Updated on 12.08.2022 22:26
गुरुदेव लाडनूं से बीदासर...कालूयशोविलास का राजस्थनी भाषा में
आख्यान परम पूज्य गुरुदेव के मुखारविंद से जरूर जरूर सुनें
Posted on 12.08.2022 16:42
🌸 विकास और ह्रास का चलता रहता है क्रम: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸-अवसर्पिणी और उत्पसर्पिणी काल के क्रम को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-कालूयशोविलास में जोधपुर में हुए आचार्य कालूगणी के चतुर्मास का वर्णन
12.08.2022, शुक्रवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
कुछ अतीत में भगवान पार्श्वनाथ तेइसवें तीर्थंकर के रूप में विराजमान थे। जैन शासन में अवसर्पिणीकाल और उत्पसर्पिणी काल में 24-24 तीर्थंकरों की व्यवस्था बताई गई है। कालचक्र के दो विभाग होते हैं-अवसर्पिणीकाल में अवरोहण होता है और उत्सर्पिणीकाल में आरोहण होता है। इसे समझने के लिए घड़ी का उदाहरण लिया जा सकता है। जैसे घड़ी में कुल बारह अंक होते हैं, उसी प्रकार दोनों कालों के छह-छह अर मिलाकर बारह अर होते हैं। जिस प्रकार घड़ी में बारह से लेकर छह तक सूई का अवरोहण होता है और छह से लेकर बारह तक घड़ी की सूइयों का आरोहण होता है। अवसर्पिणीकाल में कुछ ह्रास होता है। जैसे आदमी आयुष्य न्यूनता की ओर आता है। आदमी का शरीर जैसे कमी की ओर आता है। अवसर्पिणी के प्रथम काल में तीन पल्योपम काल तक आयुष्य आदमी को मिलता है जो क्रमशः ह्रास को प्राप्त होता है। उसी प्रकार आदमी की ऊंचाई का भी क्रमशः ह्रास होता जाता है। इसी प्रकार उत्सर्पिणी काल में क्रमशः मनुष्य के आयुष्य और ऊंचाई का विकास होता है। इस कालचक्र का क्रम अनंतकाल से चलता है।
वर्तमान में अवसर्पिणीकाल चल रहा है, जिसमें इस भरतक क्षेत्र में 24 तीर्थंकर हो चुके हैं। भगवान पार्श्वनाथ के समय का एक साधु स्थविरों के पास जाकर उन्हें बोलता है कि यह स्थविर सामायिक नहीं जानते, उसका अर्थ नहीं जानते, प्रत्याख्यान, संयम, संवर, विवेक आदि को नहीं जानते और उसका अर्थ नहीं जानते। स्थविर भगवान ने उसे बताया किया हम सामायिक को भी जानते हैं और उसके अर्थ को भी जानते हैं। उन्होंने बताया कि सामायिक आत्मा है। आत्मा ही सामायिक है। सावद्य से विरति होती है, वह सामायिक होती है। साधु के सम्पूर्ण सामायिक और श्रावक के कुछ समय की सामायिक होती है। समायिक आत्मा है। आत्मा में सामायिक होती है। समायिक समता है और समता को धर्म बताया गया है। सामायिक धर्म का प्रयोग है।
मैंने शनिवार को सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक का प्रयोग करने की बात बताई है। तेरापंथी समाज के लोग परिवार के साथ घर, तेरापंथ भवन आदि स्थानों पर करें। सामायिक धर्म का अच्छा क्रम है। जहां सावद्य योगों का त्याग होता है। पाप सहित प्रवृत्ति का त्याग होता है। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान कीं।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री कालूयशोविलास के आख्यान शृंखला में परम पूज्य आचार्यश्री कालूगणी के सिंवाची मालाणी क्षेत्र में पधारने और विक्रम संवत 1973 का चतुर्मास जोधपुर में करने के प्रसंगों का रोचक व सरसशैली में वाचन किया। कार्यक्रम में श्री तनसुख बैद ने अपनी लिखित पुस्तक ‘यात्रा स्वयं से स्वयं तक’ को पूज्यचरणों में लोकार्पित की। तदुपरान्त अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि राजकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी। तेरापंथ महिला मण्डल की मंत्री श्रीमती अल्का बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
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