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Jasol: 27.09.2012
Acharya Mahashraman said to participants of Preksha Meditation camp to do such practice that you can control over Mohaniya karma. Jainism believes in theory of karma. All people are responsible for their deeds.
News in Hindi
जैसा कर्म करेंगे, वैसा फल भोगेंगे: आचार्य महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) २७ सितम्बर २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने भारतीय विचारधारा में आस्तिक वाद के महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में कहा कि प्राणी जैसा कर्म करता है, वैसा ही उसे फल भोगना पड़ता है। व्यक्ति को अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, बिना भोगे सामान्यतया छुटकारा नहीं मिलता। आचार्य धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन में आठ कर्मों के माध्यम से जीवन की व्याख्या की जा सकती है। व्यक्ति के ज्ञानवरणीय कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान का, प्रतिभा का विकास होता है। वेदनीय कर्म से शरीर की स्वस्थता, अस्वस्थता, मजबूती का संबंध है। व्यक्ति की आयु आयुष्य कर्म पर निर्भर करती है। व्यक्ति को गुस्सा आना, लालची होना, संतोषी होना आदि मोहनीय कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के स्वभाव का संबंध मोहनीय कर्म के साथ है। आदमी का दृष्टिकोण सम्यक या मिथ्या होना भी मोहनीय कर्म का कारण है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान शिविर में समागत शिविरार्थियों की ओर इंगित करते हुए कहा कि प्रेक्षाध्यान शिविर से ऐसा अभ्यास हो जाए कि मोहनीय कर्म पर नियंत्रण हो जाए। ऐसा होने पर इस शिविर की अच्छी बात हो सकती है। आचार्य ने कहा कि कार्य में बाधा आना अंतराय कर्म के कारण होता है। उन्होंने प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति अपने पूरे जीवन को देखे। व्यक्ति का जीवन कर्म के अनुसार बन जाता है। आदमी को सुख चाहिए तो वह पाप कर्मों का बंधन करें। व्यक्ति हिंसा, व्यभिचार आदि से बचे और अच्छा आचरण करें। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि धार्मिक व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव का क्रम चलता रहता है। वे धार्मिक भाग्यशाली होते हैं जिनकी धर्म में निरंतर वर्धमानता व उत्साह बना रहता है। धर्म के उत्साहहीनता होने पर धर्म की क्रिया व्यक्ति के लिए भारभूत बन जाती है।