05.01.2013 ►Jain Terapanth News 02

Published: 05.01.2013
Updated: 08.09.2015

News in Hindi

कैवल्य ज्ञान के बिना मोक्ष संभव नहीं: आचार्य श्री

भगाणियों की ढाणी (कवास) 05 जनवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

क्षेत्र के भगोणियों की ढाणी में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि धार्मिक साहित्य में मोक्ष की चर्चा होती है। अनंत आत्माएं मोक्ष को प्राप्त हो चुकी हंै व कई आत्मा मोक्ष को प्राप्त होगी। मोक्ष का वैशिष्ट एकांत सुख है, वहां किसी प्रकार का दुख न होकर सुख होता है जो परम पवित्र है। पदार्थजन्य सुख वहां नहीं है।


महाश्रमण ने कहा कि शरीर को भौतिक सुख सुविधा चाहिए। लेकिन मोक्ष में जाने वाले जीव का शरीर ही नहीं वाणी, मन नहीं होते हैं। वे ऐसे जीव है जहां केवल चेतना है। महाश्रमण ने कहा कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वज्ञता के उद्भव की आवश्यकता है। कैवल्य ज्ञान मिले बिना कोई जीव मोक्ष में नहीं जा सकता। सर्वज्ञता मोक्ष की अर्हता है। साथ ही उन्होंने कहा कि मोह व अज्ञान के नष्ट नहीं होने से सर्वज्ञता होती है। आदमी अज्ञान को छोड़ दे क्यों कि अज्ञान से बड़ा ही दुख व कष्ट है। अज्ञान तब तक पूर्णतया नष्ट नहीं होता जब तक मोह पूर्णरूप से नहीं होता है। मोह कर्म पापों का राजा है, मोह के चेतना में रहने से अज्ञानता का पूर्णतया नाश नहीं होता है। राग-द्वेष के क्षय होने से मोह की सत्ता समाप्त हो जाती है। आदमी राग-द्वेष को क्षीण करने का प्रयास करें इसे साधना की अपेक्षा होती है। राग-द्वेष के क्षीण होने से एकांत सुख प्राप्त होने लगता है। इस दौरान कार्यक्रम में शांतिलाल छाजेड़ ने भावोभिन्याक्ति दी।

कवास. क्षेत्र के भगाणियों की ढाणी में आचार्य महाश्रमण से प्रवचन सुनती छात्राएं (इनसेट)प्रवचन देते आचार्य महाश्रमण।

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Publications
          • Jain Terapanth News [JTN]
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. आचार्य
              2. आचार्य महाश्रमण
              3. ज्ञान
              4. सत्ता
              Page statistics
              This page has been viewed 664 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: