News in Hindi
Ancient statue of a monk meditating in the midst of pristine surroundings.. Not sure of how old this is.. Probably belonging to the Alupas who ruled this region in the 10th - 12th centuries. By Arun Bhardwaj through his blog.
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Anwa Jain Temple Sudarshanodaya Teerth Rajasthan @ Muni Sudhasagar ji chaturmas going on..
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Exclusive pics.. अभी अभी खजुराहो में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जी और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री कमलनाथ जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज से आशीर्वाद लिया और पाद प्रक्षालन कर माथे पर गंधोदक लगाकर जीवन को धन्य किया! Kamal Nath
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जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं ~आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
Who doesn’t know healthy conversation, only they speak much.
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मुनिराजो की 5 समितियो का वर्णन पंडित दौलतराम जी छहढाला में कर रहे है आइए समझते है कैसी है मुनिराजो की 5 समितियाँ... समिति क्या है?
-प्रमाद रहित यत्नाचार सहित मुनिराज की आहार-विहार - निहार की जो भी क्रियायें होती हैं उन्हें समिति कहते हैं। वह यह क्रियायें करेंगे तो ही यह समिति होंगी ऐसा नहीं है। मुनिराज के शुभभावों को ही अलग अलग प्रकार से 28 नाम दिये गये हैं। समितियों का स्वरूप बतलाते हुए दौलतरामजी कहते हैं
*परमाद तज चौ कर महि, लखि समिति ईर्या तैं चलें।*
*जग सुहितकर, सब अहितहर, श्रुति सुखद सब संशय हरैं।*
*भ्रमरोग हर जिनके वचन मुख चन्द्र तैं अमृत झरैं।।*
*छयालीस दोष बिना, सुकुल श्रावक तनैं धर अशन को।।*
*हैं तप बढ़ावन हेतु नहीं तन पोषते तजि पोषते तजि रसन को।।*
*शुचि ज्ञान संयम उपकरण, लखि कें गहें लखि के धरैं।*
*निर्जन्तु थान विलोकि तन मल-मूत्र श्लेषम परिहरैं।।*
कविवर दौलतरामजी ने बहुत ही सरस शब्दों में मुनिराजों की चर्या का वर्णन किया है। उनकी चर्या जगत से निरपेक्ष रहकर, पूर्णतः अहिंसा/यत्नाचार पर आधारित चर्या है। मुनिराज यदि चलते हैं प्रमाद छोड़कर. चार हाथ जमीन देखते हुए गमन करते हैं इसे ही #ईर्या_समिति कहते हैं।
मुनिराज जब विहार कर रहे हों तब इधर-उधर देखे बिना नीचे दृष्टि किये हुए किसी सूक्ष्म जीवों की भी हिंसा न हो जाए ऐसी भावना रखकर विहार करते हैं।
मुनिराज बोलते हैं जगत का कल्याण हो, अहितकर किसी को भी न हो ऐसे वचन बोलते हैं। उनके वचन भ्रम रूपी रोग को दूर करने वाले होते हैं। उनके समता शान्ति दायक वचनों को सुनकर ऐसा लगता है कि मुख रूप चन्द्रमा से अमृत प्रवाहित हो रहा हो।
हितकर, अल्प और प्रिय वचन ही मुनिराज बोलते हैं यही उनकी भाषा समिति है।
किसी के निंदाकारक, अपमान कारण, कष्ट कारक वचनों का कभी भी प्रयोग नहीं करते। हितकर तो बोलते हैं परन्तु मित अर्थात कम बोलते हैं। घंटों तक धर्मोपदेश देने का भी भाव नहीं होता, राजनीति. समाज सुधार, निर्माण आदि के संबंध में तो कुछ कहने का उनको भाव भी नहीं आता। इन बातों से बचने के लिए ही मुनिराज अधिकांश समय वन/एकान्त में रहकर आत्म साधना करते हैं।
आहार के 46 (ग्रन्थ से जाने) दोषों को टालकर, सुकुल /धर्म आचरण करने वाले घर तप वृद्धि की भावना से शुद्ध आहार देख/शोध कर ही आहार ग्रहण करते हैं। शरीर के पोषण, इन्द्रिय की संतुष्टि के लिए आहार नहीं लेते। कभी भी किसी से कहकर, पूर्व निमंत्रण स्वीकार कर आहार ग्रहण नहीं करते। उनकी योग्य विधि मिल जाने पर गरीब /अमीर का भेद किये बिना निर्वांक्षक पने /समता से आहार ग्रहण करते हैं। इसे ही #एषणा_समिति कहते हैं।
पवित्रता /शौच के उपकरण कमण्डल, ज्ञान का उपकरण शास्त्र जब भी उठाते रखते हैं या बैठते हैं तो देखकर ही उठाते रखते हैं प्रमाद से जैसे चाहे नहीं रखते, किसी भी जीव का घात न हो जाए यह भावना उनकी रहती है इसे #आदान_निक्षेपण_समिति कहते हैं।
निर्जन्तु स्थान को देखकर ही मल-मूत्र - कफ का त्याग करते हैं। इस करुणा से भरी हुई चर्या को #प्रतिष्ठापन_समिति कहते हैं।
उक्त चर्या को देखकर हम मुनिराज की करुणा /समता का विचार कर भक्ति भाव से मन को भर सकते हैं।
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सरल, सहज संतोष दास जी महाराज (सतुआ बाबा जी) महा मंडलेश्वर काशी पीठ आचार्य गुरुवर बिद्या सागर जी के दर्शन करने पहुँचे । श्रद्धालुओं ने महामंडलेश्वर जी से जमीन के स्थान पर कुर्सी आदि आसन पर बैठने का वार वार आग्रह करने पर भी महा मंडलेश्वर जी आचार्य गुरूवर के सामने कुर्सी एबं अन्य आसन पर नहीं बैठे । उनसे ज्यादा आग्रह किया तो उन्होंने कहा यह तो कलयुग में अबतरित महापुरुष हैं । साक्षात तीर्थंकर महावीर स्वरूप हैं, इस कलियुग में इनके दर्शन मिल रहे हैं यह भी क्या कम है। ।
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The Invincible Ascetic Acarya Sri Vidyasagara
Based on the philosophical foundation enunciated by the last Teerthankar Bhagwan Shri Mahaveer and many Jain Aachaaryas, from time to time, have composed a variety of literature related to life sciences adorned by poetry and other arts that have placed Bharatiya culture in a distinguished and unique spot on the global canvas.
In the same tradition, in the world of literature of the 20"-21" century arose a new star as the one who is deft in the art of using simple words, invincible seeker, benchmark of austerity, ideal yogi, at the pinnacle of meditative state, poet laureate, brilliant preacher, possessor of keen intellect, talented innovator, erudite scholar of "Siddhantagam", eloquent orator, prodigious ocean of knowledge and a reflection of BhagwanMahaveer in the form of great poet Digambar Aacharya 108 Shri Vidyasagarji Maharaj, the very sight of whose image of the enlightened soul fills one with immense bliss. Whether a devotee from any creed or a mere onlooker, a casual reader ora serious thinker, young or old, male or female, everybody considers themselves blessed by emulating the ideals of his multi-faceted magnetic personality and strength of character.
Second child to his parents, but with intellect second to none, young Kannada speaking Vidyadhar was enrolled by his father in a Kannada School where he also learned Hindi and English. The strength of spiritual traditions spontaneously awakened and grew in him along with his age. At the age of nine years, the seeds of detachment were firmly planted in his mind by the narrative discourses of Aacharya Shri Shanti Sagar ji Maharaj. His interests in the spiritual path deepened with every day so much that at the age of twenty, he renounced his home and family and took the difficult Solemn vows to seek the eternal truth.
To Be Cont...
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भगवान मुनिसुब्रतनाथ @ पैठन:) आचार्य वर्धमानसागर जी सासंघ अभिषेक देखते हुए #AcharyaVardhmanSagar
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम यशवंत कुमार था. श्री यशवंत कुमार का जन्म मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद ग्राम में हुआ.श्रीमती मनोरमा देवी एवं पिता श्री कमल चाँद पंचोलिया के जीवन में इस पुत्र रत्न का आगमन भादों सुदी ७ संवत २००६ दिनांक १८ सितम्बर सन १९५० को हुआ. आपने बी.ए. तक लौकिक शिक्षा ग्रहण की, सांसारिक कार्यों में आपका मन नहीं लगता था. संयोगवश परम पूज्य ज्ञानमती माताजी का सनावद में चातुर्मास हुआ जिसमे आपने अपने वैराग्य सम्बन्धी विचारों को और अधिक दृड़तर बनाया. आपने आचार्य श्री विमल सागर ji महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया है, १८ वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री धर्म सागर ji महाराज से आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की, यह दिन फाल्गुन सुदी ८ संवत २५२५ के रूप में विख्यात हुआ है, जब श्री शांतिवीर नगर, श्री महावीर जी में मुनि दीक्षा लेकर आपको मुनि श्री वर्धमान सागर नाम मिला. चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की परम्परा के पंचम पट्टादीश होने का आपको गौरव प्राप्त है, इस पंचम काल में कठोर तपश्चर्या धारी मुनि परम्परा को पुनः aajस्थापित करने का जिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज को गौरव हासिल हुआ है, उसी परम्परा के पंचम पट्टादीश के रूप निर्दोष चर्या का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाने का पुण्य मिलना निश्चित इस जन्म के अलावा पूर्व जन्म की साधनाओ का ही सुफल है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब बहुत अल्प संख्या में मुनि संघ या मुनिगण रह गए हैं जिनके बारे में कहीं कोई टीका टिप्पणी नहीं होती हो, उनमें सबसे ऊपर शिखर पर आचार्य श्री वर्धमान सागर jजी का नाम लिया जाता है, जिनके बारे में कहीं भी विपरीतता के रूप में कोई मामूली टीका टिप्पणी तक नहीं हो रही हो, आचार्य श्री वर्धमान सागर jjiजी अत्यंत सरल स्वभावी होकर महान क्षमा मूर्ति शिखर पुरुष हैं, वर्तमान वातावरण में चल रही सभी विसंगताओं एवं विपरीतताओं से बहुत दूर हैं, उनकी निर्दोष आहार चर्या से लेकर सभी धार्मिक किर्याओं में आपआज भी चतुर्थ काल के मुनियों के दर्शन का दिग्दर्शन कर सकते हैं.
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परम्परा में चतुर्थ पट्टाचार्य श्री अजित सागर जी महाराज ने आपको इस परम्परा में पंचम पट्टाचार्य के रूप में आचार्य घोषित किया था, आचार्य श्री अजित सागर jiमहाराज ने अपनी समाधि से पूर्व सन १९९० में एक लिखित आदेश द्वारा उक्त घोषणा की थी. तदुपरांत उक्त आदेश अनुसार उदयपुर (राजस्थान) में पारसोला नामक स्थान पर अपार जन समूह के बीच आपका आचार्य शान्तिसागर ji महाराज की परम्परा के पंचम पट्टाचार्य पद पर पदारोहण कराया गया. उस समय से aajआज तक निर्विवाद रूप से आचार्य श्री शान्तिसागर jiजी महाराज की निर्दोष आचार्य परम्परा का पालन व् निर्वहन कर रहे हैं. आपका वात्सल्य देखकर भक्तजन नर्मीभूत हो जाते हैं, आपकी संघ व्यवस्था देखकर मुनि परम्परा पर गौरव होता है. पूर्णिमा के चंद्रमा के समान ओज धारण किए हुए आपका मुखमंडल एवं सदैव दिखाई देने वाली प्रसन्नता ऐसी होती है कि इच्छा रहती है कि अपलक उसे देखते ही रहें. आचार्य श्री का स्पष्ट मत रहता है कि जहाँ जैसी परम्परा है, वैसी ही पूजा पद्दति से कार्य हो, इसको लेकर विवाद उचित नहीं. आचार्य श्री की कथनी और करनी में सदैव एकता दिखाई देती है, क्षमामूर्ति हैं, अपने प्रति कुपित भाव रखने वालों के प्रति भी क्रोध भाव नहीं रखते हैं. उनकी सदैव भावना रहती है कि जितात्मा बनो, हितात्मा बनो, जितेन्द्रिय बनो और आत्मकल्याण करो. guruआपमें विशेष गुरुguruभक्ति समाई हुई है, गुरुनिष्ठा एवं guru गुरुभक्ति के रूप में आपकी आचार्य पदारोहण दिवस पर कही गई ये पंक्तियाँ सदैव स्मरण की जाती रही है “चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर jiमहाराज के इस शताब्दी में प्रवर्तित चारित्र साम्राज्य को हम संघ रूपी वज्रसंघ की मदद से संभाल सकेंगे. हम तो गुरुजनों से इस अभुदय की आकाशा करते हैं कि आपकी कृपा प्रसाद से परमपूज्य आचार्य श्री अजित सागर jजी महाराज ने आचार्य पद का जो गुरुतर भार सौंपा है, इस कार्य को सम्पन्न करने का सामर्थ्य प्राप्त हो.” आचार्य श्री वर्धमान सागर ji की दृष्टि में “चारित्र के पुन: निर्माण के लिए सूर्य के उदगम जैसे उद्भूत आचार्य श्री शान्तिसागर ji महाराज आदर्श महापुरुष हैं.”आप मुनि दीक्षा के बाद से आचार्य बनते हुए निरंतर निर्दोष रत्नत्रय का पालन करते हुए पूरे देश में धर्म की गंगा बहाते हुए लोगों को आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढाते आ रहे हैं!
एक माँ को बार बार pregnant किया जाता हैं.. जन्म देते ही अगर बच्चा लड़का हैं तो मार दिया जाता हैं.. लड़की हैं तो अलग कर दिया जाता हैं ओर माँ का सारा दूध जो बच्चे का था हम इंसान पी जाते हैं.. यही जीवन हैं अब गाय का 😕😕
A mother strains to reach her newborn calf which was immediately taken from her after birth. She can see him, she can smell him, she wants to protect him, her body is already making the milk she craves to feed him, but she is prevented from nursing him. Her time with him is brief as he will be taken and killed so that her milk can be consumed by humans. She will grieve the loss, and the next loss and the next and the next. The dairy industry is without compassion for the misery, suffering and death of the millions of animals it exploits.
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