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Santara: 05.12.2012
Acharya Mahashraman said that soul is our friend and soul is our enemy. Soul engaged in Sadhana is friend and Soul who engaged in bad deed is enemy.
News in Hindi
स्वयं को मित्र बनाओ: आचार्य महाश्रमण
सणतरा पहुंचा आचार्य महाश्रमण का काफिला, गांव में हुआ भव्य अभिवादन
सणतरा (बाड़मेर) 05 दिसम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य सौभाग्यशाली होते हैं, जिन्हें योग्य शिष्य मिलते हैं। साधु के लिए कहा गया है कि यदि उन्हें अपने से अधिक योग्य शिष्य मिल जाए तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। अन्यथा अयोग्य शिष्य मृदु स्वभाव वाले गुरु के मन को भी गुस्से में परिवर्तित कर देते हैं। यह उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को सणतरा के राजकीय माध्यमिक स्कूल के प्रांगण में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि शास्त्रानुसार अपने स्वयं को मित्र बनाओ, व्यक्ति अगर स्वयं का मित्र बन जाए तो सौभाग्य की बात होगी। आत्मा ही मित्र है और आत्मा ही शत्रु है। आचार्य ने चार मित्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार से थोड़े लाभ के लिए नुकसान उठाना मूर्खता है उसी प्रकार थोड़े समय के आनंद के लिए नशा करने से भविष्य में शरीर को भारी नुकसान है। व्यक्ति को हमेशा पाप कर्मों के बंधन से बचना चाहिए। जो व्यक्ति धर्म की साधना करता है, वह स्वयं का मित्र बन जाता है। नशा, झगड़ा, हिंसा व गुस्सा करने वाला व्यक्ति औरों के साथ-साथ स्वयं का भी दुश्मन बन जाता है। जब व्यक्ति मोह रूपी राक्षस के रूप में प्रवेश करता है तो वह पाप की ओर चला जाता है। शराब पीने वाले लोगों का चित पापाचार की ओर चला जाता है। व्यक्ति को शराब पीकर वोट नहीं डालने चाहिए बल्कि प्रत्याशी की कसौटी देखकर वोट डालना चाहिए। बिना सोचे समझे वोट डालना भी पाप का प्रतीक है। आचार्य ने आगे कहा कि आज से लगभग 48 वर्ष पूर्व आचार्य तुलसी भी सणतरा आए थे, तब उनका यहां आना पूर्व नियोजित नहीं था, वे बिना नियोजन ही सणतरा आए थे। उन्होंने बताया कि 'सपने कभी पूरे नहीं होते, संकल्प पूरे होते हैं' तथा 'साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय' पंक्ति के साथ बताया कि दूसरों को मित्र बनाए या नहीं परंतु स्वयं को अहिंसा, सत्यता, प्रामाणिकता, संयम एवं धर्मोपासना के मार्ग पर चल कर मित्रता बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। स्वयं का मित्र बनने से जीवन का सफल होना निश्चित है। मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सही व्यक्ति अपने लक्ष्य का प्रमाद व आलस्य नहीं करता वह अपने लक्ष्य को बहुत ही जल्दी पा लेता है। व्यक्ति को हमेशा पुरुषार्थ की ओर आगे बढऩा चाहिए। जो व्यक्ति आलस्य की ओर बढऩा शुरू कर देता है उसकी मंजिल उतनी ही नजदीक होती जाती है। केवल लक्ष्य निर्धारित करके बैठ जाने से मंजिल कभी नजदीक नहीं आती। पुरुषार्थ करना व्यक्ति का पहला काम है। हमें पुरुष शील धार्मिक प्रवृत्ति का होना चाहिए। कार्यक्रम से पूर्व गजेंद्र गोगड़ द्वारा 'अनुकंपा अवतार गुरु, जुग-जुग जीओ नी' गीतिका प्रस्तुत की। नारायण गोगड़ ने स्वागत भाषण के साथ आचार्य एवं धर्मसंघ का अभिनंदन किया। नरेश गोगड़ ने 'धन घड़ी धन भाग, दयालु घर आवीया जी' तथा लक्ष्मण गोगड़ ने 'हे जग के जगताणी सूरज, चांद र तारा रै' पद्य के साथ अपनी अभिव्यक्ति दी। देवीबाई गोगड़ ने 'सोना रूपालो सूरज उग्यो, म्हारो सपनों साचो होग्यो' गीत प्रस्तुत कर महिलाओं की ओर से प्रतिनिधित्व किया। आचार्य ने बाबूलाल देवता की 5 की तपस्या पर भाव व्यक्त करते हुए 21 की तपस्या करने को शुभांषा की। मुनि जितेन्द्र कुमार ने स्कूल के बालक-बालिकाओं को नशामुक्ति का संकल्प दिलाया और सभी ग्रामीणों को हिंसा नहीं करने तथा नशामुक्त जीवन जीने का संदेश दिया। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया।