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वाणी पर नियंत्रण व विवेक का अभ्यास करें: आचार्य
जसोल (बालोतरा) १८ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने पर्यूषण महापर्व के अंतर्गत वाणी संयम दिवस पर व्यक्ति को वाणी का संयम व वाणी का विवेक रखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति को वाणी पर नियंत्रण व विवेक रखने का अभ्यास करना चाहिए। व्यक्ति जहां जरूरत है वहीं बोले और उसका उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। आचार्य चातुर्मास प्रवचन के दौरान धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
आचार्य ने कहा कि नव दीक्षितों का उच्चारण सुनना चाहिए व उनमें आवश्यक परिष्कार भी करें। इससे बड़ों का स्वाध्याय हो जाएगा और छोटों का परिष्कार हो जाएगा। व्यक्ति शब्द का अर्थ भी समझे। व्यक्ति ऐसी वाणी का प्रयोग करें, जिससे सौहार्द भावना बनी रहे। इससे पूर्व आचार्य ने कहा कि आदमी की दुर्बलता है कि वह अनुकूलता में खुश होता है और अहंकार में चला जाता है। जो अनुकूलता में खुश व प्रतिकूलता में दुखी व आक्रोशित होता है तो वह कठपुतली बन जाता है इसलिए व्यक्ति को समता का अभ्यास करना चाहिए। आचार्य ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा में नयसार की तीसरे जन्म मरीचि का प्रसंग सुनाया। मंत्री मुनि सुमेरमल ने सम्यक भाव के बारे में कहा कि सम्यक्त्वी के चिंतन में सहजता रहती है। उसका हर कार्य लक्ष्य की ओर गति कराने वाला होता है। सम्यक्त्वी के मन में मुक्त होने की भावना रहती है।
मंत्री मुनि ने कहा कि सम्यक् त्वी का जीवन संवेग युक्त है। सम्यक्त्वी विकारों से मुक्त होने का प्रयास करें। मंत्री मुनि ने कहा कि सम्यक्त्वी व्यक्ति सम्यक्त्व के आधार पर भव भ्रमण को कम कर लेता है और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति सम्यक्त्व को उज्जवलतम बनाए रखने के लिए आस्था को घनीभूत बनाएं। कार्यक्रम के प्रारंभ में साध्वी तितिक्षा ने 'तोल कर बोलो निरंतर मधुर सी वाणी' गीत का संगान किया। मुनि कुमार श्रमण ने वाणी संयम के साथ वाणी विवेक की महत्ता पर प्रकाश डाला। मुनि मदन कुमार ने वाणी संयम पर विचार अभिव्यक्त किए। साध्वी प्रबुद्धयशा ने भगवान मल्लीनाथ के जीवन चारित्र की संक्षिप्त में प्रस्तुति दी। संचालन मुनि जम्बू कुमार ने किया।