18.07.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 18.07.2018
Updated: 20.07.2018

Update

Video

18 July 2018

🌸 *दीक्षा समारोह: महातपस्वी ने चेन्नई में सृजित किया नवीन स्वर्णिम इतिहास* 🌸

*-तीन मुमुक्षु को प्रदान की समणी दीक्षा, प्रवर्धमान हुआ धर्मसंघ*

*-जनाकीर्ण बना विशाल पंडाल, हजारों नयन बने इस भव्य समारोह के साक्षी*

18.07.2018 नार्थ टाउन, चेन्नई (तमिलनाडु): तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम देदीप्यमान महासूर्य, महातपस्वी, शांतिदूत, कीर्तिधार आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को चेन्नई महानगर की उपनगरीय यात्रा के दौरान नार्थ टाउन के बिन्नी गार्डेन में बने भव्य दीक्षा समारोह पंडाल में तीन मुमुक्षुओं को समणी दीक्षा प्रदान कर चेन्नई की धरती से समणी दीक्षा प्रदान करने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य बने। इसके साथ ही आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ व चेन्नई के इतिहास में एक और अमिट आलेख और नए कीर्तिमान का सृजन कर दिया।
अपनी धवल सेना के साथ प्रथम बार दक्षिण को धरा को पावन बना रहे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को अयनावरम् से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री जैसे ही नार्थ टाउन की एरिया में पधारे मानों जनतासमूह का पारावार उमड़ पड़ा। हजारों-हजारों श्रद्धालु बुलंद जयघोष करते हुए अपने आराध्य का स्वागत अभिनन्दन किया। आज तो मानों सड़क मार्ग पर दूर-दूर तक जनता ही दिखाई दे रही थी। कारण था दक्षिण की इस धरा पर कीर्तिधर आचार्य द्वारा एक नया कीर्तिमान, एक नया स्वर्णिम अमिट आलेख लिखा जाना था समणी दीक्षा के रूप में। चेन्नई की इस धरा पर पहली बार तेरापंथ धर्मसंघ का कोई आचार्य समणी दीक्षा प्रदान करने जा रहे थे। इस दृश्य का साक्षी बनने के लिए देश भर से लोग पहुंचे हुए थे। नार्थ टाउन, पेरम्बुर के बिन्नी गार्डेन बना दीक्षा समारोह का विशाल पंडाल जनाकीर्ण बन गया।
सर्वप्रथम श्री मेघराज लुणावत, श्रीमती निर्मला गुलेछा, तेरापंथ समाज की ओर से श्री सम्पतमल सेठिया, मूर्तिपूजक समाज के श्री प्रकाश कांकरिया व स्थानकवासी समाज से श्री कमल छाजेड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वहीं नार्थ टाउन की तेरापंथी महिलाओं ने गीत का संगान किया।
निर्धारित समयानुसार आचार्यश्री ने श्रीमुख से मंगल महामंत्रोच्चार करते हुए दीक्षा समारोह के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। मुमुक्षु प्रेक्षा व मुमुक्षु श्वेता ने दीक्षार्थिनी खुशबू आच्छा, हेतल सुराणा तथा अंकिता सेठिया का परिचय प्रस्तुत किया। तदुपरान्त तीनों दीक्षार्थियों के पिता क्रमशः श्री मदनलाल आच्छा, श्री किशोचन्द सुरणा व श्री अनिलकुमार सेठिया ने आज्ञापत्र श्रीचरणों में समर्पित किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था की ओर श्री मोतीलाल जीरावाला ने आज्ञापत्र का वाचन किया। तीनों दीक्षार्थिनों ने दीक्षा से पूर्व अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने ‘दीक्षा क्यो’ विषय पर लोगों को उद्बोध दिया। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली के विषय में लोगों को अवगति प्रदान की। मुख्यमुनिश्री ने सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र पर अभिभाषण दिया।
अपने मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने आदमी के जीवन में त्याग का महत्त्व बताते हुए कहा कि आज तीन मुमुक्षु बाइयां साधना के पथ पर आगे बढ़ने को तत्पर हुई हैं। आचार्यश्री ने तीनों के परिजनों से मौखिक रूप से स्वीकृति लेने के उपरान्त दीक्षा प्रदान करने का कार्यक्रम आरम्भ किया तो हजारों-हजारों नयन उस पल को बिना पलक झपकाए संजोने में जुट गए। मंगल मंत्रों के उच्चारण व आर्षवाणी के द्वारा समण दीक्षा प्रदान करते हुए निर्धारित सावद्य योगों का जीवन भर के लिए त्याग कराया। अतीत की आलोचना कराई। उसके उपरान्त नवदीक्षित साध्वियों ने अपने आराध्य को सविधि वन्दन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने तीनों समणियों का नामकर करण करते हुए मुमुक्षु अंकिता सेठिया को समणी आलोकप्रज्ञा, मुमुक्षु हेतल सुराणा को समणी हिमांशुप्रज्ञा तथा मुमुक्षु खुशबू आच्छा को समणी गंभीरप्रज्ञा प्रदान किया तो पूरा वातावरण जयनिनादों से गूंज उठा। आचार्यश्री ने तीनों समणियों को साध्वीवर्याजी के निर्देशन में अपना आध्यात्मिक विकास करने की पावन प्रेरणा प्रदान की।

🙏🏻संप्रसारक🙏🏻
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*

● आज के प्रवचन का link
https://youtu.be/JZM4qjZANUk

● आज के video का link
https://youtu.be/eD3cDKpAGS8

● आज के photo के लिए status देखें।

🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 कोलकाता - निर्माण एक कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम
👉 कांटाबांजी - चातुर्मास के अनमोल क्षण, करें स्वंय का आध्यात्मिक आरोहण कार्यशाला का आयोजन
👉 साउथ हावड़ा - चातुर्मास के अनमोल क्षण, करें स्वयं का आध्यात्मिक आरोहण कार्यशाला का आयोजन
👉 टिटिलागढ - निर्माण एक कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Source: © Facebook

News in Hindi

⛩ *चैन्नई*: परम पावन *पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के* मंगल *सान्निध्य में* आयोजित जैन *"समणी दीक्षा"* समारोह..

👉 नामकरण संस्कार - दीक्षा के बाद मुमुक्षु खुशबू - समणी गंभीरप्रज्ञा, मुमुक्षु हेतल - समणी हिमांशु प्रज्ञा, मुमुक्षु अंकिता - समणी आलोकप्रज्ञा बनी

👉 *परम पूज्य गुरुदेव मंगल उद्बोधन देते हुए....*

👉 आज के जैन *"समणी दीक्षा" समारोह और "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..*

*धर्म है समता हमारा, कर्म समतामय हमारा।*
*साम्य योगी बन हृदय में, स्रोत समता का बहाएं।।*

दिनांक: 18/07/2018

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

✨ परम पावन *पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी* द्वारा *दीक्षा के बाद प्रदत नाम:*

👉 *मुमुक्षु खुशबू: समणी गंभीर प्रज्ञा*
👉 *मुमुक्षु हेतल: समणी हिमांशु प्रज्ञा*
👉 *मुमुक्षु अंकिता: समणी आलोक प्रज्ञा*

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Sangh Samvad
News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".

🙏🏻 *हे प्रभु! पा पंथ तेरा, हो रहा अब नव सवेरा..*🌞

⛩ *चैन्नई*: परम पावन *पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के* मंगल *सान्निध्य में* आयोजित जैन *"समणी दीक्षा"* समारोह..

👉 *मुमुक्षु अंकिता, मुमुक्षु खुशबू व मुमुक्षु हेतल ले रही समणी दीक्षा..*

👉 *पूज्य गुरुदेव मंगल उद्बोधन देते हुए..*

👉 आज के जैन *"समणी दीक्षा" समारोह और "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..*

दिनांक: 18/07/2018

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞

अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 32* 📜

*किसनमलजी भंडारी*

*चालाकी चली नहीं*

गतांक से आगे...

भंडारीजी जानते थी कि बुलावा आने ही वाला है, अतः वे पहले से ही सावधान हो गए। उन्होंने कोषागार से वह भुगतान रजिस्टर मंगवा कर अपने पास रख लिया, जिसमें उसी अंग्रेज द्वारा की हुई बिल के भुगतान की रसीद थी। नरेश का आदेश पहुंचते ही भंडारीजी अपनी बग्घी में बैठकर राजभवन पहुंच गए। ज्यों ही अंदर जाकर उन्होंने नमस्कार किया त्यों ही नरेश उन पर बरस पड़े— "क्यों किसनमल! खजाना तेरे बाप का है या मेरे बाप का? अंग्रेजों के सम्मान का तो हम भी ध्यान रखते हैं, फिर तूने उस साहब के बिल का भुगतान क्यों रोक दिया?"

किसनमलजी ने बड़ी विनम्रता से कहा— "अन्नदाता! खजाना तो आपका ही है, पर आपने मुझे उसकी रखवाली का काम सौंपा है, लुटाने का नहीं।"

नरेश ने कहा— "कंपनी ने माल भेजा है। साहब के नियमानुसार बिल बना कर उसका भुगतान चाहा है। अब उसका भुगतान हम नहीं करेंगे तो और कौन करेगा? इसमें लूटने-लुटाने जैसी क्या बात है?"

भंडारीजी ने तब रजिस्टर में फाइल की हुई रसीद दिखलाते हुए कहा— "साहब को आप यहीं बुला लीजिए ताकि आपके सामने ही सब स्पष्ट हो जाए।"

नरेश ने निमंत्रण भेजकर साहब को बुलाया। उसके आने पर भंडारीजी ने बिल की बात चलाते हुए कहा— "भेजे गए माल के बिल का भुगतान करना हमारा दायित्व है, परंतु मेरा खयाल था कि हम इस बिल का भुगतान पहले कर चुके हैं। आपका क्या खयाल है?"

भंडारीजी की बात के क्रम से अंग्रेज ने समझा कि इनके पास पिछला रिकॉर्ड नहीं है। केवल स्मृति के आधार पर ही आशंका खड़ी कर रहे हैं। उसने प्रत्युत्तर में स्पष्ट नकारते हुए कहा— "आप भूल में हैं। बिल लेकर मैं आज ही आया हूं, तब पहले आप भुगतान कर ही कैसे सकते हैं?"

भंडारीजी ने तब रजिस्टर खोलकर उसी के द्वारा दी गई रसीद दिखलाई। उसे देखते ही साहब की आकृति पर हवाइयां उड़ने लगी। उसकी चालाकी की पोल तो खुली ही, नरेश के सम्मुख उसे लज्जित भी होना पड़ा। उक्त घटना के पश्चात् नरेश के हृदय में किसनमलजी की योग्यता का विश्वास और भी अधिक दृढ़ता के साथ बद्धमूल हो गया।

*पारस्परिक ईर्ष्यावश किसी ने किसनमलजी के खिलाफ नरेश के कान भरे...* उक्त घटना के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 378* 📝

*आस्था-आलम्बन आचार्य अभयदेव*
*(नवांगी टीकाकार)*

*साहित्य*

अभयदेवसूरि की प्रसिद्धि नवाङ्गी टीकाकार के रूप में है। परंतु उन्होंने अङ्गागमों के अतिरिक्त ग्रंथों पर भी टीकाएं रचीं। उनकी एक टीका उपाङ्ग-आगम पर है। उन्होंने स्वतंत्र ग्रंथों की भी रचनाएं कीं। साहित्य क्षेत्र में उनका विशिष्ट अनुदान टीका साहित्य है।

आचार्य सुधर्मा के आगमों के गूढ़ार्थों को समझने के लिए आचार्य अभयदेव की टीकाएं कुंजी के समान हैं। ये टीकाएं संक्षिप्त और शब्दार्थ प्रधान हैं। यथावश्यक इनमें कहीं-कहीं विषय का पर्याप्त विवेचन, सैद्धांतिक तत्त्वों की अभिव्यक्तियां, दार्शनिक चर्चाएं, कथानकों के मत-मतांतरों तथा पाठांतरों का उल्लेख और सामाजिक, राजनयिक अनेक शब्दों की परिभाषाएं प्रस्तुत की गई हैं। टीका ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है—

*स्थानाङ्ग-वृत्ति* मूल सूत्रों पर स्थानाङ्ग वृत्ति की रचना हुई है। सूत्र संबंधी विषयों का इसमें विस्तार से विवेचन है। दार्शनिक दृष्टियों की विशद व्याख्या है। वृत्ति में कहीं-कहीं संक्षिप्त कथानक हैं।

इस वृत्ति की रचना में अभयदेवसूरि को संविग्न पाक्षिक अजितसिंहसूरि के शिष्य यशोदेवगणी का सहयोग प्राप्त हुआ। द्रोणाचार्य ने कष्टसाध्य श्रम से इस टीका का संशोधन किया।

प्रस्तुत टीका का रचनाकाल विक्रम संवत् 1120 है और इसका ग्रंथ मान 14250 पद्य परिमाण बताया गया है। वृत्ति के रचना स्थल का उल्लेख इसमें नहीं है।

*समवायाङ्ग-वृत्ति* इस वृत्ति की रचना भी मूल सूत्रों पर है। इसमें प्रज्ञापना सूत्र एवं गंधहस्ति भाष्य का उल्लेख है। इसका की रचना भी विक्रम संवत् 1120 में अणहिल्लपुर पाटण में हुई। इसका ग्रंथमान 3575 श्लोक परिमाण है।

*व्याख्याप्रज्ञप्ति-वृत्ति* यह संक्षिप्त शब्दार्थ प्रधान टीका है। इसमें एक व्याख्या प्रज्ञप्ति के दस अर्थ बताए गए हैं, जो भिन्न अर्थ बोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं तथा टीकाकार की सक्षम व्याख्या शक्ति को प्रकट करते हैं। इस टीका में आचार्य सुधर्मा आदि को नमस्कार करने के बाद टीकाकार ने इस सूत्र की रचना प्राचीन टीका चूर्णि और जीवाभीगम आदि की वृत्तियों की सहायता से टीका रचना करने का संकल्प किया है। इससे स्पष्ट है कि टीकाकार अभयदेवसूरि के सामने भगवती सूत्र की प्राचीन टीका थी। इससे प्रभाविक चरित्र में 9 अंगो की टीकाओं के लुप्त होने का उल्लेख भ्रामक प्रतीत होता है। टीकागत प्राचीन टीका का उल्लेख आचार्य शीलाङ्क की टीका का संकेत संभव है। शीलाङ्क ही प्रथम 9 अंगों के टीकाकार माने गए हैं। टीका के अंत में ग्रंथकार ने जिनेश्वरसूरि से संबंधित अपनी गुरु परंपरा का भी उल्लेख किया है। इस टीका की रचना भी अभयदेवसूरि ने अणहिल्लपुर पाटण नगर में वीर निर्वाण 1598 (विक्रम संवत् 1128) में की थी। टीका का ग्रंथमान 18616 श्लोक परिमाण बताया गया है।

*ज्ञाताधर्मकथा-वृत्ति* मूल सूत्रस्पर्शी शब्दार्थ प्रधान यह टीका 3800 पद्य परिमाण है। इस ग्रंथ की रचना की संपन्नता अणहिल्लपुर पाटण नगर में विक्रम संवत् 1120 विजयदशमी के दिन हुई। ज्ञाताधर्मकथा के दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कंध में 19 कथानक हैं। वे कथानक अत्यंत प्रसिद्ध एवं ज्ञात होने के कारण इस श्रुतस्कंध का नाम ज्ञाता है। द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्मकथाओं की बहुलता होने के कारण इसका नाम धर्मकथा है।

निवृत्ति कुल के विद्वान् द्रोणाचार्य ने इस वृत्ति का संशोधन किया था।

*आस्था-आलम्बन आचार्य अभयदेव द्वारा रचित अन्य वृत्तियों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜ 🔆

🎋☘☘🌳🌳🍀🍀🎋

🌀 ❄ *अणुव्रत* ❄ 🌀

💎 *संपादक* 💎
*श्री अशोक संचेती*

💧 *जुलाई अंक* 💧

🔮 पढिये 🔮
*पाथेय*
स्तम्भ के अंतर्गत

*जीने की कला*
🌱
*सहिष्णुता*
पर
महत्त्वपूर्ण चिंतन
🌿🌿🌿🌿🌿🌿
🗯 प्रेषक 🗯
*अणुव्रत सोशल मीडिया*

🗯 संप्रसारक 🗯
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🎋🍀🍀🌳🌳🍀🍀🎋

Source: © Facebook

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Sources

Sangh Samvad
SS
Sangh Samvad

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. Jainism
  2. Sangh
  3. Sangh Samvad
  4. Terapanth
  5. अशोक
  6. आचार्य
  7. आचार्य महाप्रज्ञ
  8. ज्ञान
  9. दर्शन
  10. दस
  11. विजयदशमी
  12. सम्यक् चारित्र
  13. स्मृति
Page statistics
This page has been viewed 350 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: