Update
Source: © Facebook
मुनि क्षमासागर जी द्वारा आत्मान्वेषी पुस्तक में लिखा गया संस्मरण.
जब पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मुक्तागिरी चातुर्मास(१९८०) के बाद रामटेक की और विहार हुआ तो रास्ते में एक दिन अम्बाडा गाँव पहुँचते-२ अँधेरा छा गया | सारा संघ गाँव के समीप एक खेत में ठहर गया | खेत में ज्वार के डंठलो से बना एक स्थान था | रात्री विश्राम यही करेंगे, ऐसा सोचकर सभी ने प्रतिक्रमण किया और सामायिक में बैठ गए |
दिसम्बर के दिन थे | ठण्ड बढ़ने लगी |
रात नो बजे जब श्रावको को मालूम हुआ की आचार्य महाराज खेत में ठहरे है तो बिचारे सभी वहां खोजते-२ पहुचे| जो बनी सो सेवा की | स्थान एकदम खुला था, नीचे बिछे डंठल कठोर थे| इन सबके बाबजूद भी आचार्य महाराज अपने आसन पर अडिग रहे | किसी भी तरह से प्रतिकार के लिए उत्सुकता प्रकट नहीं की |
लगभग आधी रात गुजर गयी | फिर दिन भर के थके शरीर को विश्राम देने के लिए वे एक करवट से लेट गए | उनके लेटने के बाद ही सारा संघ विश्राम करेगा, ऐसा नियम हम सभी संघस्त साधुओ ने स्वत: बना लिया था, सो उनके उपरान्त हम सभी लेट गए |
ठण्ड बढती देखकर कुछ श्रावको ने समीप में रखे सूखे ज्वार के डंठल सभी के ऊपर डाल दिए | सब चुपचाप देखते रहे, किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त्त नहीं की | लोग यह सोचकर निश्चिन्त हो गए की अब ठण्ड कम लगेगी, पर ठण्ड तो उतनी ही रही. डंठल का वोझ एवं चुभन अवश्य बढ़ गई |
उपसर्ग व परीषह के बीच शांत भाव से आत्म-ध्यान में लीन रहना ही सच्ची साधुता है, सो सभी साधूजन चुपचाप सब सहते रहे | सुबह हुई, लोग आये | डंठल अलग किये | हमारे मन में आया की श्रावको को उनकी इस अज्ञानता से अवगत करना चाहिए, पर आचार्य महाराज की स्नेहिल व निर्विकार मुस्कुराहट देखकर हमने कुछ नहीं कहा | मार्ग में आगे कुछ दूर विहार करने के बाद आचार्य महाराज बोले की “देखो, कल सारी रात कैसा कर्म निर्जरा करने का अवसर मिला, ऐसे अवसर का लाभ उठाना चाहिए |”
हम सभी यह सुनकर दंग रह गए | मन ही मन अत्यंत श्रद्धा और विनय से भरकर उनके चरणों में झुक गए | आज कर्म निर्जरा के लिये तत्पर ऐसे रत्नत्रयधारी साधक का चरण सान्निध्य मिल पाना दुर्लभ ही है |
आत्मान्वेषी -मुनि क्षमा सागर
Source: © Facebook
today morning pic
Source: © Facebook
>> सम्यग्दर्शन उत्पत्ति के कारण <<
>निकट भव्यपना - अर्थात शीघ्रहि मोक्ष पाने की योग्यता।
>सम्यकत्व को रोकनेवाले मिथ्यात्व आदि कर्मोंका उपशम, क्षय
अथवा क्षयोपशम।
>संज्ञीपना अर्थात मनकी सहायतासे उपदेश आदि ग्रहण कर सकनेकि
योग्यता।
>विशुद्ध परिणामोंका होना।
>ये ४ सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के अंतरंग कारण है।
>तथा सच्चे गुरु का उपदेश और जैन धर्म के अतिशयोंका दर्शन
वगैरह बहिरंग कारण है।
# अर्हद्दास जैन #
Source: © Facebook
>> क्या भगवंत भक्ति करनेसे मोक्ष नहीं मिलेगा? <<
मिथिला नगरी में पद्मरथ नामका राजा था।
वह रोज भगवन्त की अनुराग पूर्वक भक्ति करता था।
उस भक्ति के फल स्वरुप वह देवेंद्रोंसे पूजे गये
और आगे चलकर वासुपूज्य भगवन का गणधर हो गए।
जिनेन्द्र भगवन के दर्शन करनेसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
इन ४ ही पुरुषार्थोंकी प्राप्ति होती है।
एकांतवादी कहते है भगवंत दर्शन, भक्ति से बंध होता है।
" पंचास्तिकाय " टिका में आचार्य अमृतचन्द्र ने लिखा है।
भगवंत भक्ति से पुण्य बंध होगा किन्तु परम्परासे मोक्ष
होता है। वह जीव वही भव में शायद मोक्ष नहीं जायेगा
लेकिन आनेवाले कुछ भवोंमे परम्परासे मोक्ष जायेगा।
कोई भक्ति करा रहा है। कोई पूजा कर रहा है।
कोई अभिषेक कर रहा है। कोई स्वाध्याय कर रहा है।
कोई जाप कर रहा है।
अभी ऐसा थोड़ा है जाप करनेवाले को मोक्ष मिलेगा
और अभिषक करने वाले को मोक्ष नहीं मिलेगा
ये सब व्यवहार धर्म क्रिया करनेवाले जिसे सम्यक श्रधान का
रत्न मिल गया वह तो मोक्ष मार्ग पर चल पड़ा।
स्वानंद विद्यामृत - परम पूज्य आचार्य श्री विद्यानंद मुनि महाराज
# अर्हद्दास जैन
News in Hindi
Source: © Facebook
80k $ (51,00000 ₹ yearly) salary chod with wife (60k $ salary) returned to home for peaceful life:)))