Posted on 06.05.2025 13:21
आत्मार्थी साधक ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है: आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.6 मई 2025, भटार, सूरत
आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. आदि, युवाचार्य प्रवर श्री महेन्द्रऋषि जी म.सा., प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनि जी म.सा., प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा आदि ठाणा-17 आज प्रातः वेसू से विहार कर महावीर भवन भटार पधारे जहां 2 दिवसीय प्रवास होगा।
महावीर भवन के गुरु पुष्कर प्रवचन हॉल में उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने फरमाया कि आज हम यहां महावीर भवन में आए हैं। यहां ध्यान शिविर भी हुआ है, यहां प्रातः 6.15 से 7.15 बजे तक प्रतिदिन 1 घंटे के ध्यान का क्रम निरंतर चलता रहे, इस ओर यहां के प्रमुख व्यक्तियों को ध्यान देने की आवश्यकता है। मैं मात्र जीवात्मा हूं यह तीर्थंकरों की साधना है जो भगवान ऋषभ से लेकर भगवान महावीर तक की साधना है। दीक्षा लेते ही भगवान महावीर स्वामी ने साढ़े बारह वर्ष एकान्त मौन ध्यान साधना करके केवल ज्ञान को प्राप्त किया। एक लक्ष्य रहे कि हमें आत्मार्थी बनना है, आत्मा को केन्द्र में रखे बिना मोक्ष संभव नहीं हो सकता, इसलिए आत्मार्थी साधक बनने का प्रयास करें।
उन्होंने आगे फरमाया कि जिस तरह से छोटे बालकों को पहली कक्षा में वर्णमाला को याद करने के लिए धारणा पक्की करने के लिए बार-बार दोहराया जाता है, इसी तरह आप लोग आत्म ध्यान साधना का बार-बार प्रयास करेंगे तो आत्म साधना परिपक्व होगी।
इससे पूर्व युवाचार्य श्री महेन्द्रऋषि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि व्यक्ति का ध्यान व पुरुषार्थ बाहर की बातों में ज्यादा रहता हैं, जिस तरह से दूसरे की थाली में घी ज्यादा नजर आता है जो मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृृत्ति है। जितनी बाहर की रूचि है उतनी रूचि भीतर की तरफ नहीं है, इसलिए बाहर की उलझी हुई चेतना को अंतरमुखी बनाने की आवश्यकता है। ध्यान का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ही आचार्य भगवन् यहां पधारे हैं।
प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि मनुष्य जीवन की सार्थकता के लिए यह आवश्यक है कि वह मन का मालिक बने न कि मन का गुलाम। जो मन का मालिक होता है वह हमेशा खुश रहता है, और जो मन का गुलाम है वह हमेशा दुःखी रहता है। मन एक ऐसा द्रव्य पर्याय है जो सब जीवों में उपलब्ध नहीं है, जिसे मन पर्याय मिला है वह सबसे ज्यादा पुण्यवान है, इसलिए मनुष्य यह विचारे कि मन को एकाग्र कर वह अपना मन ध्यान आराधना मंें लगाये।
महासाध्वी चंदनबाला जी म.सा. ने संतों को की वाणी को अमृत के समान बताते हुए फरमाया कि यदि जिनवाणी को आत्मसात कर लिया जाए तो सद्गुण मनुष्य के भीतर आ जाते हैं और सद्गुणों से मनुष्य का कल्याण अतिशीघ्र हो जाता है। जिनवाणी श्रवण करके जिनवाणी का असंख्य जीवों ने मोक्ष प्राप्त किया है।
आज महासाध्वी चंदन बालाजी म.सा. के 54वें दीक्षा दिवस पर आचार्य भगवन् ने आदर की चादर भेंट की।
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