21.08.2022: Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha

Published: 21.08.2022

Posted on 21.08.2022 17:59

पर्युषण महापर्व ...निकट आ रहा है... संवत्सरी महापर्व आने वाला है

पर्युषण महापर्व ...निकट आ रहा है... संवत्सरी महापर्व आने वाला है

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🌸 ज्ञान प्राप्ति का माध्यम बने इन्द्रियां: परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण 🌸

-भगवती सूत्राधारित प्रवचन में आचार्यश्री ने इन्द्रियों के संयम व उनके सदुपयोग की दी प्रेरणा

-साध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवर्याजी ने भी श्रद्धालुओं को को किया उद्बोधित

-दिल्ली से पहुंचे संघ ने अपने आराध्य के समक्ष की अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति

-अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय सांपला ने भी किए पूज्यश्री के दर्शन

21.08.2022, रविवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :

छापर की नगरी वर्तमान में मानों धर्मनगरी बनी हुई है। देश-विदेश में रहने वाले तेरापंथी समाज के लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि मानवता में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए भी छापर तीर्थ के समान ही बना हुआ है। क्योंकि यहां विराजमान हैं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी, जो छापर की धरा पर वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे हैं। प्रतिदिन देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम जारी है। रविवार को भी कई क्षेत्रों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के दर्शन और मंगल प्रवचन का लाभ उठाया।

रविवार को आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पथदर्शन प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि कितनी इन्द्रियां प्रज्ञप्त हैं? उत्तर दिया गया कि पांच इन्द्रियां बताई गई हैं- नाक, कान, आंख, जिह्वा और त्वचा। इस प्रकार आदमी के शरीर में पांच इन्द्रियां होती हैं। इन पांचों को इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रियां भी कहा जाता है। कितने-कितने प्राणी भी पांच इन्द्रियों वाले होते हैं। कितने प्राणी चार इन्द्रियों वाले, तीन इन्द्रियों वाले, दो इन्द्रियों वाले और एक इन्द्रिय वाले प्राणी भी होते हैं। मनुष्य के पास पांचों इन्द्रियां उपलब्ध हैं। इन्द्रियां ज्ञान का सशक्त साधन होती हैं। आदमी को इनसे ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। आदमी सुनकर और देखकर कितना ज्ञान प्राप्त करता है। आदमी किसी बात को सुनने के बाद देख भी ले तो मानों वह ज्ञान उसका पुष्ट बन जाता है।

कुछ अच्छा ज्ञान श्रवण करने के उपरान्त उसका मनन हो जाए। आदमी किसी के दुःख को सुनता है तो कुछ सांत्वना भी दे सकता है। आदमी प्रवचन का ही श्रवण करे तो उसे कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। वर्तमान समय में तो कितनी-कितनी पुस्तकें भी आडियो रूप में उपलब्ध हो सकती हैं। कानों से अच्छी बातों को सुने और आंखों से संतों के दर्शन करे, ग्रंथों का अवलोकन करें, अहिंसा की साधना के लिए ईर्या समिति का पालन करे तो इन्द्रियों से कितना कुछ प्राप्त हो सकता है। इनमें भी आंख और कान तो मानों ज्ञान प्राप्ति के बहुत सशक्त माध्यम हैं। इन्द्रियां जहां ज्ञान का साधन हैं तो वहीं भोग का भी साधन बन सकती हैं। इसलिए आदमी को अपनी इन्द्रियों का संयम करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आदमी की इन्द्रियां ज्ञानेन्द्रियां ही रहें, उन्हें भोगेन्द्रिय बनने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। पर्युषण महापर्व निकट आ रहा है। इसमें धर्म-अध्यात्म की जितनी साधना हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए।

आज के कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व जनता को साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी और साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उद्बोधित किया। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विजय सांपला ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मेरा बहुत सौभाग्य है कि मुझे गुरुदेवजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। गुरुवर आप जहां भी जाते हैं, वहां की आबोहवा बदल जाती है। अहिंसा की स्थापना के लिए आदमी वाणी कल्याणी है। हम सभी पर आपका आशीर्वाद हमेशा बना रहे। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीष प्रदान किया।

साध्वी सुषमाकुमारीजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी दी। वही भिवानी से गुरु सन्निधि में पहुंची ऊषा बहन ने आचार्यश्री से 60 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में दिल्ली से सैंकड़ों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। दिल्ली तेरापंथ समाज द्वारा गीत का संगान हुआ। दिल्ली सभा के अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया, श्री कन्हैयालाल जैन पटावरी, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के श्री केसी जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त दिल्ली समाज के द्वारा अलग-अलग ढंग से अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देते हुए आचार्यश्री से चतुर्मास की अर्ज की। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

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