ShortNews in English
Jasol: 10.08.2012
Acharya Mahashraman said that beside education development of values is also necessary. He told that Jeevan Vigyan is art of living.
News in Hindi
'जीवन-विज्ञान जीवन जीने की कला '
जसोल(बालोतरा) १० अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
सज्जन व्यक्ति में गुण होते हैं, जिन्हें ग्रहण करना चाहिए। यह वक्तव्य आचार्य महाश्रमण ने जीवन-विज्ञान प्रवचन माला के अंतर्गत विषय 'मूल्यों का विकास' पर देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ मूल्यों का विकास भी होना चाहिए। अणुव्रत को जीवन में धारण कर लेने से गुणात्मक विकास हो सकता है। विद्यार्थी व शिक्षकों के लिए भी अणुव्रत की आचार संहिता बनी हुई है। उन्हें आत्मसात करने पर जीवन में मूल्यों का विकास हो सकता है। विद्यार्थी श्रुत व आचार संपन्न बने। आचार्य गुरुवार को जसोल में चातुर्मास धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन-विज्ञान द्वारा जीवन की कला का प्रशिक्षण दिया जाता है। जीवन-विज्ञान जीने की कला है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को छोटी-छोटी बातों में उलझना नहीं चाहिए। विद्यार्थी में ईमानदारी के प्रति निष्ठा रखनी चाहिए। उनका जीवन नशामुक्त हो, यह संकल्प पुष्ट होने पर विद्यार्थी स्वस्थ जीवन जी सकता है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों में विषय ज्ञान ही नहीं, जीवन का ज्ञान जीवन-विज्ञान भी जुड़ा रहना चाहिए। क्योंकि आज की भौतिक दुनिया में इसकी ज्यादा जरूरत है।
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि कार्योंत्सर्ग द्वारा व्यक्ति इंद्रियों व मन की चंचलता को रोक सकता है। क्योंकि इसकी चंचलता को रोककर ही व्यक्ति शक्तियां जागृत कर सकता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक उपासना में भी कार्योंत्सर्ग महत्वपूर्ण है। कार्यात्सर्ग में व्यक्ति अपने पापों का शमन कर सकता है।
कार्यक्रम में बाबूलाल ढेलडिय़ा ने 108 दिन की तपस्या के 107 वें दिन के अवसर पर उनकी तप अनुमोदना में लोकेश देवता ने गीत, महावीर देवता, सुभाष चौपड़ा, जीवनमल देवता, गौतम सालेचा ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। परिवार की बहनों ने गीतिका प्रस्तुत की। बाबूलाल देवता ने अपने श्रद्धासिक्त भाव गुरु के चरणों में अभिव्यक्त किए। आचार्य ने बाबूलाल के प्रति मंगलकामना व्यक्त की।