23.06.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 25.06.2018
Updated: 25.06.2018

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भोजन में नमक कम पड़ जाए तो बिगड़ जाता है स्वाद: आचार्यश्री #AmazingWords

बुधवार को आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने अपने मांगलिक प्रवचन में कहा कि भगवान के सामने आप लोग अष्ट द्रव्य चढ़ाते हैं। उसमें से एक नैवेद्य होता है। आचार्यश्री ने कहा नैवेद्य का मतलब भोजन होता है। यह और कोई वस्तु नहीं, आप लोगों ने कभी सोचा हम रोगी हैं। रोगी सोचता है हम कब ठीक होंगे। यह बीमारी कब दूर होगी। रोगी तो रोता है। रोगी सोचता है रोग ठीक होगा कि नहीं होगा। आचार्य भगवन कहते हैं कि जब जब हम भोजन करें उस समय यह सोच लें कि भोजन कब छूटेगा। इस भोजन से कब मुक्ति मिलेगी। भगवान आपने यह भोजन कैसे छोड़ दिया, हम लोगों को तो दवाई भी कम पड़ गई। भोजन में नमक कम पड़ जाए तो स्वाद बिगड़ता है भोजन करने से तात्कालिक भूख का शमन हो जाता है। शाम के भोजन करने से सुबह तक भूख से राहत मिल जाती है। किंतु हमारी भूख हमेशा के लिए शांत नहीं होती। भोजन से रोग का शमन नहीं हो रहा है तो भोजन को बदल दो आपको भोजन करने में आधे घंटे की विलंब हो जाए तो चल ही नहीं सकता। बच्चों से भी हमारी आदत खराब है। जब भी हमारे मन में आता है हम खाने लग जाते हैं दवाई तो सिर्फ दो बार ही लेना पड़ती है। हम दिन में कितनी बार भोजन करते हैं क्या-क्या खा जाते हैं। यह हमको भी याद नहीं रहता। उनको रोग नहीं बहुत महारोग हो जाता है।

मानव चिकित्सा होती है देवों की चिकित्सा नहीं होती
आचार्यश्री ने कहा यह मानवीय चिकित्सा है देवों की चिकित्सा नहीं होती है। भगवान से हम क्षुधा रोग निवाराय कहते हैं। जब भूख लगती है। असहनीय वेदना होती है, उनका मरण नहीं होता। भूख लगने पर भी ऐसी तड़पन उनको भी होती है। प्रत्येक संसारी प्राणी जिनके यहां भोजन बनता है। दवाई नहीं बनती इनके यहां विश्वसनीय है। एकासन करने से रोग अपने आप ही शांत हो जाता है। आप लेते ही रहते हैं लेते ही रहते हैं जो दवाई लेते हैं हम उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहते हैं। आचार्यश्री ने कहा हे भगवान हमको ऐसी आयु दो कि भोजन की आवश्यकता नहीं पड़े। यह सिर्फ परमेष्ठी का होता है। उनको क्षुधा रोग नहीं होता है।

भोजन करते समय सद्भभावना होनी चाहिए
: आचार्यश्री ने कहा कि भोजन को दवाई मानकर लो यह दवाई ले रहा हूं, इस उम्र में भी भावना नहीं पाओगे की दवाई कब छूटेगी। आप लोग संयम धारण करते हो। आपके कर्मों की निर्जरा हो जाती है। भोजन अच्छा नहीं लग रहा है। दवाई का स्वाद थोड़ी ना अच्छा होता है। भोजन में कभी कोई कमी हो जाए तो घर वालों के ऊपर नहीं टूटना चाहिए। भोजन करते समय ऐसी सद्भभावना होना चाहिए कि कोई भी आ जाए तो उसको भी भोजन करा दें। भोजन को स्वाद के लिए नहीं भूख को शांत करने के लिए अपने जीवन चलाने के लिए तपस्या करने के लिए दवाई रूपी भोजन करो तो कभी दवाई की जरूरत नहीं पड़ेगी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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आचार्य श्री सम्भवसागर जी ऋषिराज का आजीवन अन्न का त्याग,षट रसों का त्याग(नमक,मिर्ची, खट्टा, घी, तेल, कड़वा, मसाले) मुनि दीक्षा-1967

52 वा संयमवर्ष... सम्मेदशिखर जी मे विराजमान

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Dr. Manju Jain (Spiritual healer through Jaina mantra Bhakatamar Stotra) talks with Dr. Mayuri Doshi from Edison New Jersey.. about Bhaktamara Stotra and its unbelievable results.. 🙂 #worthyWatch #BhaktamaraStora

Her spiritual inclination and immense faith in her spiritual healing has cured incurable diseases - defying logic & science. Even doctors have endorsed her unique style of spiritual healing and the miraculous results obtained - reducing the sufferings of her innumerable patients. She has worked on cancer, psoriasis, kidney failure, tuberculosis, skin problems and many more - successfully. She has given surprising results on a patient suffering from deflection in spinal cord - thus avoiding surgery on his spinal cord. In another case, the patient suffering from throat cancer who had lost his voice - got his voice restored - due to the intense spiritual healing process of Dr. Mrs Manju Jain. She attributes these phenomenal recovery - not to any magic, but, to the immense healing powers in the 48 shlokas /mantras of Bhaktamar Stotra.

क्यों आचार्य श्री बुंदेलखंड/mp में रहते हैं??

प्रवचन के पूर्व किसी सज्जन ने दान के बारे में अपनी बात रखी।हंसी के तौर पर उनने कहा - बुंदेलखंड के लोग बड़े कंजूस है ये दान नही देते।यह सुनकर आचार्य गुरुदेव मन ही मन मुस्कुराने लगे और मंद मंद मुस्कान उनकेचेहरे पर आ गयी, तो सभी सभा मे बैठे श्रद्धालु गण हँसने लगे।आचार्य महाराज ने प्रवचन के समय कहा - अभी एक सज्जन कह रहे थे कि ये बुन्देलखण्ड के लोग धन* *का त्याग नही करते। देखो*(मंचासीन सभी मुनिराजों की और अंगुली का इशारा करते हुए कहा) बुंदेलखंड वालो ने हमे चेतन धन दिया है ।ये इतनी बड़ी दुकान है । आप कह रहे थे की येदान नही करते । उन्मुक्त हंसी के साथ बोले - ये बुंदेलखंड के श्रावक जड़ का नही चेतन धन का दान करते है।* *हमारी यहाँ अच्छी दुकान चलती है, इसलिए तो बुंदेलखंड छोड़ा नही जाता है। खूब भगवान की प्रभावना* *होती है । फिर थोड़ा रुककर बोले कि - भगवान की क्या प्रभावना? होनहार भगवान को तैयार करना* *ही भगवान की प्रभावना है

इसलिये तो* *गुरुजी बुंदेलखंड को अपना केंद्र मानते है।शिक्षा... आचार्य गुरुदेव जड़ को महत्व नहीदेते है। चेतन को धन की संज्ञा देते है* । *आत्म वैभव ही सच्चा वैभव है और जिन्हें* *वह प्राप्त है, उन्हें अन्य किसी वैभव की जरूरत नही । आत्म वैभव के प्राप्त होते ही दुनियां के वैभव फीके लगने लगते हैं।*

रजत जैन भिलाई

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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 51 वे मुनिदिक्षा दिवस के उपलक्ष्य में उनके जीवन-व्यक्तित्व पर आधारित फीचर फिल्म ‘विद्योदय’!! #movie #AcharyaShriLife

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