ShortNews in English
Jasol: 25.07.2012
Acharya Mahashraman said that people should practice to stay away from greed for good Sadhana.
News in Hindi
निर्लोभता की साधना करना मुक्ति व धर्म'
Wednesday, 25 Jul 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
बालोतरा। लोभ का विलोम शब्द मुक्ति है, जिसे निर्लोभता भी कहा जाता है। साधु को यह साधना सिद्ध करनी चाहिए कि लोभ के प्रयोग से मुक्त रहें। जसोल के तेरापंथ भवन में आयोजित प्रवचन सभा में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे व्यक्ति का लाभ बढ़ता है, वैसे-वैसे लोभ भी बढ़ता है। लोभ का निग्रह करना और निर्लोभता की साधना करना मुक्ति व धर्म है। संयम का जीवन जीना बड़ी बात है।
आदमी में भोगों, इन्द्रियों के प्रति आकर्षण होता है। मुक्ति के लिए लोभ को कमजोर करने व आसक्ति को त्यागने का प्रयास करना चाहिए। वैराग्य भाव को पुष्ठ रखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि संयम व वैराग्य द्वारा आसक्ति को खत्म किया जा सकता है। जब तक व्याघियां परेशान न करें और इन्द्रियों की शक्ति क्षीण न हों तब तक धर्म की साधना कर लेनी चाहिए।
व्यक्ति को भोग में नहीं उलझकर समय का सम्मान करते हुए उसका सदुपयोग करना चाहिए। साधु का विशेष कर्तव्य है कि वह कषाय मंदता और मुक्ति की साधना का प्रयास करें। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि धार्मिक वह होता है जो निरंतर अपनी वृत्ति व आजीविका को चलाते हुए धर्म को नहीं भूलता है। वह हर कार्य में धर्म को साथ रखता है। ऎसा व्यक्ति ठगी या बेईमानी नहीं कर सकता। उपासक अर्जुन सोलंकी ने गीतिका का संगान किया।