ShortNews in English
Tapara: 11.02.2013
Acharya Mahashraman said give respect to Maryada. Do Vihar and Chaturmas with permission of Acharya. Prove yourself to be competent and useful.
News in Hindi
उपादेय या ग्रहण करने योग्य को स्वीकार करना चाहिए: आचार्य
जय मर्यादा समवसरण: 'मेरं सरणं गच्छामि' पर दिया प्रवचन
टापरा (बालोतरा) 11 फरवरी 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
'हमारी दुनिया में अनेक चीजें हेय होती है। जिन्हें छोड़ देना चाहिए। कुछ उपादेय या ग्रहण करने योग्य होती है उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। व्यक्ति हेय व उपादेय दोनों को जान ले, ताकि हेय को छोड़ा जा सके। असंयम हेय है और संयम उपादेय है।' ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने रविवार को टापरा में 'मेरं सरणं गच्छामि' विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि समारोह मनाना ज्यादा महत्व की बात नहीं है पर मर्यादा के प्रति निष्ठा का पुष्ट होना महत्वपूर्ण है। वह निष्ठा चाहे कैसे भी पुष्ट बनें। उन्होंने कहा कि मर्यादाएं शास्त्रीय हो या संघीय सांप्रदायिक मर्यादाएं हो, उन्हें सम्मान अवश्य देना चाहिए। उनकी अवहेलना नहीं होनी चाहिए और जब लगे कि अमुक मर्यादा की उपयोगिता अब नहीं है तो उस पर चिंतन मनन और तटस्थता से विचार विमर्श कर लेना चाहिए। आचार्य ने कहा कि मर्यादा हमारी उपयोगिता को बढ़ाती है। यह संयम जीवन की सुरक्षा में सहयोगी है, प्राकार है, लक्ष्मण रेखा है। हम मर्यादाओं के भीतर रहने का प्रयास करें। उपयोगिता पूर्ण मर्यादाओं के पालन के प्रति सतर्क रहना चाहिए। संगठन की मर्यादाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि सबसे बड़ी मर्यादा है कि सभी साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहें।
अपनी उपयोगिता सिद्ध करें
व्यक्ति मर्यादा के प्रति उचित सम्मान का भाव रखें। हम आत्मसाक्षी से मर्यादा का सम्मान करने का प्रयास करें। हम अपनी अर्हताओं के विकास का प्रयास करें। जीवन में पराक्रम करें और आदमी की उपयोगिता सिद्ध करें। कार्यक्रम में तेयुप दिल्ली की ओर से समागत सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए तेयुप अध्यक्ष गजेंद्र बोथरा ने विचार व्यक्त किए। तेयुप के सदस्यों ने 'है! तेरापंथ के नव अधिनायक' गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी साधु-साध्वियों की उपस्थिति में आचार्य के सानिध्य में जनसमूह के समक्ष अर्हत वंदना की गई। मुनि नीरज कुमार ने वंदना के लिए स्वर दिया। साथ में सभी साधु-साध्वियां ने उच्चारण किया।
विहार-चातुर्मास गुरु की आज्ञा से
उन्होंने कहा कि हमारे संगठन की मर्यादा है कि विहार-चातुर्मास गुरु की आज्ञा से करें। इससे व्यवस्था सुंदर रहती है। साधु-साध्वी अपने-अपने शिष्य-शिष्याएं न बनाए। किसी भी साधु-साध्वी का गुरु आचार्य ही होता है। आचार्य जिसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करें, स्थापित करें, वहीं आगे फिर आचार्य बनता है। योग्य व्यक्ति का ही संघ में समावेश होना चाहिए। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि कोई साधु किसी अन्य साधु में गलती देखकर उसके परिष्कार व हित के लिए उसे या आचार्य को बता दें और गलती होते ही बता देनी चाहिए। गलती को कुछ दिन विलंब करके बताने वाला प्रायश्चित का भागी होता है। यह भी हमारे संगठन की मर्यादा व व्यवस्था है। मर्यादावली, अनुशासन की संहिता, परंपरा की जोड़ को पढऩे से अनेक जानकारियां मिल सकती है।