News in English:
Location: | Chhapar |
Headline: | Acharya Mahaprajna Will Live Through His Disciples |
Content: | His principle will guide humanity for centuries. |
News in Hindi:
हिसार- मुनि सुमति कुमार, छापर सेवा केंद्रमुनि सुमति कुमार, छापर सेवा केंद्र |
गीता का एक बहुत सुंदर वचन है ‘मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये’ हजारों मनुष्यों में कोई एक ऐसा होता है, जो सिद्ध होता है। और ये विरले, सदैव जीवित रहते हैं। हमारी यादों में, हमारे विचारों में, हमारे संस्कारों में। इनके ज्ञानालोक की छत्रछाया युगों युगों तक मानव मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती रहती हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ ऐसे ही विरले थे। भले ही आज से एक वर्ष पूर्व (वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को दोपहर 2.55 बजे) इनका भौतिक शरीर हमसे दूर हो गया हो, पर इनकी आध्यात्मिक अनुभूति, शब्दों, विचारों और यादों के रूप में हमारे साथ है। वे हजारों शिष्यों और लाखों अनुयायियों के माध्यम से आज भी जीवंत हैं। और सदा रहेंगे।
जन्म और मृत्यु संसार का शाश्वत सत्य है। प्रत्येक सांसारिक व्यक्ति जन्म ग्रहण करता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जन्म और मृत्यु का इतना महत्व नहीं है जितना महत्व है इन दोनों के बीच का अंतराल अर्थात जीवन का। कुछ-कुछ महापुरुष ऐसे होते हैं जो पंक में पंकज बन कर निर्लिप्त रहते हैं और अमर रहते हैं। महात्मा महाप्रज्ञ एक ऐसे ही महापुरुष थे।
मौत से डरता नहीं मैं, मौत मुझ से डर चुकी है। मौत से मरता नहीं मैं, मौत मुझ से मर चुकी है।- आचार्य महाप्रज्ञ लोग जानना चाहते हैं, मेरे जीवन के बारे में। पूछते हैं कि आपने इतना अधिक कैसे लिखा? इतना विकास कैसे किया? मैं बताना चाहता हूं कि मुझे एक सूत्र मिला और वह सूत्र मेरे जीवन में सहज व्याप्त हो गया। वह सूत्र है प्रतिक्रिया से मुक्त रहना।� आचार्य महाप्रज्ञ उनका यश शरीर अमर है
आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म राजस्थान के टमकोर गांव में हुआ। उन्होंने माता बालूजी के कोख से जन्म ग्रहण किया। तेरापंथ धर्मसंघ जैसे अनुशासित और मर्यादित धर्मसंघ के सर्वेसर्वा बनने के बाद भी अंहकार उन्हें छू भी नहीं पाया। परम पूज्य आचार्य श्री तुलसी ने उनका उच्च स्तरीय निर्माण किया। पहला गुण था सरलता, दूसरा गुण था समर्पण, आपका तीसरा गुण था उपशांत कषाय, चौथा गुण था आपकी संकल्प शक्ति। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य श्री कालूगणी ने उनको दीक्षित किया। अपनी अष्टवर्षीय अहिंसा यात्रा में आचार्य ने बढ़ते आतंकवाद के बीच शांति का साम्राज्य स्थापित करने का सफल प्रयास किया। आज आचार्य महाप्रज्ञ जी दैहिक रूप से हमारे समक्ष विद्यमान नहीं है किंतु उनका यश: शरीर अमर है। ऐसे महापुरुष मर कर भी अमर बन जाते हैं।