ShortNews in English
Balotara: 29.05.2012
People can live happily in young age. Child days are golden days. It is difficult to live in old age. A person above 70 can be treated old. People should control over diet. naturally they will be more healthy. Second thing is control over Samveg. Following some fine points old age can become boom. Acharya Mahashraman advised these points in his book How to Live.
News in Hindi
बुढ़ापा वरदान कैसे बने?
बालोतरा २९ मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जीवन की मुख्य तीन अवस्थाएं है, बचपन, यौवन और बुढ़ापा। सामान्यत: बचपन और युवावस्था को व्यक्ति अच्छे ढंग से जी लेता है पर वृद्धावस्था कइयों के लिए अभिशाप बन जाती है। वह अभिशाप न बने, सानंद बीत सके, इसके लिए कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। सत्तर वर्ष से अधिक अवस्था को वृद्धावस्था माना जा सकता है।
खाद्य-संयम का मूल्य
पहला बिंदु है, खाद्य-संयम। खाद्य का असंयम बहुत सारी बीमारियों का प्रमुख कारण है। यदि खान-पान का संयम नहीं है तो छोटी अवस्था में ही बीमारियां शरीर को आक्रांत कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में अनेक व्यक्ति तो वृद्धावस्था की दहलीज तक पहुंचने से पूर्व ही काल कवलित हो जाते हैं। जो काल कलवित होने से बचकर वृद्धावस्था में प्रवेश कर जाते हैं, उनके लिए यह अवस्था बीमारियों के कारण कष्टकर बन जाती है, सुखकर नहीं रहती। इसलिए यह नितांत अपेक्षित है कि व्यक्ति शुरू से ही खाद्य-संयम के प्रति जागरूक बन जाएं।
आवेश-शमन
इस क्रम में दूसरा बिंदू है, संवेग-शमन। यों तो संवेग-शमन की साधना हर अवस्था में उपयोगी एवं आवश्यक है पर वृद्धावस्था में तो इसका महत्व बहुत अधिक है। वृद्धावस्था को प्राप्त हर व्यक्ति को इसकी सलक्ष्य विशेष साधना करनी चाहिए। इसके अभाव में व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और चिड़चिड़ा स्वभाव दूसरों के लिए ही नहीं, स्वयं के लिए दुखदायी बन जाता है। वृद्ध व्यक्ति अपनी वृत्ति को शांत रखे, व्यवहार मधुर रखे, बात-बात में उत्तेजना, आक्रोश न करे, यह उसकी मानसिक प्रसत्ति और समाधि का बहुत बड़ा आधार बन सकता है। ऐसी स्थिति में घर-परिवार एवं पास-पड़ौस के लोगों के मन में उसके प्रति कोई शिकायत-शिकवा का भाव सामान्यत: पैदा नहीं होता। वह सबका प्रिय बना रहता है। इसका निष्पत्ति यह होती है कि घर-परिवार एवं पास-पड़ौस का वातावरण उसकी ओर से क्षुब्ध नहीं होता।
आचार्य श्री महाश्रमण
आओ हम जीना सीखें