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आचार्य डाॅ. शिवमुनि ने कहा: तुम मुझे समय दो मैं तुम्हे शांति दूंगा।
जितना ज्यादा धन उतने ही ज्यादा लोग दुःखी है। आसक्ति दुःख का कारण है।
उदयपुर 17:7:2018। श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ. शिवमुनि महाराज ने कहा कि कतनी जिंदगी गुजर गई है और कितने साल और जीना है जीवन में कितना छल-छादम करते है, जो तुम दूसरांे के साथ करते हो एक दिन समय घुमेगा तो वही तुम्हारे साथ होगा।
पुष्करवाणी ग्रूप ने बताया कि वे आज सुभाष नगर स्थित स्थानक में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य सुख,शंाति एवं आनन्द प्राप्त करने की जगह ढूढंना है लेकिन वह नहीं मिलती है। उसे इन सभी की खोज के लिये से जगह को ढूंढना चाहिये।
हमें प्रभु महावीर की आत्मदृष्टि मिली है। उन्होंने साढ़े बारह वर्ष की कठोर तप साधना के बाद जो अमृत पाया उसका झरना आगम वाणी के रूप में हमारंे पास बह रहा है लेकिन हम उसमें नहा नहीं पा रहे है। हमारी आत्मा के उपर आठ कर्म का लेप लगा है। क्या कभी आपके मन में इन आठ कर्मों को दूर करने की इच्छा हुई है।
उन्होंने कहा कि यह संसार अध्रुव, अशाश्वत है और दुःख बहुल है। ऐसे इस संसार में रहते हुए मनुष्य कौनसा ऐसा कर्म करें की जिससे दुर्गति में न जाएं। आपका यह शरीर कितने दिन साथ देता है। आधि-व्याधि और उपाधि से भरे इस संसार में सुख कहां है। उसे ढूंएने के लिये तपस्या करनी पड़ती है। तुम देह को जितना सुकुमाल बनाओगें उतना ही दुःखी होगें। भगवन ने शरीर को सुकुमाल नहीं बनाया।
आचार्य ने कहा कि संत कबीर कहते है कि हाड़ जले सो लाकड़ी, यह तन जब श्मशान की राख बन जाता है तो मनुष्य की हडियां लकड़ी की तरह जलती है। केश जिनको बड़े लाड़ से पाला शेम्पू, तेल लगाया यह केश घास की तरह जलती है। श्मशान में जब तक रहते है तब तक वैराग्य होता है। बाहर आते ही सब भूल जाते है। जब श्मशान में अर्थी को ले जाते है तो राम नाम सत्य हैं बोला जाता है। उस मरे हुए मनुष्य के लिए नहीं कहा जाता है जो साथ चल रहे है, उनके लिए है कि एक राम का नाम ही सच्चा है। समझों तुमनें इशारों को क्यों उलझा रखा है। संसार की उलझनों में कब तक रहना है। इस संसार में एक दिन में इस किराए के मकान को खाली करना है।
उन्होंने कहा कि जीवन में होश बहुत आवश्यक है। देह और आत्मा का अलग-अलग अस्तित्व है। कितना चाहिए इस शरीर को खाने-पीने और पहनने के लिए इस शरीर के भीतर एक शाश्वत आत्मा है, उसके लिए क्या कर रहे हो। कोई जगाने नहीं आएगा आपको स्वयं पुरूषार्थ करना होगा। संसार बढ़ाने के लिए कितनी दौड़ धूप करनी पड़़ती है। संसार में सब धोखा है, कोई आपको पूछता है तो उसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ जरूर है। उसके बिना बेटा भी बाप से बात नहीं करता हैं। जितना ज्यादा धन उतने ही ज्यादा लोग दुःखी है। आसक्ति दुःख का कारण है। इस संसार में कुछ भी तुम्हारा नहीं है। यह देह भी तुम्हारी नहीं है तो बेटा तुम्हारा कैसे हो सकता है। सुभाष नगर वालों सुभाष बोस ने कहा था कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा और मैं कहता हूं तुम मुझे समय दो मैं तुम्हे शांति दूंगा।
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सामायिक का महत्त्व और विधि
पूछा गया - सबसे कठिन धर्म क्या?
समाधान होगा - सामायिक या समता में रखना |
प्रश्न पूछा गया - सबसे सरल धर्म क्या?
समाधान होगा - सामायिक या समता रखना |
उपवास में भूख सहनी होती है |
आतापना में ताप सहना पड़ता है |
सर्दी भी सहन करनी पड़ती है |
किन्तु सामायिक में तो कोई कष्ट नहीं होता |
बस, आसन जमाया और आराम से ध्यान, स्वाध्याय की क्रिया में रम जाओ |
कष्ट कहां है सामायिक में?
सबसे सरल क्रिया है - "सामायिक "
सामायिक साधना ~ सामायिक शुरू करने से पहले कुछ जानकारी आवश्यक होती है |
सामायिक के उपकरण - मुखवस्त्रिका, माला, आसन, पूंजनी और चद्दर |
स्थान - एकांत या उपासना कक्ष |
सावधानी - खाली पेट अथवा अल्पाहार |
साधना - जप, ध्यान, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, योगासन |
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News in Hindi
यह फ़ोटो उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म का वर्ष 1947 का है।
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चार सालों तक डॉक्टरी सेवा देने के पश्चात घाणेराव-मालेगांव की डॉ हिना हिंगड़ 18 जुलाई को करेगी सूरत में #जैन दीक्षा ग्रहण।
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किसी के मन मे वैराग्य के भाव कब अंकुरित हो जाए? यह कहा नही जा सकता। जैन धर्म के अंतर्गत वैराग्य के पथ पर चलना, तथा इसकी पूर्ण पालना करना सचमुच में खांडे की धार (तलवार की धार पर) पर चलने जैसा ही हैं,। इस मुश्किल डगर के बावजूद प्रतिवर्ष सैकड़ों युवक-युवतियां व छोटी-बड़ी उम्र के श्रावक- श्राविकाएं इस पथ को खुशी-खुशी चुनते हैं। इस 18 जुलाई को जो युवती दीक्षित होने जा रही हैं, वो पिछले चार वर्षों से मालेगांव महाराष्ट्रा में "अपना दवाखाना" नामक हॉस्पिटल में निस्वार्थ रूप से एक डॉक्टर के रूप में सेवाएं प्रदान करती रही हैं। मूलतया घाणेराव राजस्थान के निवासी व महाराष्ट्रा में मालेगांव जिला नासिक की प्रवासी 30 वर्षीय डॉक्टर हिना सपुत्री अशोककुमार हिंगड़ इस बुधवार 18 जुलाई को सूरत के वेसु विस्तार में स्थित विजयलक्ष्मी हॉल में श्वेताम्बर जैन धर्म के लब्दिसूरी समुदाय के आचार्य श्रीमद विजययशोवरम सूरीश्वर म, सा, वीर यश सूरी जी म,सा, भाग्ययश सूरी जी म,सा, दर्शन यश सूरी जी म,सा, भद्रबाहुविजय जी आदि म,सा एंव साध्वी वर्या वंदन माला जी म,सा, एंव विनेकमाला जी म,सा आदि साधु-भगवन्तों के पावन सानिध्य में दीक्षा ग्रहण कर संयम व समता के अद्धभुत संसार मे जा बसेगी। यह उल्लेखनीय हैं कि डॉ हिना ने महाराष्ट्रा के अहमदनगर शहर के एक कॉलेज से MBBS (गोल्ड मेडलिस्ट) की पढ़ाई कर चार वर्षों तक मालेगांव में बतौर डॉक्टर के रूप में सेवारत रही। पूर्व में तय लक्ष्य के चलते डॉ हिना के मन मे पुनः वैराग्य की भावना जाग्रत हुई। और इसी उद्देश्य से उसने जैन साधु-साध्वियों के विहार के दौरान लगभग एक हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर अपने आप को वैराग्य की कसौटी पर कसा। जिसमें हिना ने अपने आप को इस पथ पर अग्रसर होने हेतु सक्षम पाया। हालांकि हिना के मन मे संयम पथ की औऱ अग्रसर होने के भाव तो महज 18 वर्ष की उम्र में तथा कक्षा 12 वीं में अध्ययन कर रही थी तब ही जग गए थे।कक्षा 12 वीं की पढ़ाई के पश्चात हिना ने अपने संसार पक्षीय भाई व लब्दि सूरी सम्प्रदाय में दीक्षित मुनि श्री तीर्थ यश विजय महाराज के सान्निध्य में 48 दिवसीय उपध्यान किया। इस उपध्यान के पश्चात ही हिना ने इस भौतिक संसार से मुक्त होकर संयम की राह पर चलने की ठानी। हिना के इस राह पर अग्रसर होने में अपने संसार पक्षीय भाई महाराज साहब के प्रवचनों का गहरा असर रहा हैं। हालांकि 12 वीं की पढ़ाई के दौरान हिना के मन मे जब दीक्षा के भाव जगे थे तब इस निर्णय पर उनके पिता खुश नही थे। क्योंकि वे हिना को डॉक्टर बनाना चाह रहे थे। इस लिए वह चाहते हुए भी 12 वीं की पढ़ाई पश्चात हिना दीक्षा नही ले पाई। पापा के स्वप्न को पूर्ण करने हेतु हिना डॉक्टर तो बन गई, लेकिन उसके मन मे दीक्षा लेने के भाव तो यूं के यूं बने हुए थे। मालेगांव में निवास कर रहे हमारे मित्र डॉ श्री गोकुल चोरड़िया ने बताया कि माता धनवंती एंव पिता श्री अशोक हिंगड़ की 6 बेटियों में हिना सबसे बड़ी व लाडली बेटी हैं। पिता श्री अशोक कुमार हिंगड़ का मालेगांव के तांबा कांटा के निकट नेहरू चोक में पिछली आधी सदी से भी ज्यादा पुराना साड़ी एंव सराफी का पुश्तेनी व्यवसाय हैं। जानकारी देते हुए वेसु जैन संघ के श्री श्रेणिक भाई जैन (मोंटू भाई) ने बताया कि संयम रथ पर सवार डॉ हिना हिंगड़ की वर्षीदान यात्रा मंगलवार 17 जुलाई को प्रात 8,30 बजे वेसु स्थित सोमेश्वर सुरजमण्डल पार्श्वनाथ जिनालय से प पु गुरुदेव श्री जी के सौमेया के साथ प्रारम्भ होगी। प्रात 10,30 बजे वेसु के विजयलक्ष्मी हॉल में गुरु भगवन्तों के प्रेरक प्रवचन पश्चात दोपहर 2,30 बजे संयम वस्त्रों को केसर छांटना, सांझी-संगीत की विधि सम्पन्न होगी। तथा रात्रि में संयम सम्मान समारोह रखा गया हैं। उसके बाद 18 जुलाई को वेसु स्थित जोली रेजीडेंसी के समीप विजयलक्ष्मी हॉल में प्रात 9 बजे आचार्य श्री यशोवर्मसूरीश्वर जी आदि गुरु भगवन्तों के सान्निध्य में दीक्षा विधि प्रारम्भ होगी व डॉ हिना इस भौतिक व अंधियारे जगत को त्याग देगी तथा संयम तथा समता के अद्धभुत व अलबेले संसार मे जा बसेगी। उसके पश्चात दोपहर 1 बजे स्वामी वात्सल्य होगा। यह उल्लेखनीय हैं कि जैन धर्म मे वैराग्य का पथ बड़ा ही जटिल है। व इस पथ पर विरले ही चल पाते है। इस पथ के पथिकों के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे पावन-पवित्र महाव्रतों के तहत जो अर्हताएं तथा नियम-नियमावली निश्चित है। उसमें रात्रि भोजन-पानी (तथा दवाई आदि का भी) पूर्णतया त्याग।रहने का कोई स्थाई ठौर ठिकाना नहीं। प्रतिदिन मिलों पैदल विहार। स्वयं ढोए इतने नाम मात्र के सीमित वस्त्र-पात्र आदि। तथा किसी भी तरह के बाह्य आकर्षणों से पूर्णतया तिलांजलि। परिवार, सगे-सम्बन्धी किसी के प्रति भी मोह के भाव नही। धन-सम्पदा आदि को पास में या बैंक आदि में रखना तो दूर की बात,उसे अपरिग्रह के नियमो की पालना के तहत छूना तक स्वीकार्य नही हैं। पूरे दिन आत्म कल्याण के उद्देश्य से धर्माराधना में लीन। गोचरी (भिक्षा) के द्वारा एक नियत स्थल पर बैठ कर अपने साधु समुदाय (साधु-साध्वी पृथक रूप से) के साथ बैठ कर भोजन ग्रहण करना। किसी भी तरह की खाद्य सामग्री रखना वर्जित। जलते चूल्हे पर से व फ्रिज आदि में रखी सचित सामग्री से सीधे ग्रहण करने से पूर्ण परहेज। कच्चे पानी की बजाय पक्के पानी का उपयोग। तमाम भौतिक आकर्षणों व सुख-सुविधाओं को सर्वथा तिलांजलि। न किसी के प्रति कोई राग और न ही किसी के प्रति कोई द्वेष के भाव। बस धर्माराधना व आत्माराधना, त्याग-तपस्या आदि अनेक अर्हताएं निश्चित है। तथा अपने नेतृत्व कर्ता व धर्म गुरुओं के निर्देशानुसार अनुशासित रूप से पालना करना। सर्दी हो या गर्मी या फिर बरसात प्रतिदिन भोर के समय जग कर धर्माराधना तथा व शाम को पलेवणा व नित्य प्रतिक्रमण आदि निर्धारित क्रियाएं व धार्मिक-आध्यात्मिक विधियां की पालना। इस पथ पर चलने वालों के लिए सैकड़ों और भी पालनाएँ, अर्हताएं, नियम-नियमावली बनी हुई हैं। जो कि हमारे-आपके जैसे भौतिक संसार में रमते-खेलते-दौड़ते अपनी आजीविका कमाते लोगों के लिए एक असम्भव सी व मुश्किल सी डगर जैसी ही है। कर्मों के उदय बिना दीक्षा जैसे उच्च भावों का संसारी जीव के मन-मस्तिष्क में पनपना सम्भव नही हैं। इसके बावजूद इस पथ पर चलने वालों की कोई कमी नही। देश-विदेश में साधारण इंसान से लेकर इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, CA, MBA, इंटीरियर आर्किटेक्ट, इवेंट, फैशन डिजायनर जैसे उच्च अध्ययन कर ऊंचे पैकेज के साथ जॉब करने वाले अनेक डिप्लोमा-डिग्री धारी, सैकड़ों-हजारों करोड़ों की धन-संपदा को तिलांजलि दे कर अनेक धन-कुबेरों ने इस पथ को स्वीकारा, व स्वीकार भी रहे हैं।
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गुरुभगवंतों का भव्य प्रवेश कैसे हो...,
2018 चातुर्मास प्रवेश की शुरुआत हो चुकी है । ज्यादातर प्रवेश अगले दिनों में होने जा रहे है । देश के सभी गांवों और शहरों में प्राणिमात्र के परम् उपकारी गुरुभगवंतों का चातुर्मासिक प्रवेश है...
गुरुभगवंतों के चातुर्मासिक प्रवेश को किस तरह जैनत्व की जयवन्ता के साथ आत्मीय आनन्द के पर्व रूप में रूपान्तर करें...
1). प्रवेश स्थल से स्थानक भवन / स्थल की दुरी और समय के लिए - गुरुभगवंतों से मिलकर सुनिक्षित करें.
(2). स्थानीय पोलिस स्टेशन से जुलुस की अनुमति अवश्य लेवें. व उनको सूचित करें।
(3). प्रवेश यात्रा - जुलुस का संचालन महिला और पुरुष दोनों मण्डलों को सौपें, जिससे अनुशासन बना रहें.
(4). सभी पुरुष सफेद वस्त्र और महिलायें चुनरियाँ या लाल रंग का पूर्ण ड्रेस पहनें.
(5). जुलुस में अधिक से अधिक जैन ध्वज अवश्य लहराएँ । ध्वज लहराने से श्रद्धा जागृत होती है और रौनक भी बढ़ती है.
(6). जिनशासन के गीत / स्लोगन आदि सभी जन बोलें - जैनम् जयति शासनम् - अहिंसा परमों धर्म - जो महावीर के गुण गायेगा, भव सागर तर जायेगा, गुरूजी हमारो अंतर्नाद - हमने आपो आशीर्वाद, आदि आदि.
(7). सड़क लाइन बनाकर चलें.
(8). मुख्यता प्रवेश सुबह ही होता है अतः विहार प्रवेश यात्रा में खाने - पीने की वस्तुएं रखने की जरूरत नही है ।
(9). प्लास्टिक का उपयोग नही करें । पेपर प्लेट, गिलास या कोई भी चीज इधर उधर नही फेंकें - स्वछता का विशेष ध्यान रखें । अल्पाहार भवन में ही रखे जिससे इन चीजों के उपयोग की जरूरत ही नही होगी.
(10). भवन पहुँचने के बाद गुरुभगवंतों का प्रवचन, मांगलिक अवश्य सुने.
(11). अधिक से अधिक संख्या में पूरे परिवार और स्नेहीजनों के साथ प्रवेश जुलूस में पधारे - जिससे गुरुजनों सहित सम्पूर्ण समाज में "चातुर्मास" के प्रति आध्यात्मिक उत्साह का वातावरण बनें, आप भी पुण्यार्जन के सहभागी बनें.
(12). आशा करते है - चतुर्विद्ध संघ में शुद्ध जिनवाणी (वितरागमयी वाणी) की तरफ आकर्षण और आराधना - वर्ष दर वर्ष बढ़ती रहेगी, शुभम् अस्तु l
⛳ जिनशासन जयवन्त रहें 🚩 🚩
🚩 🚩 जैनम जयति शासनं - जय जय जय
आशा करते है, पुष्करवाणी ग्रूप द्वारा प्रस्तुत जानकारी से सम्पूर्ण समाज, परिवार में जागृति के साथ खुशहाली आयेगी । हम सुकृत की ओर एक एक क़दम आगे बढ़ते ही रहेंगें....
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मेरे पुष्कर गुरुवर...
ज़िन्दगी में मेरी...
ऐसा मुकाम आ जाए...
जब भी जुबां खोलूं...
सिर्फ तेरा ही नाम आ जाए...
तरसे निगाहे गुरुवर...
सिर्फ तेरे ही दीदार को...
जिससे भी कहूं "जय गुरु पुष्कर"...
वो बस तेरा ही सेवक हो जाए...!!
@kp@
*🙌अपना तो है ही गुरु पुष्कर🙌*
यह फ़ोटो उपाध्याय पूज्य श्री पुष्कर मुनि जी म का वर्ष 1947 का है।
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कहीं भी जाओं लेकिन यदि माता-पिता से आशीर्वाद नहीं लिया तो आपका मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, स्थानक जाना बेकार: आचार्य डाॅ.शिवमुनि।
उदयपुर 16:7:2018। श्रमणसंघीय आचार्य डाॅ.शिवमुनि महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में माता-पिता और गुरू इन तीन शब्द अनमोल है। मंदिरं, मस्जिद एवं गुरूद्वारा कहंी भी जाओं लेकिन यदि माता-पिता से आशीर्वाद नहीं लिया तो आपका मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, स्थानक जाना बेकार है। वृद्ध माता-पिता की सेवा करना ही सच्ची पूजा, प्रार्थना और आराध्ना है। माँ श्रद्धा से भरा हुआ शब्द है।
वे आज महावीर सेवा समिति सेक्टर 5 में आयोजित विशाल धर्मसभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम सभी भाग्यशाली है कि हमें भगवान महावीर के शासन में जन्म मिला है। हम चैरासी लाख जीव योनी में भटके है। हम तीर्थकरों के समवसरण में भी गए होगें लेकिन हमनें श्रद्धा के साथ भगवान की वाणी सुनी नहीं होगी,सुनी होगी तो जीवन में नहीं उतारी, उतारी होगी तो आज हम संसार में भटक नहीं रहे होते।
सीधे परमात्मा से जुड़े होने के बीच में किसी गुरू की आवश्यकता नहीं होती हैं। चुनना है तो किसी संबुद्ध गुरू को चुनना है। माता-पिता, संतान, पत्नि तो किस्मत से मिलते है मगर गुरू को हम चुन सकते है।
महावीर किसी को हाथ पकड़कर यानि कि अपने शिष्य गौतम स्वामी को भी नहीं लंे जा सके तो आपको कैसे ले जा सकेगें। भगवान आपको रास्ता दिखाते हैं। उस रास्ते पर चलोगें तो एक दिन निश्चित मोक्ष महल में प्रवेश कर सकते है।
आचार्यश्री ने कहा कि भगवान महावीर ने श्रद्धा पर विशेष जोर दिया है। श्रद्धा और विश्वास में जमीन, आसमान अन्तर है। श्रद्धा यानी नेचुरल फूल और विश्वास कागज के फूल के समान है जो बाजार में मिलते है दोनों में बहुत अन्तर होता है। नकली फूल अधिक चमकदार होगें ज्यादा दिन चलेगें लेकिन आरिजनल तो ओरिजनल होता है।
गोद लिया हुए सत्य पर नहीं, जन्म दिये हुए सत्य पर श्रद्धा करों। भगवान महावीर ने अपना सत्य स्वयं खोजा। आत्म ज्ञान, केवल ज्ञान प्रकट किया था। तुमनंे बहुत शास्त्र पढ़े होगें। गीत गाएं होगें। पर श्रद्धा के साथ पढ़ना जीवन का उद्धार करता है।
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