आज बड़ागाँव में विराजित हुए.. Delhi/NCR के सबसे बड़े बाहुबली भगवान 😍🙏
जिस प्रकार बड़े अपराध की सजा के रूप में फांसी का निर्णय हो जाने पर, अपराधी के निवेदन पर राष्ट्रपति की कृपा से सजा माफ या कम हो सकती है/ हो जाती है। उसी प्रकार जीव द्वारा बांधे गए कर्म निधत्ति निकाचित कर्म का फल उसी प्रकार भोगना पड़ेगा लेकिन वह भी जिनेद्र(राष्ट्रपति) के भक्ति के प्रताप से क्षय हो जाता है।
मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज जी
गुरुदेव नमन
रजत जैन भिलाई
इतिहास में प्रथम बार 51 कलशों की स्थापना..
आज आंवा अतिशय छेत्र में आचार्य भगवान के 51 संयम वर्ष के उपलक्ष्य में विश्व इतिहास में प्रथम बार मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज ससंघ की चातुर्मास स्थापना 51 कलशों
विश्व के इतिहास में प्रथम बार 51 कलशों की स्थापना.. #मुनिसुधासागर
आज आंवा अतिशय छेत्र में आचार्य भगवान के 51 संयम वर्ष के उपलक्ष्य में विश्व इतिहास में प्रथम बार मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज ससंघ की चातुर्मास स्थापना 51 कलशों
जंगल में ऐतिहासिक चातुर्मास 2018... #आचार्यविद्यासागर जी के शिष्य मुनिश्री #चिन्मयसागरजी महाराज #जंगलवालेबाबा का चातुर्मास महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के हाथकणगले के पास जंगल में होने जा रहा है ।
पूज्य मुनिश्री *22 जुलाई 2018* दिन रविवार को सुबह शुभ मुहूर्त में जंगल में प्रवेश कर रहे हैं । 29 जुलाई 2018* दिन रविवार को चातुर्मास मंगल कलश स्थापना होगी । इस चातुर्मास के दौरान समाजहित जनहित के अनेक अविस्मरणीय ऐतिहासिक कार्यक्रम होंगे । हमारी भावना है चातुर्मास के दौरान एक बार आप जंगल में आकर मुनिश्री से आशीर्वाद प्राप्त करें ।
वडगांव रोड, आलते - नरंदे घाट
कोल्हापुर Airport से 30 km
इचलकरंजी से 8 km
मीरज स्टेशन से 27 km
सांगली स्टेशन से 30 km
कुंभोज बाहुबली से 11 km
कुंथुगिरी तीर्थक्षेत्र से 9 km
संघ सहित श्री कुन्द-कुन्द गुरु, वंदन हेत गए गिरनार!
वादपरियों तहँसंशय मतिसो, साक्षीवदी अम्बिकाकार!
सत्पंथ निर्ग्रंथ दिगम्बर, कही सूरीतम प्रकट पुकार..
सो गुरुदेव बसो उर मेरे, विघन हरण मंगल करतार..
पंचकल्याणकों, वेदी प्रतिष्ठा, विधान आदि में, स्वाध्याय कक्ष में अथवा साधर्मियों को भेंट करने में #सत्पथ की अनुपम कृति आचार्य शिरोमणि भगवान श्री #कुन्दकुन्ददेव की स्टेच्यू.. लाभरहित न्यौछावर राशि सहित उपलब्ध हैं। जिन्हें रुचि हो वो 📱7737238717 (Nagpur) पर सम्पर्क कर प्राप्त कर सकते हैं। #AcharyaKundKundDev
देश के सुप्रसिद्ध विद्वान कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री जिन्होंने समणसुत्तम की प्राकृत गाथाओं का गद्य रूपांतर किया था,आचार्य श्री के दर्शनों को कुंडलपुर आए। उनकी दृष्टि में दिगम्बर-श्रमणों की चर्या अनगारधर्म संहिता के अनुकूल नही है,इसलिए *उनकी गणना दिगम्बर श्रमणों के आलोचक के रूप में* की जाती थी,किन्तु *कुंडलपुर में आचार्य श्री के दर्शन कर उनकी भ्रांति दूर हुई* और *साधु शब्द की व्याख्या* करते हुए उन्होंने लेख लिखा-
"परिग्रह के त्याग का मतलब केवल शरीर से नग्न रहना नही है। *साधु के पास पिच्छिका -कमण्डलु और एक दो शास्त्र जो स्वयं लेकर चल सकें,होना चाहिए।* आज संघो के नाम पर परिग्रह का कोई परिमाण नही है।मानो दिगम्बर-साधु न होकर महन्तो का कोई अखाड़ा हो।"
"आज के अपने गुरुजनों की इस प्रकार की विडम्बना को देखकर मेरा मन यह बन गया है कि इस काल मे सच्चा दिगम्बर जैन-साधु होना सम्भव नहीं है किन्तु जब से *आचार्यश्री विद्यासागरजी के दर्शन किये हैं मेरा उक्त मत परिवर्तन हुआ है और मन कहता है कि उपादान सशक्त हो तो निमित्त कुछ नहीं करते।*"
"भरी जवानी में ऐसी असंगता?मैंने ऐसे भी मुनि देखे है जिन्हें स्त्रियाँ घेरे रहती हैं।जो तेल-मर्दन कराते हैं,उनकी बात तो छोड़िये।उनसे वार्तालाप में रस लेते हैं,किन्तु *युवा मुनिराज विद्यासागर जी तो हम लोगों से भी वार्तालाप नहीं करते।सदा अध्ययन में रत रहते हैं। मैंने वहाँ गप्प गोष्ठी होते नही देखी।राव-रंक सब समान हैं।परिग्रह के नाम पर पिच्छिका-कमण्डलु हैं।जब विहार करना होता है उठकर चल देते हैं।न जहाँ से जाते है उन्हें पता है,न जहाँ पहुँचते हैं उन्हें पता ।न गाजे-बाजे स्वागत की चाह है न साथ मे मोटर,लारी और न चौकों की बहार है।न कोई माताजी साथ में।बाल शिष्य-मण्डली है।"*
"मैंने किसी मुनि के मुख से ऐसा भाषण भी नहीं सुना। *एक एक वाक्य में वैदुष्य झलकता है।अध्यात्मी कुन्दकुन्द और दार्शनिक समन्तभद्र का समन्वय मैंने उनके अनेक भाषणों में सुना है।मुझे उन्हें आहारदान देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और मैंने प्रथम बार अपने जीवन को धन्य माना है।* यदि संसार,शरीर और भोगों से आसक्त श्रावकों के मायाजाल से बचे रहे तो आदर्श मुनि कहे जायेंगे।"
"मैं भी पंच नमस्कार जाप त्रिकाल करता हूँ और "णमो लोए सव्वसाहूणं" जपते समय वे मेरे मानस पटल पर विराजमान रहते हैं *जिनका मन आज के कतिपय साधुओं की स्थिति से खेदखिन्न होकर, "णमो लोए सव्व साहूणं" पद से विरक्त हुआ है उनसे हमारा निवेदन है कि एक बार आचार्य श्री विद्यासागरजी का सत्संग करें।हमें विश्वास है कि उनकी धारणा में परिवर्तन होगा।"
-मिश्रीलाल जैन एडवोकेट