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📝 श्रावक संबोध-20 📝
(मुक्त छन्द)
20 - बन जाए अज्ञान ज्ञान यदि सम्यग्दर्शन,
महावीर का मूल्यवान यह जीवन-दर्शन।
आर्य भिक्षु का इसी दिशा में कदम बढ़ा है,
ईसा ने जन्मान्ध व्यक्ति से पाठ पढ़ा है।।
अर्थ - सम्यग्दर्शन की उपलब्धि होने से अज्ञान ज्ञान बन जाता है और सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान भी अज्ञान कहलाता है। यह भगवान महावीर का मूल्यवान जीवन दर्शन है। इसी सिद्धांत को आधार मानकर आचार्य भिक्षु ने अपने चरण बढ़ाए। ईसा मसीह को भी एक जन्मान्ध व्यक्ति से यह बोधपाठ मिला कि किसी अंधे व्यक्ति को आँख देना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है सम्यग्दृष्टि (अंतर्दृष्टि) की उपलब्धि।
भाष्य - व्यक्तित्व-निर्माण के अनेक घटक हैं। उनमें एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है सम्यग्दर्शन। इसे सम्यग् दृष्टिकोण या सम्यक्त्व भी कहा जाता है।
व्यक्ति कितना भी बड़ा विद्वान् हो और कितनी ही उपाधियों का धारक हो, जब तक उसे सम्यग्दर्शन नहीं मिलता, एक दृष्टि से वह अज्ञानी है।
ज्ञान, दर्शन और चारित्र - तीनों को सम्यक् बनाने वाला एक ही तत्त्व है सम्यग्दर्शन। धार्मिक जीवन का आदि बिंदु यही है। जब तक अनन्तानुबंधी कषाय-चतुष्क क्रोध, मान, माया और लोभ का उदय रहता है, तब तक सम्यग्दर्शन की उपलब्धि नहीं हो सकती। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बिना गुणस्थानों की श्रेणी पर आरोहण संभव नहीं हैं। इस अपेक्षा से यह स्वीकार किया जा सकता है कि सम्यग्दर्शन आध्यात्मिक विकास की आधारशिला है।
इस विषय में आचार्य भिक्षु का चिंतन - जब तक दृष्टि नहीं बदलती, व्यक्ति नहीं बदल सकता। वह धार्मिक तो क्या व्यवहार में भी अच्छा आदमी नहीं बन सकता। एक व्यक्ति दुःखी है, दरिद्र है, दीन-हीन है। उसकी दीनता से द्रवित होकर कोई उसे सब तरह का सहयोग देकर सुखी बनाने का प्रयत्न करता है। यह कोई बुरी बात नहीं है। इसमें भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती हैं? प्रश्न इतना ही है कि क्या ऐसा करके उसे धार्मिक बनाया जा सकता है?
उसके दृष्टिकोण को सम्यक् बनाया जा सकता है?
आचार्य भिक्षु लोगों को तत्त्व की बात समझाने के लिए दृष्टान्त की भाषा में बोलते थे।
आचार्य भिक्षु के दृष्टान्त जानने - समझने के लिए देखें हमारी अगली पोस्ट...
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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