23.01.2012 ►Terapanth News 1

Published: 23.01.2012
Updated: 01.02.2012

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Amet: 23.01.2012

Tolerance is Necessary for Sadhana of Non-violence: Acharya Mahashraman

News in Hindi

‎"कष्ट सहनशीलता अहिंसा के लिए जरूरी"

आमेट २३ जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जो व्यक्ति कष्टों को सहन करने का प्रयास करता है और दूसरों को किसी तरह की तकलीफ नहीं देता, वह व्यक्ति अहिंसा को जानने वाला है। सिद्धांत के तौर पर अहिंसा को जानना भी आवश्यक है, पर संबोधि में प्रायोगिक अहिंसा को जानना बताया गया है।

वे रविवार को यहां अहिंसा समवसरण में चल रहे अमृत महोत्सव के तहत आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कष्ट सहिष्णुता अहिंसा के लिए आवश्यक है। कठोरता को सहन करने की प्रवृति व्यक्ति में अवश्य होनी चाहिए, जो नहीं सीखता वो काम को मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता। डरपोक आदमी बड़ा काम कर ही नहीं सकता। नीति सूत्र में भी कुछ इस तरह से ही बताया गया है। उन्होंने कहा कि परेशानियों से डरे नहीं अपितु इसका सामना करें। शरीर की क्षमता कठिनाइयों को सहन करने वाली होनी चाहिए। जो कटु और अवमानना वाली बातों को सहन कर लेता है वह पूज्य होता है।

उन्होंने कहा कि साधना करते हुए कष्ट तो आ ही जाते है। पर मानवीय संतुलन नहीं खोना चाहिए। शांत भाव से इन मानसिक कष्टों को सहन करें। आचार्य तुलसी के सामने अनेक कष्ट आए, लेकिन वे कभी इनसे विचलित नहीं हुए। आचार्य महाप्रज्ञ मुनि अवस्था में आचार्य तुलसी के साथ थे। वह भी सहन करने में सहभागी रहे थे। आचार्य भिक्षु ने भी बहुत कठिनाईयों का सामना किया। उनमें सहन करने की शक्ति थी। उसी का परिणाम है कि तेरापंथ में समरसता का विकास हुआ है।

उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति आगम की साधना करता है उसे देवलोक में भी स्थान मिलता है। गुरू द्वारा यदा कदा कही जाने वाली कठोर बातों, उलाहना, परिषद् के बीच डांटने की प्रवृति को अन्यथा लेने की बजाय यदि हम उसे विनयपूर्वक ग्रहण करने का प्रयास करेंगे तो हमारा जीवन सार्थक हो सकता है। गुरू अपने शिष्य और समाज के किसी व्यक्ति को गलती करने पर उलाहना दे सकता है। जो शिष्य अपने गुरू की डांट को सह लेते है तथा गुस्से और आवेश में नहीं आता। वह महानता की ओर अग्रसर होता है

Sources

Jain Terapnth News

ShortNews in English:
Sushil Bafana

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