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Acharya Mahaprajna Was Great Yogi ◄ Muni Jayant Kumar | |
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योगी पुरुष आचार्य महाप्रज्ञ -मुनि जयंतकुमार, भिक्षु बोधि स्थल, राजनगर
आचार्य महाप्रज्ञ पुण्यतिथि पर विशेष
राजसमंद २८ अप्रेल २०११ (सवाददाता जैन तेरापंथ समाचार)
राजस्थान के झुंझुनूं जिले का एक छोटा सा ग्राम टमकोर। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे रेती के धोरे। न सड़कें न बिजली और न आवागमन के सुलभ साधन। शांत, सुरम्य और प्रदूषण मुक्त वातावरण। वहां का चोरडिय़ा परिवार एक जाना माना समृद्ध और संपन्न परिवार था। उसी परिवार में मातुश्री बालू जी की पावन कुक्षि से 24 जून, 1920 के दिन गोधूलि के समय एक होनहार बालक का जन्म हुआ। नाम रखा गया ‘नथमल’।
पिताश्री तोलाराम का प्रांगण शिशु की बाल सुलभ क्रीड़ाओं और किलकारियों से गंूज उठा। जब बालक ने छह-सात वर्ष की अवस्था में प्रवेश किया तो उसे पढ़ाने के लिए गुरुजी के पास भेजा गया। उस समय अच्छी शिक्षा प्राप्ति के साधन भी सुलभ नहीं थे। उन दिनों मुनि छबील जी स्वामी का चातुर्मास टमकोर में था। मुनिवर की आध्यात्मिक प्रेरणा पाकर बालक नथमल के अंत:करण में सुषुप्त वैराग्य संस्कारों का जागरण हो गया।
दस वर्ष की अवस्था में बालक नथमल अपनी मातुश्री बालू जी के साथ सरदारशहर में 10 फरवरी, 1931 को तेरापंथ के अष्टमाचार्य पूज्य कालूगणी के कर कमलों से दीक्षित हो गए। पूज्यपाद कालूगणी ने आपके सर्वांगीण विकास का दायित्व मुनि तुलसी (आचार्य तुलसी) को सौंपा। मुनि तुलसी ने आपको संस्कार और विकास दोनों दिशाओं में आगे बढ़ाया। धीरे धीरे आप मेधावी मुनियों की पंक्ति में प्रतिष्ठित हो गए। 12 नवंबर, 1968 को गंगाशहर में आचार्य तुलसी ने आपको ‘महाप्रज्ञ’ के अलंकरण से अलंकृत करते हुए कहा था- ‘मुनि नथमल जी की अपूर्व सेवाओं के लिए यह पूरा धर्मसंघ कृतज्ञता ज्ञापित करता है। यह अलंकरण उसकी स्मृति मात्र है।’ 5 फरवरी, 1969 राजलदेसर में आचार्य तुलसी ने मुनि नथमल जी को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया। आप मुनि नथमल से युवाचार्य महाप्रज्ञ बन गए। आचार्य तुलसी ने एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए अपने जीवनकाल में 28 फरवरी, 1998 को सुजानगढ़ में युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
(जैसा मुनि जयंतकुमार, भिक्षु बोधि स्थल, राजनगर ने बताया)