28.11.2012 ►Jasol ►Veetaragta is Aim of Sadhana ◄Acharya Mahashraman

Published: 28.11.2012
Updated: 08.09.2015

ShortNews in English

Jasol: 28.11.2012

Acharya Mahashraman said that sect is like cover of fruits and religion is like main part of fruits. We all are doing Sadhana and aim of Sadhana is Veetaragta.

News in Hindi

साधना का सार है वीतरागता: आचार्य
जसोल(बालोतरा) 28 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

राग-द्वैष बंधन की अवस्था चेतना को मल्लिन बनाने वाले तत्व है। राग-द्वैष मुक्ति की अवस्था अहिंसा-समता आदि की अवस्था है। धर्म का सार वीतरागता में है। ये उद्गार मंगलवार को जसोल के तेरापंथ भवन स्थित वीतराग समवसरण में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने व्यक्त किए।

आचार्य ने कहा कि साधु और गृहस्थ दोनों ही भोजन करते हैं। साधु का भोजन संयम का पोषण है जबकि गृहस्थ का भोजन असंयम का पोषण है। भोजन करते समय व्यक्ति राग-द्वैष से मुक्त रहे। भोजन को सराह-सराह कर करना दोष है। अगर प्रतिकूल भोजन भी आ गया हो तो उसे शांत भाव से ग्रहण करना चाहिए। राग- द्वैष का हेतु नहीं बनें, मोह के कर्म के कारण व्यक्ति राग-द्वैष में चला जाता हैं। व्यक्ति को भोजन के दौरान गुस्से में नहीं जाना चाहिए। कई-कई व्यक्तियों के पास गुस्सा तो मानो तैयार ही बैठा हैं, मौका मिलते ही व्यक्ति के सर पर गुस्सा सवार हो जाता है। भोजन करते समय समता के भाव हो न कि विषमता के भाव। व्यक्ति को अनुकूलता या प्रतिकूलता दोनों में समभाव रखना चाहिए। समता को धर्म कहा गया है। अभ्यास करने से ही विकास संभव है। कहा भी गया है कि '' करत-करत अभ्यास, जड़मति होत सुजान'' अगर सलक्ष्य प्रयास किया जाए तो सामान्यत: बुद्धि वाला व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। अभ्यास करने से कार्य सिद्ध होता है। केवल सपने देखने से कुछ नहीं होता। श्रवणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय इन पांच इन्द्रियों के विषय पर राग अहंकार का भाव न आना चाहिए। व्यक्ति प्रशंसा के क्षणों में भी क्षमता रखें। अनुकूल शब्द आ जाने यानि कोई निन्दा करें या प्रशंसा हम संयमपूर्वक समता भाव में रहें। स्थितप्रज्ञ वह होता है, जो राग-द्वैष से मुक्त हो, शुभ या अशुभ भाव में भी राग-द्वैष से परे रहने वाल स्थितप्रज्ञ की श्रेणी में आता है। आचार्य ने कहा कि धर्म का सार वीतरागता में है। कौन से धर्म, कौनसे देश, कौन से वेश या कौन से परिवेश में है, ये सब गौण है? आचार्य तुलसी सदैव कहते थे कि संप्रदाय गौण है, जबकि धर्म मुख्य है, सम्प्रदाय छिलका है धर्म तो गुद्दा ही है। संप्रदाय इसलिए कि हम साधना कर सके। उन्माद से साधना नहीं हो सकती। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जब एक दशक पूर्व प्रेक्षा विश्व भारती कोबा में आचार्य महाप्रज्ञ के दर्शन किए तो कलाम को बताया कि राष्ट्र मुख्य है। पार्टिया गौण है तो यह सूत्र उनको भी आ गया। अत: मुख्य का स्थान मुख्य ही रहे। वीतरागता मुख्य बात है, अगर वीतरागता है तो देश-परिवेश कोई विषय नहीं है। जैन शासन में वीतरागता को प्राथमिकता दी गई है। सारे धर्मों का एक ही सार है- अहिंसा व समता। आचार्य ने कहा कि जिसका आराध्य जिन है, वो जैन है। साधुओं में तो सदा वीतरागता हो ही। कहा गया है कि चेहरा प्रसन्न हो, लाभ-अलाभ में समकक्ष हो, शांति वैराग्य आनंदमय हो, ऐसे साधु परमात्मा की कृति होते है।

Sources

ShortNews in English:
Sushil Bafana

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