24.05.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 24.05.2018
Updated: 25.05.2018

Update

चिंतामणि भगवन तुम, सर्व गुणों की खान, हम गुणमाला गाये के, पावे पद निर्वाण!

पार्श्वनाथ भगवान् का लास्ट दस जन्मो का नीचे लिखा वर्णन पढ़े और सोचे कैसे कमठ ने दस के दस भव में बदला लेने के लिए पार्श्वनाथ के जीव को मारा लेकिन उसका फल भी देखना कमठ नरक आदि नीचे जाकर दुःख उठता रहा और क्षमा के धारक पार्श्वनाथ का जीव कैसे स्वर्गो आदि में जाकर क्षमा की महिमा गाता रहा, और ऐसा सुनते है की अंत में कमठ के जीव को भी सम्यकदर्शन प्राप्त हो गया था, ओह..देखो कैसे दस दस भव तक जिसने मारा ऐसे जीव के प्रति भी पार्श्वनाथ की जीव का कैसा अनुपम क्षमा भाव, उसको क्षमा कर दिया और सम्यक्दर्शन की प्राप्ति में निमित भी बन गए..अद्भुत...ऐसे पार्श्वनाथ तीर्थंकर हमारे हृदय में सदा ही जीवंत रहे... आज हमारा अगर किसी से वैर-विरोध हो जाता है तो हम कैसे पागल जैसे हो जाते है, और उसके लिए अपने mind में कैसी कैसी विचार लाते है, उसका बुरा हो ऐसा सोचने लग जाते है, कदम कदम पर जो हमारे विचारों से सहमत नहीं होता उसको हम अपना विरोधी मान लेते है, और मन में उस व्यक्तित्व के लिए अलग ही विरोधी भाव बना लेते है, अगर किसी से दुश्मनी और वैर का भाव आपके अन्दर है तो अभी क्षमा कर देना नहीं तो आपका भी हाल कमठ जैसा हो सकता है....

भगवान् पार्श्वनाथ 10वे भव पूर्व - मरुभूति >> क्रोधी कमठ ने पार्श्वनाथ के जीव को सर पर पत्थर की शिला पटक कर मार डाला! [यहाँ से शुरू हुआ कमठ [क्रोध] तथा भगवान् पार्श्वनाथ [उत्तम क्षमा] के जीव का वैर विरोध ]

भगवान् पार्श्वनाथ 9वे भव पूर्व - हाथी >> हाथी [पार्श्वनाथ का जीव] नदी में कीचड़ में फस गया तथा सल्लेखना धारण कर णमोकार मन्त्र के ध्यान में मग्न होगया कुछ ही देर में एक कुक्कुट जाती का सर्प [कमठ का जीव मरकर सर्प होगया था ] ने पूर्व जन्म के संस्कार वश उसे डस लिया तथा हाथी शांत भाव से मर गया..

भगवान् पार्श्वनाथ 8वे भव पूर्व - शशिप्रभ देव >> पार्श्वनाथ के जीव को सर्ग में १६ सागर की आयु मिली उधर कमठ का जीव पांचवे नरक गया और भयंकर दुःख को भोगता रहा.., फिर आयु क्षय होने पर पार्श्वनाथ के जीव विद्याधर होगया जबकि वो कमठ का जीव अजगर सर्प की योनी में अगया...

भगवान् पार्श्वनाथ 7वे भव पूर्व - अग्निवेग विद्याधर >> एक दिन वैराग्य धारण कर अग्निवेग [पार्श्वनाथ के जीव] ने जैनेश्वरी दीक्षा धारण करली, एक बार वो मुनि ध्यान में लीं थे तब वहा पर अगजर आया [कमठ का जीव] तथा मुनि को देखते ही पूर्व भाव संस्कार के कारन क्रोधित होकर...मुनिराज को निगल गया...मुनिराज [पार्श्वनाथ के जीव] समता परिणाम के कारण..16वे स्वर्ग में देव हुए तथा...वो अगजर [कमठ का जीव] ६वे नरक चलागया...और २२ सागर तक नरको के दुःख भोगे...

भगवान् पार्श्वनाथ 6वे भव पूर्व - अच्चुत स्वर्ग में देव >> वहा पार्श्वनाथ के जीव ने २२ सागर के आयु का सुखो का भोग किया..तथा स्वर्ग से आयु पूर्ण कर महादुर्लभ मानव पर्याय मिलती है तथा जो कमठ का जीव नरक से निकलकर...भील की पर्याय में जन्म लेता है...

भगवान् पार्श्वनाथ 5वे भव पूर्व - वज्र नाभि चक्रवर्ती >> छः खंड प्रथ्वी पर राज्य करते हुए एक दिन एक महामुनिराज के दर्शन, उपदेश से वैराग्य तथा राजपाट को त्याग दिया, एक बार वज्र नाभि मुनिराज जंगल में घोर तपस्या करते हुई वन में जो कमठ का जीव नरक से निकल कर जंगल में भील बना था...उसने मुनिराज को देखते ही...उनके उपर बाण चला चला कर खूब उपसर्ग किया.

भगवान् पार्श्वनाथ 4वे भव पूर्व - अहमिन्द्र >> शांति से उपसर्ग सहकर...16वे स्वर्ग में देव [पार्श्वनाथ का जीव] 27 सागर तक दिव्यसुखो का भोग किया, उधर वो भील मरकर 7वे नरक गया और....जिसको कहा ही नहीं जा सकता ऐसे ऐसे दुखो को उसने नरक में भोगा

भगवान् पार्श्वनाथ 3वे भव पूर्व - राजा आनंद >> १६ वे स्वर्ग से आयु पूरी कर मध्यलोक में अयोध्या नगरी में महामंडलीक राजा आनंद के रूप में मनुष्य जन्म धारण कर लिया और कमठ का जीव सातवे नरक से निकल कर वही निकटवर्ती वन में सिंह हो गया, महामंडलीक राजा आनंद ने राज्य सुखो को उपभोग करते हुए एक बार मंदिर में नन्दीश्वर पूजन में मध्य में पधारे विपुलमति मुनिराज के मुखारविंद से तीनो लोको के अक्रत्रिम चैत्यालयो का वर्णन सुना तो उन्हें सूर्य विमान के जिनमन्दिर के प्रति अगाढ़ श्रद्धा हो गयी, अतः उन्होंने...कुशल कारीगरों से अयोध्या नगरी में मणि और सुवर्ण का एक सूर्य विमान बनवाया तथा उसमे रत्नमयी जिन प्रतिमाये विराजमान करवाई फिर अनेक प्रकार की महापुजाये की...उत्तर पूरण में लिखा है..उसी समय से सूर्य की उपासना चल पड़ी..आनंद नरेश ने एक दिन राज्यसभा में अपना मुख देखा तो सिर में एक सफ़ेद बाल देखते ही उन्हे वैराग्य हो गया तथा उन्होंने सागरदत्त मुनिराज के पास दीक्षा ग्रहण कर ली...पुनः गुरुचरणों में सोलह कारण भावनाओ के भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया!!! वे मुनिराज एक बार ध्यान में लीं थे तब सिंह वहा आकर उन्हें खा लेता है और मुनि समता भाव से उप्सेग सहन करके १३वे स्वर्ग में इन्द्र हो जाते है और सिंह मरकर ५वे नरक में चला जाता है...

भगवान् पार्श्वनाथ 2वे भव पूर्व - आनत स्वर्ग में देव >> इन्द्र होते ही इनको अवधिज्ञान से ज्ञात हो जाता है की उन्होंने पूर्ण जन्म में महामुनि बन कर कठिन तपस्या की थी..इसलिए उसके प्रभाव से मुझे इंद्र का वैभव प्राप्त हुआ है...अतः वे धर्म में रथ धर्मं फल में और ज्यादा श्रद्धा रखने लगे...वो कभी नन्दीश्वर दीप जाते पूजा करते, कभी विदेह क्षेत्र जाते सीमंधर स्वामी के समवशरण में दिव्यध्वनी का पान करते, लेकिन वो भावी तीर्थंकर..स्वर्गो के सुखो को भोगते हुए भी..उसमे आसक्त नहीं हो रहे थे...इस प्रकार उन्होंने बीस सागर तक दिव्या सुखो का भोग किया...!

भगवान् पार्श्वनाथ 1वे भव में - तीर्थंकर पार्श्वनाथ - इस भव में उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया...तथा...कमठ का जीव अन्तः महान क्षमा के धारक के चरणों में गिरं गया...तथा एक जगह ऐसा भी लिखा मिलता है की कमठ के जीव को सम्यक दर्शन भी प्राप्त हो गया था....

Picture from - 1008 parshwanath bhagvan, Shri Bina Barah Tirth kshetra near sagar (M.P)

SOURCE - First Paragraph written by me and, I copied content of 10 births from Samyakgyaan monthly magazine published from Jambudveep, Hastinapur by Aryika Gyaanmati mata ji. micchami dukkadam for any-kind mistake!! --- Nipun Jain

♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse [Non-Profit] Check It Out!

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संयमित भोजन करने वालों को कभी गोली की जरूरत नहीं होती: आचार्य विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar

अतिशय क्षेत्र पपौरा जी का जैन तीर्थों में विशेष स्थान है। देश की सांस्कृतिक विरासत कलाकृति प्राचीन मंदिरों की एक अलग ही पहचान है प्राचीन जैन संस्कृति कलाकृति हमें देश के अनेक प्राचीन मंदिरों में देखने को मिल जाती है। पपौरा जी का प्राचीन नाम पंपापुर है। पंपापुर के नाम से ही लोग इस क्षेत्र को पहचानते थे। मंदिर नंबर 1 में विराजमान आदिनाथ भगवान की प्रतिमा करीब 800 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। सन 1986 में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का पपाैराजी में चतुर्मास हुआ था। तभी से क्षेत्र में विकास शुरू हुआ है।

सुबह 9 बजे से शुरू हुए प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा जब तक हमें ज्ञान नहीं रहता तब तक हम अपने परिणामों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। मोक्ष मार्ग पर जाने के लिए ज्ञान जरूरी है। ज्ञान के द्वारा ही हमारा भविष्य सुधर सकता है। समोशरण में जाने के बाद कमठ का जीव पारसनाथ भगवान पर उपसर्ग करता रहा। कई जन्म जन्म तक यह क्रम चलता रहा जब वह जीव समोशरण में पारसनाथ भगवान के सामने बैठा हुआ था उसे ज्ञात होता है चित्र सामने आ जाता है। आचार्य श्री ने कहा ऐसे सौ सौ व्यक्ति भी आते हैं ज्ञान होता है कि अपना जीवन ज्यादा समय का नहीं है। यह बात उनके दिमाग में घर कर जाती है कि उनका जाना निश्चित है। विद्यासागर जी महाराज ने बताया कि हमें यह ज्ञात हो जाए कि कब जाना है आचार्य भगवन ने कहा कि हमें रात में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना चाहिए। जिस व्यक्ति ने जन्म दिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। हमारा इस संसार से जाना तो निश्चित है ही किसी को आगे जाना है किसी को पीछे। आचार्य श्री ने कहा अपनी संवेदनाओं को बनाये रखो उनको ढीला नहीं होने दो, अपनी इंद्रियों को बस में रखो इंद्रियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दो हमारा कल्याण हो जाएगा मोक्ष मार्ग का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा।

आचार्य श्री ने कहा नरक जाने की क्या जरूरत है हम युक्तिपूर्वक कार्य करके नरक जाने से बच सकते हैं। भोजन नहीं लेने से शरीर में कुछ तब्दीलियां आती ही हैं, लेकिन हम जो ठान ले वही होता है। मोक्ष मार्ग में कोई बाधा नहीं है हम तो सोच ले वहीं हो जाता है और वहीं से मोक्ष मार्ग का रास्ता प्रशस्त हो जाता हो जाता है। जो लोग एक बार भोजन करते हैं वह योगी कहलाते हैं जो लोग दो बार भोजन लेते हैं वह भोगी कहलाते हैं और जो व्यक्ति तीन बार भोजन करते वह रोगी माने जाते हैं। आचार्य श्री ने कहा जो लोग दो बार भोजन करते वह अच्छे श्रावक माने जाते हैं। अगर हम संयमित भोजन करेंगे तो गोली नहीं खानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि इतनी नजदीक है मुक्ति इतना नजदीक है मोक्ष इस रास्ते में एक्सीडेंट नहीं होता है।

कर्म करो फल की इच्छा मत करो -आचार्य ने कहा ज्ञान ऐसा संकेत देता है, कि ज्ञान सम्यक ज्ञान का ज्ञान करा जाते हैं। आचार्य ने कहा कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अंतिम समय में कहते हैं चलो आचार्य के पास चलें। वो कहते हैं मैंने ज्यादा कुछ तो नहीं किया, लेकिन मैं स्वाध्याय करता रहा। आचार्य श्री ने कहा मैंने उनसे कहा तुम चार प्रकार के आहार का त्याग कर सकते हो, लेकिन वे आहार का त्याग करके ही आए थे। आचार्य श्री ने कहा मन के अधीन रहना छोड़ दो तुम परीक्षा में पास होना चाहते तो प्रश्न छोटे थोड़ी होंगे। विद्यासागर महाराज ने बताया कि हमें सिर्फ अपने कर्मों की ध्यान देने की जरूरत है। वह भी फल की इच्छा किए बिना।

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परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिका श्री अकम्पमती माता जी की संघस्थ आर्यिका श्री अवगममति माताजी का समाधिमरण ब्यौहारी जिला शहडोल मप्र में आज 24 मई को प्रातः 11:15 बजे धर्मध्यान पूर्वक हो गया है। अंतिम डोला शाम 5 बजे की संभावना है '

ॐ शांति - ॐ शांति - ॐ शांति

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Update

*परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज* के परम आशीर्वाद और _*मुनिश्री क्षमासागरजी महाराज*_ की प्रेरणा से आयोजित

🥇 *जैन युवा प्रतिभा सम्मान -२०१८* 🥇
*_Young Jaina Award - 2018_*

आवेदन आमंत्रित है...

मैत्री समूह प्रति वर्ष समूचे भारतवर्ष में शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता प्राप्त करने वाले जैन छात्र -छात्राओं को *Young Jaina Award* से सम्मानित करता है।

वर्ष 2018 में

*10वीं में - 85%*

*12वीं में*
*- विज्ञान (Science) संकाय में - 80%,*
*- वाणिज्य (Commerce), कला (Arts) संकाय में - 75%*

या उससे अधिक अंक अर्जित करने वाले और राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा अथवा प्रशासनिक सेवा में चयनित जैन छात्र - छात्राओं के आवेदन आमंत्रित है।
अपना आवेदन फ़ॉर्म 31 जुलाई 2018 के पूर्व www.MaitreeSamooh.com पर ऑनलाइन (online) भर सकते हैं ।

_खेलों में राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले, विकलांग या अपने राज्य में मेरिट सूची में स्थान पाने वाले छात्र / छात्राओं के लिए निर्धारित अंक सीमा की बाध्यता नहीं रहेगी।_

*आवेदन फ़ॉर्म की लिंक*: https://tinyurl.com/yja2018

*आवेदन की अंतिम तारीख*: 31 जुलाई 2018

*आवेदन सम्बंधित पूछताछ*:
+91 94254 24985,
‭+91 88977 43363‬,
+91 89836 94093,
‭+91 97735 36530‬

*मैत्री समूह*
+91 76940 05092
+91 94254 24984

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जब हम मरेंगे ही नही तो डरना कैसा,अच्छे कर्म इतने बढ़ा दो की मरने का भय ही खत्म होजाये: आचार्य विद्यासागरजी #AcharyaVidyasagar #ShareMaximum 😍 Soul is Immortal

Why to fear of dying when we don't die? Increase your good karma to the extent that you won't have to fear of anything.

News in Hindi

पहली बार ऐसा कुछ लिखा हैं जिसको #share करने को नहीं कहूँगा 85,000 members से!! ये क्या हो गया हैं.. Society के Role-Model महाराज लोगो को और उनके कट्टर follower ने तो कमाल करदिया हैं!!!!

लगता हैं चन्द्रगुप्त मोर्य द्वारा देखे गए सपने ही अपना फल दिखा रहे हैं... अब तो महाराज लोग एक दुसरे को मंच से गलत शब्द कहने लग गए हैं.. point-out करने लग गए हैं.. और इसलिए उनके कट्टर भक्त श्रावक भी महाराज लोग को whatsapp groups/facebook group/pages में कुछ भी लिखने से डरते नहीं और बड़ा अच्छा मानते हैं वैसा लिखना और कहना!! मतभेद रहना कोई बड़ी बात नहीं हैं.. Ideology अलग हो सकती हैं.. लेकिन अगर कषाय हो रही हैं... आप अपने को सम्यक द्रष्टि कहिये अच्छा हैं, परन्तु दुसरे को मिथ्या कहने की जो होड़ लगी हैं तो समझना होगा मामला बिगड़ रहा हैं, आपकी अपनी inner peace भी ख़तम हो रही हैं और आप दुसरे को भी कषाय करवा रहे हैं, अलग अलग विचारधारा के कारण दो पक्ष बन जाते हैं.. दोनों अपनी बात कहते हैं.. उन दोनों साइड के श्रावक तालिया बजा अपनी और अपने साधू के कषाय को बढ़ावा देते हैं, श्रावक लोग आजकल महाराज लोगो तक गलत और अधूरी जानकारी देते हैं, ध्यान रखना अगर आपके कारण किसी मुनिराज को कषाय होती हैं या उनके भाव बिगड़ते हैं या समाज के पंथवाद बढ़ता हैं आपको डेंजर कर्म बंध होने वाला हैं.. आपको तो अगर कोई गलत बात पता भी चलती हैं तो उनको Publically नहीं करना चाहिए और गुण देखने चाहिए परन्तु अब तो 'मेरे महाराज' और 'तुम्हारे महाराज' वाला ड्रामा होता हैं, महाराज लोग 4-5km की दुरी से चातुर्मास करते हैं और 5 महीने में दोनों तरफ से कोई एक दुसरे से संपर्क नहीं करते हैं और नाही दर्शन करने आते हैं.. क्यों? कुछ लोग बोलते हैं कुछ महाराज लोग के पास परिग्रह हैं इसलिए उनका वंदन नहीं किया जाता लेकिन ये अधुरा सत्य हैं.. आज बहुत महाराज लोग परिग्रह नहीं रखते तब भी एक महाराज दुसरे के पास दर्शन करने नहीं जाते समझ नहीं आता... मान आगे आरहा हैं या उनका पंथ विशेष के प्रति झुकाव? निश्चित हैं पंथ मुख्य और महावीर पथ गौण हो रहा हैं..

अगर मैं 1 महारज को अपना गुरु मानता हूँ तोह दुसरे महराज की कही कितनी भी अच्छी बात हो accept नहीं कर सकता!! बस यही पंथवाद.. मान /ego की problem आरही हैं! उल्टा उनमे कमिय देखूंगा.. अगर आप कमिय निकाले जाओगे तो फिर भगवान् महावीर में भी कमिय निकल जाएगी!!:) कुछ लोग बोलते हैं की दुसरे पक्ष वाले जब बहुत ज्यादा बोलते हैं तब हम चुप नहीं रह पाते तो फिर उनमे और आप में क्या फर्क रह गया? आप भी कषाय करने लग गए ना.. अभी हाल ही में 3 बार ऐसा हो चूका हैं जब अलग अलग महाराज लोगो ने point out किया मंच पर.. और उनको श्रावको ने तालिया बजाई हैं.. बाद में ऐसी बातो को whatsapp & facebook में फोटो विडियो डाल डाल कर बहुत अच्छा लगता हैं;.. भैया कषाय का मजा आरहा हैं अभी!! मतलब धर्मं का मजा जो कषाय रहित होने में आता हैं उसका अभी तक एक बार भी स्वाद नहीं लिया आपने!!

कुछ कट्टर श्रावक इस आग में घी डाल रहे हैं और enjoy कर रहे हैं.. कुछ लोग जो महाराज लोग के पास रहते हैं वे भी कट्टरता फैल्रा रहे हैं, वे अपनी विचारधारा दुसरे पर थोपना चाहते हैं, इस पेज में Statistic ke according 94% Youth hain between 19-31 age.. मैं उसी youth से expect करता हूँ please आप ही सोचे और समझे!! क्या आपको पंथ के नाम पर लड़ता में मजा आता हैं तो ठेक हैं लड़ो भाई.. कुछ नहीं हो सकेगा.. धर्मं बहुत broad हैं.. जो भी पंथवाद का कट्टरता में पड़ा हैं उसका सपोर्ट नहीं करे श्रावक हो या साधू!!! जिनवाणी पहले हैं फिर साधू हैं.. साधू को जिनवानी के according चलना होता हैं!! इन रोज रोज के ड्रामे से लगता हैं अब तो हम admin को की हम टाइम waste करते हैं अपना क्योकि लोग को आजकल हम लोगो को पूजन-अभिषेक विधि में लड़ने में मजा आता हैं और दुसरो को गलत कहने में निचा दिखाने में enjoy कर रह हैं!! इसे सिर्फ उस महाराज की छवि की बात नहीं बल्कि जैन धर्मं और दिगम्बर धर्मं की छवि खराब होने लगी हैं!! लोग कटने लगे हैं.. youth fedup हो रहा हैं इन dramo से.. और एक बार हैं जो बड़े बड़े पदों पर बैठे लोग हैं उनको कहो तो वे कहते हैं हम मौन हैं इस विषय पर नहीं बोलते?? अरे जितना नुकसान हमें सज्जन लोगो के चुप रहने से हुआ उतना किसी से नहीं!! सोचो भैया सोचो.. हम भी 1-2 बार बोलकर चुप हो जायेंगे.. फिर क्या होगा??! we are reflection of society!! Blame-game ले डूबेगा हमें..

Please कमेंट बॉक्स में किसी भी महाराज का नाम लेकर उनपर कमेंट ना करे.. ताली एक हाथ से नहीं बजती!! ये हालत तो दिगम्बरो का हो रहा हैं और बाते हम बड़ी बड़ी करते हैं दुनियाभर की.. अनेकान्तवाद की कोई क्यों बात नहीं करता? वत्सल्ल्य कहा गया? हमें पता हैं हो सकता हैं कुछ मेम्बर हम admin को भी criticize करेंगे लेकिन हमने वही कहा जो दिख रहा हैं और चल रहा हैं आज कल...

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