ShortNews in English
Tapara: 09.02.2013
Acharya Mahashraman said that Acharya Bhikshu was dedicated to Mahavir. He followed Tatva given by Veetaraga. Terapanth sect is doing Sadhana under guidance of One Acharya.
News in Hindi
'एक ही आचार्य के विचारों का पंथ है तेरापंथ'
टापरा 09 फरवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
'वीतरागता से निरूपित तत्व के प्रति आस्थावान होना, अध्यात्म की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होती है।' तेरापंथ जैन धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने शुक्रवार को जय-मर्यादा समवसरण में 'हे प्रभो! ये तेरापंथ' विषय पर बोलते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु के बारे में पढ़े तो यह प्रतीत होता हैं कि उनमें जिनवाणी, आगमवाणी के प्रति कितना समर्पण का भाव था। जैन धर्म ग्रन्थों के आधार पर आदमी साधना करता है। उन धर्म ग्रन्थों के प्रति सम्मान का भी भाव रहना चाहिए। विषय को इंगित करते हुए आचार्य ने कहा कि वीतराग प्रभु महावीर के शासन में हम साधना कर रहे हैं।
यह पंथ तो वीतराग प्रभु भगवान महावीर के द्वारा ही दिखाया गया है। हम जिस संप्रदाय में जी रहे हैं, वह जैन शासन का एक हिस्सा है। इस आयाम के संप्रवर्तक आचार्य भिक्षु है। आचार्य भिक्षु ने कोई पूर्व चिंतन के अनुसार संघ का प्रारंभ किया, ऐसी बात नहीं लगती। वे तो साधना के लिए निकले थे और उनके मन में आशा या अनुमान भी नहीं था कि कोई संघ आगे चलेगा, उनको तो साधना करनी थी। उनमें आत्मकल्याण करनी की भावना थी। बाद में उन्हें लगा कि यह पंथ तो जमने वाला है और वास्तव में यह पंथ जम गया और पंथ की ऊबडख़ाबड़ समाप्त हुई तथा एक सुंदर मार्ग के रूप में वह सामने आया।
उन्होंने कहा कि तेरापंथ का पथ काफी सामान्य है। काफी सुविधा से इस पथ पर चला जा सकता है। हे प्रभो! यह तेरापंथ 'यह कौन सा पंथ' जिसमें एक ही आचार्य के विचारों की बात है और एक ही आचार्य का विधान है। 'एक आचार है, एक आचरण री आण है' गीत के माध्यम से आचार्य ने बताया कि धर्मसंघ में स्थापित आचरण एक है। पालन में अंतर हो सकता है परन्तु निर्णित एवं स्थापित आचार एक है। यदि कोई अंतर मिल जाए तो वहां एक करने का प्रयास भी किया जाता है। आचार्य के निर्णय में लोकतंत्र नहीं होता, वोटिंग नहीं होती, इसमें हार-जीत नहीं होती। वर्तमान में जो आचार्य है वह जिसको मनोनीत कर दे वह आचार्य बन जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ के काल में इस बात पर चिन्तन किया गया कि इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए तब उन्होंने निर्णय लिया कि ऐसी स्थिति में बहुश्रुत परिषद ध्यान दें व निर्णय करें।
उन्होंने कहा कि तेरापंथ की यह व्यवस्था है कि एक आचार हो, एक विचार हो और एक आचार्य का अनुशासन रहें तथा साधु-साध्वियों का धर्म है कि वे एक आचार्य के अनुशासन को पूर्ण सम्मान देने का प्रयत्न करें। गुरु के आदेश के प्रति सतर्क रहे। गुरू का निर्णय हमें मन से स्वीकार करना चाहिए। ऐसा समर्पण तेरापंथ में रहा है और यदि कमी हो तो और भी विकास करने का प्रयास करना चाहिए। हे प्रभो! यह तेरापंथ - यह तेरापंथ ऐसा है जहां सेवा पर ध्यान दिया जाता है। कोई बीमार, निराश्रय, असाता या रूग्ण हो तो सर्वप्रथम उसको चरण मिलनी चाहिए।