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Jasol: 30.07.2012
Acharya Mahashraman inspired representatives to acquire knowledge. He discussed all activates that are in progress to get knowledge. JVBU, Saman Sanskrit Sankay, Mahila Mandal Tatva Gyan Course are good activities to spread knowledge. Upasak category and Gyanshala are good activities of Mahasabha.
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श्रद्धा का आधार ज्ञान है: आचार्य श्री
जसोल(बालोतरा) ३० जुलाई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने श्रद्धा के साथ ज्ञान का होना महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि श्रद्धा एक प्रकार की गाय है जो ज्ञान रूपी खूंटे से बंधी होने पर एक जगह रह सकती है। ज्ञान के खूंटे से नहीं बांधने पर श्रद्धा एक से दूसरे पर जा सकती है। इसलिए श्रद्धा का आधार ज्ञान है। आचार्य ने कहा कि हमारा श्रावक समाज ज्ञान की दृष्टि से गरीब नहीं है। श्रावकों को जितना अनुकूल समय मिले, स्वाध्याय करना चाहिए। वे रविवार को धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने अखिल भारतीय महिला मंडल की प्रशंसा करते हुए महासभा की ओर से संचालित ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी को धर्मसंघ का एक सुंदर उपक्रम बताया। उन्होंने कहा कि जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय भी शिक्षा का अच्छा माध्यम है। आचार्य ने श्रावक शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि श्र का अर्थ है श्रद्धा का प्रतीक, व का अर्थ विवेक और क का अर्थ है क्रिया। श्रावक में विवेक रहना चाहिए। विवेक धर्म है। आचार्य ने मितव्ययता की प्रेरणा देते हुए कहा कि श्रावक समाज अनावश्यक फिजूलखर्ची न करे। धार्मिक संस्थानों में भी फिजूल खर्चे को रोके। अधिवेशनों, सम्मेलनों में मितव्ययता रखें। सामान्य किट से काम चल जाता है तो इसमें ज्यादा फिजूलखर्च नहीं करना चाहिए। आचार्य ने नामवृत्ति पर संयम की प्रेरणा देते हुए कहा कि प्रायोजकों को नाम की अति भावना से पाप कर्म का बंध होता है। समाज के लिए अर्थ पवित्र वस्तु है। व्यक्ति को समाज के हिसाब में ध्यान, संयम व नैतिकता रखनी चाहिए।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि हर व्यक्ति को धार्मिक उपासना करने के लिए कोई आयाम चाहिए। व्यक्ति प्रेरणा प्राप्त करने व आगे बढऩे के उद्देश्य से संगठन से जुड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारा यह सौभाग्य है कि हमें तेरापंथ जैसा अनुशासित संघ मिला है। जिसमें एक आचार्य की आज्ञा में चतुर्विद्य धर्मसंघ आगे बढऩे को तत्पर रहता है।
बहुश्रुत परिषद के सदस्य प्रो. मुनि महेंद्रकुमार ने धर्मसंघ और हमारा दायित्व विषय पर कहा कि धर्मसंघ के प्रति दायित्व को समझने के लिए उस धर्मसंघ को भी समझना होगा। दायित्व के साथ अध्यात्म व संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरूकता होनी जरुरी है। समणी कुसुम प्रज्ञा ने कहा कि धर्मसंघ हमारा आश्वास व विश्वास है। हम धर्मसंघ की सेवा कर स्वयं को गौरवास्पद बनाएं।