Bangalore: 16.07.2019
The 21st three day Convocation ceremony of saman sanskriti sankay was organized at shri tulsi chetna kendra in Kumbalgudu, Bangalore. The 2 day programme which was a part of the convocation was conducted which was directed by Muni Kirti Kumar under the guidance of Acharyai Mahashraman.
The Supreme worshiper who believes that "the great path is that which takes us to the destination or that which leads us further", in his speech he said that the shravaks should do swadhyay as well, so that they can move towards the right path in life.
The annual report of the work done by the institution was presented by Malchand Be ngani, the head of the department of saman sanskriti sankaay and Sushil Bafana in presence of Acharya Mahashraman
Central administrator were honored for their efforts and inputs. Further gratitude was expressed to Rajesh ji Dugar, Pinkyji Teba and Kanchan ji Chhajer among others for their efforts. Shravak nishtha Patra was read by Pinky Teba,
This year is named as the gyan chetna diwas which is considered the birth centenary of Acharya Mahapragya. The programme was a great success of the institution and all the participants were thankful to the organizers and were blessed by Kanchan Devi Chhajer welcomed all as convenor of programme. Pinky Tera played important role in arrangement. Sushil Bafana, Premlata Sisodiya, Lalita Dhariwal, Sushila Golchha, Renu Dugar, Vijayraj Marothi, Vimla Kothari, Praveen Surana, Barkha Pugalia, Sarita Batata, Rajesh Dugar Nemchanf Badala, Rajendra Bengani, Sunil Bhandari and Sadhna Kothari expressed their view or contributed in arrangement. Memento were give to rank holders and people with title of Vigya.
महान मार्ग वह होता है जो हमें मंजिल पर ले जाए-आचार्य श्री महाश्रमण
समण संस्कृति संकाय का 21 वाँ तीन दिवसीय दीक्षान्त समारोह
कुम्बलगुडू-बैंगलूरू में परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य एवं समण संस्कृति संकाय के प्रभारी मुनि श्री कीर्ति कुमार जी के निर्देशन में दो दिवसीय कार्यशल्स एवं समण संस्कृति संकाय द्वारा जैन विद्या का 21 वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन किया गया।
परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण ने अपने मंगल आर्शीवचनों में जैन समण संस्कृति संकाय के 21 वें दीक्षान्त सामारोह के द्वितीय दिवस विज्ञ एवं वरियता प्राप्त पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में कही। आचार्य श्री ने फरमाया कि साधुओं के साथ-साथ गृहस्थ को भी स्वाध्याय करना चाहिये जिससे वह जीवन पथ पर सही मार्ग की ओर अग्रसर हो सकें।
आचार्य जी ने कहा कि मार्ग कई होते है, कोई छोटे, कोई बड़े, कोई उबड़ खाबड़, कोई समतल भी होते है। महत्व इस बात का है कि वह मार्ग (रास्ता) हमें कहाँ ले जा रहा है? महान मार्ग वह होता है जो हमें मंजिल पर ले जाए हमें उन्नती की और ले जाये। मनुष्य जन्म सामान्य घटना है, जन्म के बाद व्यक्ति क्या करता है, यह बड़ी बात है।
इस अवसर असाधारण साध्वी प्रमुखा श्री जी ने फरमाया कि कुछ गतिविधियाँ ज्ञानाराधना के लिये होती हैं। जैन विश्व भारती महत्वपूर्ण संस्था है जिसका एक विभाग- समण सांस्कृति संकाय है।
प्रसन्नता की बात यह है कि हजारो -हजारो लोग इससे जुड़ रहे हैं। पहलके ज्ञान फिर आचरण, आचरण विशिष्ट बने- ज्ञान चेतना जागे।
ज्ञान चेतना वर्ष है- ज्ञान बढ़ता रहे। परीक्षायें चलती हैं-यह ज्ञान का प्रवेश द्वार है। हमने जो सीखा उसे जीवन में भी उतारें और उसको फैलाएँ, ज्ञान बाँटें। सरस्वती वंदना में कहा गया- आपका ज्ञान भंडार अपूर्व है, विलक्षण है, जैसे-जैसे खर्च करेंगे वह बढ़ेगा। यानि की बांटने से विद्या बढ़ती है। बहनें अच्छा कार्य कर रही हैं। संयम़ और विवेक की चेतना जागे। आचार्य श्री महाश्रमण जी के सानिध्य में संस्था द्वारा किये गये कार्यो का विवरण मालचन्द जी बेगानी और सुशील जी बाफना ने प्रस्तुत किया, साथ ही आगामी दिनों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा एवं महत्वपूर्ण दिवसों की जानकारी दी।
समारोह के द्वितीय में आयोजित सम्मान समारोह में जैन समण संस्कृति संकाय के विभागध्यक्ष श्री मालचन्द जी बैंगानी ने स्वागत भाषण में संस्था की गति प्रगति की जानकरी देते हुऐ बताया कि वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण जी का मार्गदर्शन, सतत् मिल रहा है जिससे अच्छा उपक्रम चलाया जा रहा है। इस वर्ष 10600 परीक्षा फार्म भरे गये जिसमें से 6822 परीक्षार्थिय¨ं ने परीक्षा दी।
साथ ही 425 संभागिय¨ं की उपस्थिती कार्यशाला में रही। इसके अतिरिक्त समण संस्कृति संकाय नेपाल एवं दुबई तक पहुंच गया अ©र नित नये आयाम रचते हुये आगे बढ़ रहा है। श्री बैंगानी ने समण संस्कृति के नव आयाम वदसपदम अध्यापन के बारे में जानकारी देते हुऐ बताया कि समण संस्कृति संकाय से सम्बंधित कार्य वदसपदम भी संभव हो सकेंगे ।
इस अवसर पर श्रीमती प्रेमलता जी सिसोदिया, श्री सुशील जी बाफना, ललिता जी धारीवाल, सुशीला जी गोलछा, राजेन्द्रजी बैंगानी, विमला जी कोठारी एवं केन्द्र व्यवस्थापक सहित विभिन्न क्षेत्रों से आये कार्यकर्ता पदाधिकारी उपास्थित थे। समण संस्कृति संकाय के प्रभारी मुनि श्री कीर्ति कुमार जी के सानिध्य में श्रेष्ठ कार्य करने हेतु सम्मान कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें समण संस्कृति संकाय के कार्यों को गति प्रगति देने एवं किये गये कार्यों के लिये श्रेष्ठ व्यवस्थापक, प्रभारी एवं आंचलिक संयोजकों को सम्मानित किया गया। अपने मंगल उद्बोधन में मुनि श्री ने कहा कि हम गत वर्ष किये गये कार्यों की समीक्षा करें, कितना विकास हुआ, क्या कमी रह गई इसका चिन्तन हो, परिवर्तन और सुधार की अपेक्षा हमेशा रहती है। हम सभी मिलकर प्रयास करें।
यह वर्ष आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म शताब्दी वर्ष है- ज्ञान चेतना वर्ष है। आचार्य श्री की चेतना का जागरण हुआ तो उन्होंने धर्म संघ और समाज के लिये अनेक कार्य किये, जैन धर्म को आधुनिक ढंग से व्यवस्थित किया हम लोग अपनी ज्ञान चेतना को जगा सकें ऐसा प्रयत्न हो। सभी लम्बे समय तक निरन्तर चलने वाली सेवा दें, कार्य में शिथिलता नहीं होनी चाहिये।
संख्या को महत्व नहीं देना है, कार्य महत्वपूर्ण है। ज्यादा नही तो एक पुस्तक अवश्य पढ़ें। ज्ञान का वर्धन हो ज्ञान चेतना जगाने में- बढ़ाने में श्रम को लगाऐं। सम्मान लायक बनों-सम्मान अपने आप मिलेगा। द्वितीय दिवस के कार्यक्रम का प्रारम्भ बैंगलूरू महिला मण्डल के मंगलाचरण से हुआ। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन पिंकी जी टेवा द्वारा किया गया, जबकि स्वागत भाषण कंचन जी छाजेड़ ने दिया, साथ ही राजेश जी दुग्गड़ ने तकनीकि के उपयोग से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों को रखा। कार्यक्रम के तृतीय दिवस आचार्य श्री महाश्रमण चातूर्मास स्थल कुम्बलगुडू-बैंगलूरु के प्रमुख मार्ग से गुजरने वाली विशाल रैली का आयोजन किया गया ।
साधना जी कोठारी, इंदौर ने मीडिया रिपोर्ट तैयार की।