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Jasol: 11.09.2012
Acharya Mahashraman in his book described golden point for happy and peaceful life. 1. Honesty 2. Control over emotion 3. Time Management 4. Sanyam.
News in Hindi
सदा शांत व संयम में रहें - आचार्य महाश्रमण
बालोतरा जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
संवेग संतुलन, आक्रोश संयम जरूरी है। आदमी को यदा-कदा चाहे-अनचाहे गुस्सा आ जाता है, परंतु उसमें इतनी क्षमता का विकास तो होना चाहिए कि प्रतिकूल स्थिति में भी वह शांत रह सके। जब व्यक्ति के चेहरे पर आक्रोश की रेखाएं छा जाती है, तब उसका सुंदर चेहरा भी विकृत बन जाता है। वे लोग धन्य है, जो सदा शांत रहते हैं और जिनके चेहरे पर अनुकूल प्रतिकूल, हर परिस्थिति में मुस्कान देखने को मिलती है।
तीसरा सूत्र है, संयम। आदमी में संयम का विकास होना चाहिए। जहां-जहां इनमें कमी रहती है, वहां-वहां समस्या खड़ी हो जाती है। मेरा तो मानना है कि अपेक्षित संयम के अभाव में व्यक्ति का पूरा विकास नहीं हो सकता। आदमी में कठोर जीवन जीने का भी मादा होना चाहिए। उनके खान-पान, रहन-सहन में भी संयम होना चाहिए। संयम के अभाव में वह अखाद्य खा लेता है और अपेय पी लेता है। खान-पान के असंयम के कारण वह अनेक समस्याओं को निमंत्रण दे देता है, अनेक बीमारियां हो जाती है। शरीर के अनेक अवयव अव्यवस्थित हो जाते हैं। इसलिए आदमी कुछ त्याग, नियमों को स्वीकार करे। अपने जीवन में संयम को महत्व दे। वह संयम को जीवन का भार न माने, श्रृंगार माने, उपहार माने। आदमी विचारों में भी संयम रखे। अनावश्यक चिंतन न करे और किसी के बारे में गलत न सोचे, निषेधात्मक विचारों को स्थान न दे। यदि जीवन में संयम का अवतरण हो जाता है तो आदमी शांतिमय जीवन जी सकता है।
चौथा सूत्र है, समय-नियोजन। आदमी की दिनचर्या ठीक होनी चाहिए। कई बार अव्यवस्थित दिनचर्या के कारण करणीय कार्य छूट जाते हैं और समय बीत जाता है। इसलिए आदमी को योजनाबद्ध कार्य करना चाहिए। हर आदमी को 24 घंटे का समय मिलता है। उसमें से कुछ समय चेतना के लिए भी लगाना चाहिए। आदमी केवल शरीर के आसपास रहने का भी अभ्यास करे। यदि आदमी का संकल्प हो तो कुछ समय चेतना के लिए निकाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि उसको प्राथमिकता दी जाए। मैं तो सोचता हूं कि आदमी को सोने-जागने का समय निश्चित रखना चाहिए। यदि दोनों न बैठ सकें तो कम से कम एक समय तो निश्चित रखना ही चाहिए। आचार्य तुलसी को देखा, उनके सोने में देरी हो जाती थी, किंतु उनके जागने का समय निश्चित था। वे सवेरे चार बजे जग जाते थे। आदमी अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखे और कुछ समय अध्यात्म चेतना के लिए भी लगाए तो शांतिमय जीवन जी सकता है। आदमी में ईमानदारी के प्रति निष्ठा जाग जाए, संवेगों पर नियंत्रण करना सीखे ले, संयम का भाव पुष्ट हो जाए और समय-नियोजन करना सीखे ले तो जीवनशैली विशिष्ट-प्रशस्त बन सकती है और वह शांतिमय, सुखमय जी सकता है।
आचार्य महाश्रमण
आओ हम जीना सीखें