06.05.2011 ►Akshya Tritya Is Connected With Lord Rishabh ◄ Sadhvi Ashok Shree

Published: 06.05.2011
Updated: 21.07.2015

News In English

Location:

Mumbai

Headline:

Akshya Tritya Is Connected With Lord Rishabh◄ Sadhvi Ashokshree

Content:

Lord Rishabha was first person to give new direction to civil society. He was first king and also first Tirthankara. In his memory people practice alternate fasting for one year.

News in Hindi:

भगवान ऋषभ से जुड़ा इतिहास अक्षय तृतीया- साध्वी अशोकश्री

Mumbai  06 MAY 2011 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो 

भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान संस्कृति रही है। अक्षय तृतीया का मंगल त्यौहार जैन धर्म में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभ के साथ जुड़ा हुआ है।

जैन पंरपरा के अनुसार काल दो भागों मे विभक्त है -उत्सर्पिणी काल और अवसर्पणी काल । उत्सर्पिणी काल में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि में ह्रास होता है। इन दोनों काल विभाग में छ: छ: आरे होते हैं। वर्तमान काल अवसर्पिणी का पांचवां आरा चल रहा है। अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे का उत्तराद्र्ध चल रहा था। उसी समय विनीता (अयोध्या)नगरी में मरुदेवा मां की कुक्षि से भगवान ऋषभ का जन्म हुआ। उनके पिता श्री का नाम नाभि था। ऋषभ की दो पत्नियां थीं, सुनंदा और सुमंगला। सुनंदा के भरत आदि ९९ पुत्र और एक  पुत्री ब्राह्मी हुई । कालांतर में पिता नाभि ने सक्षम व सशक्त नेतृत्त्व लागू करने के लिए ऋषभ को राजा घोषित किया । ऋषभ कुमार ने असि, मसि तथा कृषि तीन नीतियों का प्रवर्तन कर कर्मयुग का प्रवर्तन किया। राजनीति, दंडनीति और शिक्षानीति आदि अनेक जीवन उपयोगी रहस्यों का सबको प्रतिबोध दिया। ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को राज्य भार सौंपकर जीवन के संध्या काल में आपने चार हजार व्यक्तियों के साथ मुनि दीक्षा स्वीकार की। उस समय सहवर्ती दीक्षार्थियों को आपने कोई आदेश निर्देश नहीं दिया। भिक्षा कैसे लेना और कैसे देना इस विधि का कोई ज्ञाता नहीं था। दान विधि ज्ञान के भाव के कारण लोगों द्वारा अमूल्य हीरो-पन्नों कीमती हार मोती दिये, पर खाद्य सामग्री काकोई भी दान नहीं देता। ऋषभ का तो घृतिबल व आत्मबल मेरु की तरह अडोल था। एक वर्ष तक पूर्ण निराहार रहे पर भिक्षा के अभाव से वे चार हजार मुनि कोई ंकंदाहारी कोई फलाहारी कोई मुलाहारी बन गए। एक वर्ष के पश्चात वज्र सा सघन अंतराल कर्म के टूटने पर आपके प्रपौत्र श्रेयंास कुमार ने भगवान ऋषभ व वर्षीतप का इक्षुरस से पारणा कराया। उस दिन श्रेयांस के घर पर भेंट स्वरुप १०८ इक्षुरस से पारणा कराया। जाति स्मृति ज्ञान  श्रेयांस को भिक्षा की दानविधि का ज्ञान हुआ। लोगों को दानविधि प्रकार से जानने का अवसर मिला। वह पारणे का दिन 'अक्षय तृतीयाÓ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। हर व्यक्ति के लिए वैसा अखंड वर्षीतप करना महामुश्किल है। वर्तमान में एक दिन उपवास और एक दिन भोजन करके उस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। आज सैकड़ों-सैकड़ों व्यक्तियों द्वारा वर्षीतप किए जाते हैं और अक्षय तृतीया के दिन पारणा करते हैं।

भगवान ऋषभ को एक हजार वर्ष की दीर्घ साधना के पश्चात पुरियताल नगर में फाल्गुन कृष्णा अष्टमी के दिन केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, तीर्थ चतुष्टथ की स्थापना की। धर्मोपदेश दिया। अंत में अष्टपद पर्वत पर अनशन करके दस हजार मुनियों के साथ आप परम निर्वाण को  प्राप्त हुए। आप कर्मयुग के  प्रथम राजा तथा धर्मयुग के प्रथम मुनि प्रथम तीर्थकर तथा प्रथम भिक्षाचर हुए।

अक्षय तृतीया को लौकिक जगत में भी बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विवाह, नये मकान-दुकान का उद्घाटन तथा नये घरों में मंगल प्रवेश, किसान लोग खेती का प्रारंभ आदि आदि अनेक मांगलिक कार्य करते हैं। अत: यह पर्व लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

प्रस्तुति - कांता वडाला

जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो 

Sources
Jain Terapnth News

News in English: Sushil Bafana
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