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Samdari: 28.05.2012
Acharya Mahashraman said human life is rare. We did not get it again and again. Religion is supreme. Finance is necessary for a householder but religion should be kept above finance. Money power should be used for welfare of humanity.
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अर्थ पर धर्म का अंकुश रखें' - आचार्य महाश्रमण
Monday, 28 May
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समदड़ी। २८ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
मानव जीवन दुर्लभ है। यह जीवन बार-बार नहीं मिलता। इस जीवन में धर्म, अर्थ, कार्य और मोक्ष मनुष्य के लिए चार पुरूषार्थ होते है। मानव को अर्थ पर धर्म का अंकुश रखना चाहिए। बिना अंकुश के अर्थ निर्थक हो जाता है। तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमण ने रविवार को कस्बे में श्रद्धालुओं को संबोघित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि अर्थ का नियोजन धर्म सम्मत होना चाहिए। इससे कि अर्थ कल्याणकारी हो सके। गुप्तदान करने से व्यक्ति के अहंकार की भावना नष्ट हो जाती है। जिस काम में धन दिया जाता है, उसमें नाम की लालसा बनी रहती है। ऎसा होना नहीं चाहिए। धर्म के अनुसार अर्थ का नियोजन संसार के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ है। वह आगे भी सिद्ध होगा। हमेशा अर्थ का नियोजन धर्मसम्मत मार्ग के अनुसार करें। तभी ही अर्थ कल्याणकारी होगा। मानव, जनहितार्थ व लोक कल्याण कार्यो में धन को अघिकाघिक खर्च करें।
इससे जीवन में सुख व शांति की प्राप्ति होती है। प्रवचन के दौरान श्रावक व श्राविकाओं में अर्हम् के उच्चारण के साथ आचार्य के उपदेशों को अंगीकार किया। इस अवसर पर जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा के अध्यक्ष मांगीलाल जीरावला, व्यवस्था समिति के संयोजक प्रकाश जीरावला, मंत्री घीसुलाल सहित बड़ी संख्या में संतगण, साघ्वियां व श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थी। प्रवचन के दूसरे दिन आचार्य महाश्रमण के दर्शन करने व प्रवचन सुनने के लिए क्षेत्र भर के गांव कस्बों सहित पाली, जालोर, सिरोही, जोधपुर सहित क्षेत्रों से श्रद्धालु पहुंचे।