघ है जो अपनी उपस्थिति से आचार्य भगवंत की साधना की अमिट छाप छोड़ रहा है क्योंकि संघ के प्रत्येक साधु की चर्या अपने आप मे कठिनतम कठिन है वे भीतिकवादी चकाचौंध की दुनिया मे रहते हुए भी जल में भिन्न कमल से दिखाई दे रहे है और अपनी साधना को निरंतर गतिमान बनाये हुए है

जगतपूज्य मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज को अपना आराध्य मानने वाले श्रेस्ठी श्री सचिन भाई और उनकी टीम एक असीम ऊर्जा के साथ इस आयोजन को अंजाम तक पहुचाने की निरंतर कोशिश कर रही है और हम आशान्वित है कि वह अपने प्रयास में इस हद तक सफल होंगे कि यह आयोजन दिल्ली का पहला ऐसा आयोजन होगा जिसे देख कर समस्त दिल्ली वाले बगैर वाह वाह किये नही रह पाएंगे एक नया इतिहास बन जायेगा और लोग कहेंगे कि धर्म और संस्कारों को यदि देखना और सीखना है तो आचार्य भगवंत के साथ साथ उनके शिष्यों में भी देखे और सीखे*।

_सचिन भाई और उनकी टीम की हौसला अफजाई करते हुए समस्त भारत वर्ष में उपस्थित भक्तों से आग्रह करता हू कि इस आयोजन में पहुचकर आचार्य भगवंत की साधना के पचासवर्ष पूर्ण होने पर उनके गुणों की चर्चा करने उस दिल्ली में अवश्य पहुचे जहां आचार्य शांति सागर जी महाराज ने दिगम्बरत्व के प्रचार को बढ़ावा देने के लिये अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी और शायद यह उसी का परिणाम है कि आज जैन साधुओ का विहार भारत के किसी भी राज्य में निर्बाध रुप से चल रहा है तो सभी पहुचे और आयोजन को भव्यता प्रदान करते हुए मुनि संघ का आशीर्वाद ले और आयोज को सफलता की ऐतिहासिक उचाइयां दे_

*कार्यक्रम स्थल* -श्री विद्या सागर वाटिका - सी वी डी ग्राउंड शाहदरा दिल्ली_

*समय*-- _दोपहर 1 बजे से_

*निवेदक*-- _श्री सुधा प्रमाण प्रभावना संघ_
_जैन अपनापन फाउंडेशन, नवीन शाहदरा, दिल्ली_

श्रीश ललितपुर

Source: © Facebook

Update

एक बार फिर शहर में उल्लास है। गुरुवर हर व्यक्ति को आश है, क्योंकि दमोह नगर भी अब पास है। जैसे-जैसे जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज के चरण दमोह की ओर बढ़ते जा रहे है, लोगों का उत्साह उतना ही बड़ता जा रहा है। कुछ भक्तों का तो जैसे मन इंतजार के लिए नहीं मान रहा है। सुबह से सैकड़ों भक्त जबेरा के लिए रवाना हो गए हैं, जहां आचार्यश्री के समक्ष सभी दमोह नगर आने के लिए श्रीफल भेंट करेंगे।

Source: © Facebook

वीतरागता लगती भायी, प्रशांत मुद्रा प्यारी प्यारी! जिन चरणों की महिमा भारी, जिनेन्द्र प्रभु की है बलिहारी!

Source: © Facebook

News in Hindi

Aaj ka Photo @ आखिर इसमे क्या रहस्य है....

जो भी आचार्यश्री के साक्षात दिव्य दर्शन करते है या उनसे जुड़ी खबर सुनकर, देखकर पढ़कर उन्हें, हमे कई बार लगता है *आखिर इसमे क्या रहस्य है....

_● आचार्यश्री *रसविहीन अत्यंत, अल्प आहार* लेते है उनके नीरस एवम अल्प आहार में कोई *पौष्टिकता* भी नही होती, वे *अस्नान व्रत संकल्पी* है न तो शरीर पर *आलेपन, विलेपन, और न कोई सौदर्य वर्धक लेप* ही लगाते है और तो और आचार्यश्री तो भरी धूप, गर्मी में भी सैकड़ो मील लम्बा विहार करते है फिर भी उनकी काया, कामदेव के समान काँचनमय लगती है उनके मुखमण्डल के आभामय दिव्य प्रकाश दमकता ही रहता है_
_*आखिर इसमे क्या रहस्य है....🤔*_

_● आचार्यश्री की कीर्ति दिन प्रतिदिन शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ती ही जा रही है, न केवल सम्पूर्ण जैन समाज बल्कि जैनेतर समुदाय भी गुरुवर के प्रति श्रद्धा भक्ति से नतमस्तक होता है। यहांतक कि वनांचल में रहने वाले मूल आदिवासी इनमे *भगवान राम, एवम शंकर* की छवि देख श्रद्धापूर्वक नमन वंदन भी करते है_
_*आखिर इसमे क्या रहस्य है....🤔*_

_● आचार्यश्री के साक्षात दर्शन, सानिध्य पाने देश के *महामहिम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायाधीश, शिक्षाविद, वरिष्ठतम वैज्ञानिक, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, वरिष्ठतम प्रशासनिक अधिकारी* सदैव अभिलाषी रहते है इन्हें सिर्फ आचार्यश्री के दर्शन मात्र से संतुष्टि नही मिलती बल्कि गुरुचरणों में बैठकर प्राचीन भारत की शासन व्यवस्था के अनुरूप वर्तमान व्यवस्था संचालन हेतु दिशा निर्देश लेकर उस पर अमल करके प्रशासन को सक्रिय रूप से संचालन हेतु आदेशित कर आनन्दित भी होते है।_

_*ऐसा क्या है आचार्यश्री में, जो अन्य में नही और आखिर इसमे क्या रहस्य है......🤔*_

_● 1978 में जब आचार्यश्री भगवान पार्श्वनाथ की समवशरण स्थली नैनागिर क्षेत्र में साधना तपश्चर्या हेतु विराजित थे उन्ही दिनों इस अंचल में दुर्दान्त खूंखार डाकुओं का आतंक था लोग दिन में भी निकलने में डरते थे_
_एक दिन उन कुख्यात डाकुओं का दल आचार्यश्री के दर्शन करने आया अपनी बंदूके अस्त्र शस्त्र एक ओर पटक कर गुरुचरणों में नमन किया और कुछ देर बाद उनके मुखिया ने आचार्यश्री के समक्ष हाथ जोड़कर निवेदन किया *"मालक आप इतइ नैनागिर में चोमासो करियो, हमाई तरफ से कोई खो कछु परेसानी नई हुइये "*_
_फिर तो इन *दुर्दान्त भक्तो* का गुरुचरणों में आना जाना लगा रहा 1981 और 1982 का नैनागिर में चातुर्मास भी सानंद सम्पन्न हुआ सुनते है इसी बीच इन डाकुओं का *हृदय परिवर्तन* भी हुआ_
_*आखिर इसमे क्या रहस्य है....🤔*_

_यदि आपको इन रहस्य की जानकारी हो तो कृपया सूचित अवश्य कीजियेगा, और यदि न भी तो भी सूचित करियेगा अपन सब मिलकर अगली कड़ी में *"इस रहस्य " को जानने का प्रयास करेंगे।*_

_आपका अपना_
*राजेश जैन भिलाई*
🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Dwarka
          2. Girnar
          3. Jainism
          4. JinVaani
          5. Krishna
          6. Non-violence
          7. Rishis
          8. Tirthankara
          9. Violence
          10. आचार्य
          11. दर्शन
          12. राम
          13. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 1069 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: