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Anuvrata, Preksha Meditation and Jeevan Vigyan are for Welfare of Humanity ►Acharya Mahashraman: 21.11.2012
Acharya Mahashraman said those dream come true which are supported by strong will power. Acharya Tulsi was person of strong will and he initiated Anuvrata, Preksha Dhyan and Jeevan Vigyan. All missions are for welfare of humanity.
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सपने नहीं संकल्प पूरे होते हैं: आचार्य
जसोल(बालोतरा) 21 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
पाप व पुण्य कर्मों का मूल संबंध भावनाओं से हैं। हमारे मन में भावनाएं अगर शुद्ध है तो मोक्ष की तरफ जाने वाला मार्ग प्रशस्त हो जाता है। अगर मोह, लोभ व कषाय आदि है तो उससे मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। ये उद््गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को जसोल में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि हमारा मन सु-मन रहे, दुर्मन नही रहे। मन में फूल जैसी पवित्रता होनी चाहिए। शरीर की चिंता न करें, चिंतन यह करते रहे कि हमारे मन में कोई दुर्भावना, कोई गलत विचार ना आए। मेरा मन कल्याणकारी वृत्ति में रमा रहे। संकल्प खराब हो तो काम भी गलत ही होंगे क्योंकि हर अच्छे व बुरे विचारों के पीछे आखिर संकल्प शक्ति ही काम करती है। चाहे वह हिंसा हो या अहिंसा। आतंकवाद की वारदातें जब होती है तो उसके पीछे भी संकल्प शक्ति ही काम करती है। हमारा मानसिक संकल्प अच्छे कार्यों का होना चाहिए। आचार्य ने कहा कि बंधन का कारण भी संकल्प है और मोक्ष का कारण भी संकल्प ही है। केवल सपने पूरे नहीं होते, संकल्प पूरे होते हैं। अत: सपनों के साथ संकल्प जुडऩा आवश्यक है। आचार्य तुलसी ने संकल्प शक्ति के बल पर अनेक कार्य किए। अणुव्रत प्रेक्षा ध्यान जीवन विज्ञान आदि मानव कल्याणकारी आंदोलन साबित हुआ। नैतिकता व अहिंसा का रास्ता जन-जन के लिए उपयोगी बना। आचार्य ने कहा कि आदमी के अंदर अनंत बल है। अगर थोड़ी सी शक्ति भीतर से जग जाए तो मोक्ष की मंजिल दूर नहीं होगी। आचार्य महाप्र्रज्ञ मनीषी पुरुष थे, वे अध्यात्म धर्म के बारे में सदैव बताते थे। हिंसा का कारण परिग्रह है, गृहस्थ का इच्छा परिणाम अर्थात् परिग्रह की सीमा करनी चाहिए। उन्होंने एक सूत्र दिया था, अपरिग्रह परमोधर्म का। आचार्य ने कहा कि व्यक्ति को सदैव यह आकलन करने रहना चाहिए कि मैं मोक्ष की तरफ कितना हूं और बंधन की तरफ कितना संलग्न हूं। ये भी सोचे कि मेरे झूठ में चोरी की वृत्ति तो नहीं है तथा पदार्थ के प्रति मूच्र्छा कितनी है। जीवन यापन के लिए आखिर कितना पैसा चाहिए। व्यक्ति को पैसा कमाने के बजाय धर्म ध्यान की आराधना में रत रहना हितकर है। परिग्रह व आशक्ति बुरे हैं। व्यक्ति को पदार्थों की सीमाएं तय करनी चाहिए। उम्दा चीजों के प्रति आकर्षण भी कम होना अपेक्षित है। आचार्य ने कहा कि आत्मा अटैचमेंट है। भगवत गीता में भी इन बिंदुओं का उल्लेख है। अध्यात्म व चिंतन के द्वारा अटैचमेंट से विमुक्त हुआ जा सकता है। उन्होंने कहा कि साधु की आसक्ति ना तो नाम में और ना ही ख्याति या उपकरण आदि में रहनी चाहिए। कहा गया है कि साधु शरीर का भी मोह ना करे। अत: उन्हें आकर्षण दिखने का भी मोह नहीं करना चाहिए। गृहस्थों को तो मकान, एसी, कार आदि की सुविधाओं के बावजूद उनसे विमुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।
इस अवसर पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने भी उद्बोधन दिया। अणुव्रत अंतर्राष्ट्रीय अभियान में प्रयासरत डॉ. सोहनलाल गांधी ने अपनी पुस्तकें आचार्य को भेंट की। इस अभियान से जुड़े नरेश मेहता भी उपस्थित रहे। इचलकरंजी तेरापंथ समाज के पुष्पराज ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि हिमांशुकुमार ने किया।