11.07.2012 ►Balotara ►Life is Mortal ► Acharya Mahashraman

Published: 11.07.2012
Updated: 21.07.2015

ShortNews in English

Balotara: 11.07.2012

Acharya Mahashraman in his book "How to live" wrote some fact of life. Life is mortal. Nobody is immortal in this world. So we should use life time as opportunity. Engage in good work.

News in Hindi

जीवन का यथार्थ


बालोतरा
बालोतरा ११जुलाइ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

आदमी के जीवन का एक यथार्थ प्रकट किया गया है कि तुम्हारा जीवन अध्रुव है, अशाश्वत है। तुम यह मत सोचो कि मुझे यहां रहना है। आचारांग वृत्ति में अध्रुव के दो अर्थ प्राप्त होते हैं- अनित्य और चल। अनित्य वह होता है, जिसका नाश अवश्य भावी होता है और चल वह होता है जो गतिशील होता है। इस संसार में कुछ भी ध्रुव नहीं है। राज्य, धन, परिवार सब कुछ अनित्य हैं। और तो क्या, बड़े-बड़े महापुरुष भी यहां स्थायी नहीं रह सके। मुझे स्मरण हो रहा है कि एक बार गुरूदेव तुलसी के सानिध्य में साधु-सभा जुड़ी हुई थी। रात्रि का समय था। आचार्य ने हम संतों को प्रेरणा देते हुए कहा कि साधुओं! तुम लोग तत्वज्ञान आदि में विकास करो। आज तो हम हैं किंतु हम सदा नहीं रहेंगे और एक दिन वह भी आ गया जब हमारे देखते गुरूदेव तुलसी का महाप्रयाण हो गया। शरीर और आत्मा के संयोग से बना यह जीव अध्रुव है, इस बात को समझने के बाद शाश्वत सिद्धि के मार्ग को भी जानता चाहिए। क्योंकि इस दुनिया में अगर दुख:ख है तो दुख:ख मुक्ति का मार्ग है। आवश्यकता है उस मार्ग को खोजने और उस पर चलने की। वह मार्ग है। विणियट्ेटज्ज भोगेसु भोगों से विनिवृत्ति करना।

एक आदमी के लिए भोग का सर्वथा त्याग करना कठिन होता है। किंतु भोग के साथ योग का संयोग हो जाए। भोग निरंकुश न रहे, उस पर योग का अनुशासन रहे। समाज में मनोरंजन भी चलता है। उसे भी सर्वथा नहीं छोड़ा जा सकता। किंतु मनोरंजन के साथ-साथ आत्म रंजन को भी जोड़ा जाए। परिवार में एक दूसरे के प्रति राग भाव होता है। इस राग के बिना संबंध टिक नहीं पाते। यह दुनिया राग के धागे सं बंधी हुई है किंतु साथ में विराग भाव, त्याग भाव को भी जोड़ा जाए। समाज में प्रवृत्ति चलती है किंतु निवृत्ति का योग भी आवश्यक होता है। इस प्रकार भोग के साथ योग, मनोरंजन के साथ आत्म रंजन, राग के साथ विराग और प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति का योग हो जाए तो आदमी इहलोक और परलोक दोनों को सुखमय बना सकता है। आदमी अध्रवता के सिद्धांत को याद रखे और यह ङ्क्षचतन करे कि मेरा आयुष्य भी परिमित है। मुझे भी एक दिन यहां से जाना होगा। हालांकि मनुष्य की तुलना में देवों का आयुष्य बहुत लंबा होता है। हजारों-लाखों वर्ष से क्या, हमारी गणित से भी पार हो चुके आंकड़े पल्योपम, सागरोपम तक का आयुष्य होता है। इनकी तुलना में देखा जाए तो वर्तमान आदमी का आयुष्य बहुत अल्प है। आदमी आयुष्य की सीमा को समझे और क्षण-क्षण जागरूक रहने का प्रयास करें। क्योंकि पता नहीं कब क्या घटित हो जाए? आदमी जाता तो है किसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सड़क पर कोई ऐसी दुर्घटना घट जाती है कि, कोई दूसरा कार्यक्रम हो जाता है। इसलिए आदमी स्वयं को स्थायी न माने, राही माने। हर समय जागरूक रहे और अपने जीवन का अंकर करे। इस अध्रुव जीवन में हो सके तो किसी का भला करे किंतु किसी का बुरा न करे। स्वयं कुछ कष्ट झेल कर भी दूसरों का हित करने का प्रयास करे। आदमी परोपकारपूर्ण जीवन जीए, किसी का अपकार न करे। किसी का हित न हो सके तो किसी का अहित भी न करे। इस प्रकार के सत्कार्यों से व्यक्ति अपने जीवन को सुफल बना सकती है।

आचार्य महाश्रमण

आओ हम जीना सीखें

Sources

ShortNews in English:
Sushil Bafana

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Acharya Mahashraman
          • Share this page on:
            Page glossary
            Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
            1. Acharya
            2. Acharya Mahashraman
            3. Balotara
            4. Mahashraman
            5. Sushil Bafana
            6. आचार्य
            7. आचार्य महाश्रमण
            8. भाव
            9. मुक्ति
            Page statistics
            This page has been viewed 668 times.
            © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
            Home
            About
            Contact us
            Disclaimer
            Social Networking

            HN4U Deutsche Version
            Today's Counter: