Updated on 13.05.2024 15:30
तप कर्म निर्जरा का सर्वोत्तम साधन है - आचार्य शिवमुनिलाभार्थी नितिनकुमार जैन ने श्रेयांस कुमार बनकर करवाया 116 तपस्वियों का पारणा
लब्धि धाम में भव्य पारणा महोत्सव संपन्न
आदी पुरूष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार।
धरम धुरंधर परम गुरू, नमो आदि अवतार।।
भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए आचार्य देव श्री मानतुंग स्वामी जी कहते है -
तीन लोक के दुःख हरणे वाले हे प्रभु तुम्हें नमन्।
भूमण्डल के निर्मल-भूषण आदि जिनेश्वर तुम्हें नमन्।
हे त्रिभूवन के अखिलेश तुम्हें बारम्बार नमन्।
भवसागर के शोषक पोषक भव्यजनों के तुम्हें नमन्।
शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित अक्षय तृतीया वर्षीतप पारणा महोत्सव, श्रमण संघ स्थापना दिवस व गुरु ज्ञान जन्म जयंती के पावन अवसर पर श्री लब्धि विक्रम राजयश सूरिश्वर जैन तीर्थ धाम, बलेश्वर, सूरत के प्रांगण में वर्षीतप के तपस्वी और आए हुए हजारों श्रद्धालु, श्रावक-श्राविकाओं को प्रेरक उद्बोधन संदेश प्रदान करते हुए श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य डॉ श्री शिवमुनि जी ने फरमाया कि - आज की तिथि अक्षय तृतीया इसका महत्व प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान की निरन्तर निर्जल 13 महिने की कठिन तपस्या के बाद पारणे के महत्व को लेकर आती है। करोड़ो वर्ष बीत जाने के बाद भी यह तिथि अक्षय है, शाश्वत है, कभी न मिटने वाली है। भगवान् ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर है। धर्म तीर्थ की स्थापना तीर्थंकर करते है। युवराज अवस्था में कुमार ऋषभ ने आर्य सभ्यता की नींव डाली थी। कल्पवृक्ष जब समाप्त हुए तो भगवान ने असि मसि कृषि का ज्ञान सामान्य जनता को दिया था। पुरूषों को 72 तो महिलाओं को 64 कलाएं सिखाई थी। तीर्थंकर सूर्य के समान होते है। सूर्य जैसे दूर रहकर भी अपनी किरणों से कमलों को खिला देता है वैसे ही तीर्थंकर अपने ज्ञान के प्रकाश से मानव मात्र को प्रकाशित करते है।
अक्षय तृतीया का पर्व आध्यात्मिक पर्व है। आज के दिन का महत्व दान और तप से है, आज के दिन भगवान ऋषभदेव ने 13 महिने की कठिन तपस्या के बाद राजा श्रेयांस कुमार से ईक्षुरस ग्रहण कर पारणा किया था उसी परम्परा को अक्षुण्ण रखते हुए आज भी साधु-साध्वीवृंद एवं श्रावक-श्राविका वर्षीतप की आराधना करते है। तप आत्मा का श्रृंगार है, तप करना कोई साधारण काम नहीं है, तप वही कर सकता है जिसका मनोबल मजबुत होता है, तप से तपकर ही जीवन कुंदन बनता है जो तपस्या नहीं कर सकते वह अनुमोदना जरूर करें। तप का मुख्य लक्ष्य कषाय और इन्द्रियों को वश करना है। तप कर्म निर्जरा का सर्वोत्तम साधन है।
मुझे आज स्मरण हो रहा है मेरी वर्षीतप की तपस्या कैसे प्रारम्भ हुई? उन दिनों मेरा प्रवास ब्यावर में था। वही के सुश्रावक श्री चांदमल जी विनायक्या दर्शन हेतु उपस्थित हुए और उन्होंने प्रेरणा दी कि मुनि जी वर्षीतप करना प्रारम्भ करो और लोगस्स का पाठ भी करो। एक श्रावक एक मुनि को प्रेरित करें यह सोचकर मैंने तपस्या प्रारम्भ कर दी परन्तु राजस्थान में गर्मी भीषण होती है ब्यावर प्रवास के बाद मेरा चातुर्मास जोधपुर में था। वातावरण की प्रतिकूलता से मैंने वर्षीतप करना छोड़ दिया। श्रावक श्री चांदमल जी पुनः जोधपुर चातुर्मास में दर्शनार्थ उपस्थित हुए और उन्होंने वर्षीतप की साता पृच्छा की तो मैंने सहज भाव से कह दिया कि वातावरण की प्रतिकूलता से मैंने तपस्या छोड़ दी है। श्रावक जी ने पुनः प्रेरणा दी कि आपको वर्षीतप करना चाहिए। तब मैंने पुनः तपस्या प्रारम्भ कर दी। तब से अब तक यह तपस्या निर्विघ्न रूप से गतिमान है। ऐसा नहीं है कि तप करते हुए परीषह नहीं आयेंगे। बीते दिनों में मेरे भी कई निकाचित कर्म उदय में आए। ऑपरेशन जैसे स्थितियां भी उत्पन्न हुई, पर मैंने तपस्या नहीं छोड़ी। आज कल कुछ तपस्वी जरा सी प्रतिकूलता आने पर घबरा जाते हैं। तपस्या की है तो निश्चित है कर्म उदय में आयेंगे, आए हुए कर्मों को क्षय करना यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन ही श्रमणसंघ की स्थापना हुई थी। 22 आचार्यों ने अपने आचार्य पद का त्यागकर श्रमण संघ की स्थापना की एवं एक आचार्य, एक समाचारी की व्यवस्था प्रदान की। मैं अपने समस्त पूर्वोचार्यो को नमन् करता हूँ। यह श्रमण संघ सदैव जयवंत था, श्रमणसंघ अनेक पुष्पों का गुलदस्ता है। यह संघ निदंनीय नहीं वंदनीय है। पूर्वाचार्यों ने इस संघ को अपनी त्याग और तपस्या से सींचा है। वर्तमान में सभी पदाधिकारी अपने-अपने कार्य के द्वारा संघ को नई ऊँचाइयां प्रदान कर रहे है।
आज पुज्य गुरूदेव श्री ज्ञानमुनि जी का जन्म शताब्दी वर्ष समाप्त हो रहा है। गुरूदेव की अनन्त कृपा रही जिन्होंने मुझे संयम प्रदान किया है उनके उपकार मैं जीवन पर्यंत भूल नहीं सकता हूँ। मैंने उनसे साधना सीखने की प्रार्थना की और उन्हाेंने मुझे उस साधना को प्राप्त करने के लिए अनेक आशीर्वाद प्रदान किए। वे एक सरलात्मा संत थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी एवं श्रमणसंघ की सम्पूर्ण मनोयोग से सेवा की। आज वे जहां पर भी विराजमान है उनका मुक्ति मार्ग प्रशस्त हो, यही मंगल भावना।
आज वर्षीतप पारणे के लाभार्थी एन- एन- जैन परिवार के श्री नितिन जैन श्रेयांसकुमार बने है और सबको ईक्षुरस प्रदान करके पारणा कराने वाले है। ऐसा सरल मृदु स्वभावी और धर्म समर्पित परिवार को बहुत-बहुत साधुवाद है।
श्रमण संघ निष्ठा पत्र पर विशेष उद्बोधन
अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी महाराज ने श्रमण संघ स्थापना दिवस विजन 2052 को जनमानस के समक्ष रखते हुए बतलाया कि - आज समग्र विश्व में श्रमण संघ का 73वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। आने वाले 2026 में हम श्रमण संघ स्थापना हीरक महोत्सव मनाएंगे। श्रमण संघ अनेक प्रमुख आचार्यों के समर्पण की कहानी है। श्रमण संघ जयवंत था, है और रहेगा। श्रमण संघ में अनेक प्रकार के मोती है। वर्तमान में श्रमण संघ की अनेक साधु साध्वी अपने प्रकार से प्रभावना कर रहे हैं। साधु तो एकत्रित हो गए परंतु श्रावक बिखर गए हैं। उन श्रावकों को एकत्रित करने हेतु युवाचार्य प्रवर श्री महेंद्र ऋषि जी महाराज की संकल्पना एवं आचार्य श्री जी के मार्गदर्शन से यह श्रमण संघ निष्ठा पत्र तैयार किया गया है, जिसे श्रमण संघ के सभी पदाधिकारी साधु साध्वियों ने स्वीकृति प्रदान की है। जो साधु श्रमण संघ बनने के बाद श्रमण संघ को छोड़ गए, उन्होंने अपने स्थानक और श्रावक दोनों को अलग कर लिया है। अब आवश्यकता है श्रमण संघ अपने श्रावकों में सुदृढ़ता लाए और श्रमण संघीय स्थानक तैयार हो। मैं प्रत्येक श्रमण संघीय श्रद्धावान श्रावकों से यही कहना चाहूंगा कि कोई भी श्रमण संघ की निंदा ना करते हुए उसके गुण को देखें और गुणानुवाद में अपना समय लगाए।
इससे पूर्व 8 बजकर 30 मिनट पर श्रमण संघीय प्रमुखमंत्री श्री शिरीषमुनि जी ने मंगलाचरण से कार्यक्रम की शुरूआत की। उसके पश्चात् प्रवचन प्रभाकर श्री शमितमुनि जी , महासाध्वी श्री पूर्वा जी, महासाध्वी श्री विश्वास जी, महासाध्वी श्री संयमप्रभा जी, महासाध्वी श्री चारित्रशिला जी ने आज के इस पावन अवसर पर अपने उद्गार भजन एवं प्रवचन के माध्यम से रखे। सहमंत्री श्री शुभम्मुनि जी ने मधुर भजन गाकर सबको मंत्रमुग्ध किया।
आज के इस शुभ अवसर पर आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा टीकाकृत श्री स्थानांग सूत्र के प्रथम और द्वितीय भाग का विमोचन श्रावक समिति एवं शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउंडेशन के पदाधिकारी गणों ने किया।
इस अवसर पर श्रीमती मनीषा सुरेश जी संचेती द्वारा स्वरचित भजन की पुस्तक स्वरागिनी का विमोचन संचेती परिवार ने किया।
अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर कुछ श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं ने अपने विचार सभा के मध्य में रखें, जिसमें कोणिक जैन ने वर्तमान में भटकते युवाओं को पुनः कैसे धर्म में जोडे़, देव, गुरु धर्म में उनके आस्था कैसे दृढ़ हो इस विषय पर प्रभावी वक्तव्य प्रदान किया। जैन कॉन्फ्रेंस की राष्ट्रीय महिला अध्यक्षा श्रीमति पुष्पा जी गोखरू, श्रावक समिति के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमान मुन्नालाल जी जैन, श्रावक समिति के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री रमेश जी भंडारी आदि ने अपनी भावनाएं आचार्य श्री जी के समक्ष प्रस्तुत की।
इस अवसर पर जय सामोता ने स्वलिखित परमवीर चक्र शैतान सिंह किताब आचार्य श्री जी को भेंट की।
आचार्य श्री जी के सानिध्य में पिछले सव्वा तीन वर्षों से अध्ययनरत वैरागी शिवांश जैन के सांसारिक परिवार द्वारा दीक्षा आज्ञा पत्र बड़े ही हर्षाेल्लास के साथ आचार्य भगवन को प्रदान किया।
इस अवसर पर जयंती कुकड़ा, विकास सिंघवी, आकाश मादरेचा, सुनील विसलोत, अमित मेहता, हितेश मोंटू चपलोत, गौतम मेहता, सुरेश संचेती आदि सेवाभावी कार्यकर्ताओं का सेवा सम्मान किया गया।
आज के इस पावन अवसर पर आचार्य भगवन ने अनेक तपस्वियों को आगामी वर्षीतप की तपस्या का संकल्प प्रदान किया। आचार्य श्री जी के प्रवचन के पश्चात् वीतराग साधिका निशा जी द्वारा सभी तपस्वियों को वर्षीतप में वर्ष भर में लगे दोषों की आलोचना करवाई गई। तत्पश्चात आचार्य श्री जी ने मंगल मैत्री और मंगल पाठ प्रदान किया।
महासाध्वी श्री चारित्रशिला जी महाराज आदि ठाणा तीन महासाध्वी श्री संयम प्रभा जी महाराज आदि ठाणा तीन महासाध्वी श्री विश्वास जी महाराज आदि ठाणा दो महासाध्वी श्री मनीषा जी महाराज आदि ठाणा दो की ओर से आचार्य श्री जी के दीर्घ वर्षीतप के उपलक्ष में चादर समर्पित की गई।
मंगल पाठ के पश्चात श्रेयांस कुमार लाभार्थी एन- एन- जैन परिवार के श्री नितिन जैन परिवार द्वारा सर्वप्रथम आचार्य श्री जी को ईक्षुरस बहराया गया। तदनंतर सभी तपस्वियों को ईक्षुरस प्रदान करने की विनंती की।
शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं द्वारा समस्त तपस्वियों का अभिनंदन पत्र प्रदान कर स्वागत किया गया।
सभा का मंच संचालन बहुत ही सुंदर तरीके से उपाध्यक्ष श्री अशोक जी मेहता ने किया। हजारों की संख्या में उपस्थित जनमेदनी बार-बार शिवाचार्य भगवन के तप एवं उपस्थित तपस्वियों का अनुमोदन कर अपने आप को धन्य महसूस कर रही थी। प्रत्येक तपस्वी एवं आगंतुक यही कह रहा था कि प्रतिवर्ष पारणे करने हो तो आचार्य श्री जी के श्री चरणों में ही करने चाहिए, बहुत ही सुंदर कार्यक्रम आचार्य श्री जी के सानिध्य में संपन्न हुआ।
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Posted on 13.05.2024 11:14
शिवाचार्य भगवन को युवाचार्य पदग्रहण दिवस की हार्दिक बधाइयांअविस्मरणीय पल राष्ट्रसंत आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनंद ऋषि जी महाराज द्वारा साधुरत्न पूज्य डॉ. श्री शिवमुनि जी म. सा. को युवाचार्य पद की चादर दिनांक 13 मई 1987 को समर्पित की गई।

पुणे साधु सम्मेलन 13 मई 1987 चादर समर्पण दृश्य