22.08.2012 ►Jain Terapnth News 10

Published: 22.08.2012
Updated: 17.01.2013

News in Hindi

'संवत्सरी अध्यात्म मय, साधनामय व धर्ममय दिन'
जसोल(बालोतरा) २२ अगस्त २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

संवत्सरी महापर्व को परम आध्यात्मिक पर्व के विशेषण से संबोधित करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि संवत्सरी परम आध्यात्मिक पर्व इसलिए है कि आध्यात्मिकता का जो रूप आज के दिन है, उतना अन्य कार्यक्रमों में नहीं होता है। भीड़ तो अन्य कार्यक्रमों में इससे भी ज्यादा हो सकती है पर धर्ममय, अध्यात्म मय, साधनामय माहौल हमारी परंपरा में आज के दिन के सिवाय अन्य दिन नहीं मिलता। संवत्सरी का दिन इतना प्रतिष्ठित हो गया है कि नहीं आने वाले भी आज के दिन व्याख्यान में आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन उपवास भी होता है और क्षमादान का प्रकम भी इसके साथ जुड़ा है।

आचार्य ने इस संदर्भ में कहा कि यह दिन किसी भी आचार्य और तीर्थकर के साथ नहीं जुड़ा हुआ है। फिर भी जो आध्यात्मिक महत्व इसे मिला है वो अन्य को नहीं मिला है। उपवास व पौषध करना भी धर्म है। क्षमादान व क्षमायाचना भी एक विशेष उपक्रम है। संवत्सरी प्रतिक्रमण में 84 लाख जीव योनियों में खमत खामणा (क्षमा याचना) की जाती है। आचार्य ने खमत खामण को जैन शासन का महत्वपूर्ण प्रकम बताते हुए कहा कि खमत खामण मन से होनी चाहिए। मन में कोई भी वैर भाव न रहे। मैत्री के इस पर्व में चित्त की शुद्धि भी होनी चाहिए। वर्षभर में हुए अतिक्रमण की शुद्धि कर लेनी चाहिए। आचार्य ने संवत्सरी से संबंधित 'आयो जैन जगत रो प्रमुख पर्व संवत्सरी रे' गीत का संगान किया तो उपस्थित जनमेदनी हर्ष विभोर हो उठा।

वर्तमान में माता-पिता व परिवार जनों द्वारा अपने बच्चों का नाम बिना किसी अर्थबोद्धता के रखने के संदर्भ में आचार्य ने कहा कि नाम में सांस्कृतिकता झलक नी चाहिए। अनेक संतो का नाम तीर्थकर के नामों पर है। संतों के नाम से अनायास ही प्रभु का नाम भी आ जाता है। अच्छे नाम, अच्छी प्रेरणा देने वाले होने चाहिए। नाम अर्थवान होना चाहिए। आचार्य ने वर्तमान में व्यक्तियों का क्रिकेट, कम्प्यूटर आदि के प्रति अति आकर्षण पर कहा कि टीवी, क्रिकेट में जितना आकर्षण है उतना आकर्षण भगवान, धर्म व स्वाध्याय के प्रति हो जाए तो कल्याण हो सकता है। आचार्य ने कार्यक्रम के शुभारंभ पर भगवान महावीर के जीवन पर संक्षिप्त में प्रवचन दिया। मंत्री मुनि सुमेरमल ने संवत्सरी महापर्व को आत्म अन्वेषण का पर्व बताते हुए कहा कि आज के दिन हर व्यक्ति पिछला लेखा जोखा मिलाकर आगे के लिए सत संकल्प करता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक व्यक्ति नित्याधर्मी होता है। वह केवल संवत्सरी पर्व पर ही धर्म नहीं करता। बल्कि पूरे वर्ष करता है। व्यक्ति धर्म इसलिए करे कि धर्म की रक्षा व उपासना होने पर वह व्यक्ति की रक्षा करता है। नित्यधर्मी व्यक्ति मंजिल तक निर्विघ्रता से पहुंच सकता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि महावीर कुमार ने आचार्य महाप्रज्ञ की ओर से रचित गीत 'आत्मा की पोथी पढऩे का यह सुंदर अवसर आया है' का संगान किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।

लाल बाबा आचार्य की सन्निधि में:
बीकानेर से समागत लाल बाबा ने स्थानीय तेरापंथ भवन में आचार्य महाश्रमण के सम्मुख उपस्थित होकर आचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किया। सौहार्दपूर्ण वातावरण में लाल बाबा की आचार्य से वार्तालाप हुई। लाल बाबा तेरापंथ धर्मसंघ के नवम़् आचार्य तुलसी एवं दसवें आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति समर्पित रहे हैं एवं उनके दर्शनार्थ निरंतर आते रहे हैं। वर्तमान में एकादशम अधिशास्ता के दर्शनार्थ आते रहते हैं।

संवत्सरी महापर्व का आयोजन, दिनभर हुए आध्यात्मिक कार्यक्रम

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