Posted on 26.04.2025 05:09
निस्वार्थ सेवा भाव से होती है कर्मों की निर्जरा: आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.25 अप्रैल 2025, उधना, सूरत
आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने भवभ्रमण का विश्लेषण करते हुए फरमाया कि प्राणी जगत के जीव चार गति चौरासी लाख जीवायोनि में भ्रमण कर रहे हैं। कभी पुण्य किया तो देवगति में चले गये। माया की तो पशु बन गए, पाप किया तो नर्क में चले गए, क्योंकि यह कार्मण शरीर मिथ्यात्व और मोह के कारण अनादिकाल से कर्मों का बंधन कर रहा है जिसके कारण जीवा योनि में भ्रमण कर रहा है।
उन्होंने आगे फरमाया कि मनुष्य को मन कहां-कहां लेकर चला जाता है? वाणी का मौन कर लेते हैं किंतु भीतर मन का मौन नहीं करते यदि मन का मौन हो जाए जो कल्याण हो सकता है, जैसे भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक मौन कर लिया। उन्होंने परिचय नहीं दिया कि मैं राजकुमार हूं ऐसी साधना भगवान महावीर की थी।
उन्होंने यह भी फरमाया कि जो व्यक्ति निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं वह अनंत कर्मों की निर्जरा करते हैं और जहां क्रिया-प्रतिक्रिया होती है वहां कर्मों का बंधन होता है। इसलिए व्यक्ति को निःस्वार्थ भाव से सेवा परोपकार के कार्यों में सहभागी बनना चाहिए।
युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. ने फरमाया कि जैन दर्शन में जितना महत्त्व व्रतों का है उतना ही महत्त्व प्रतिक्रमण का होता है। कर्म निर्जरा तभी होगी जब हमारे भाव शुद्ध होंगे।
प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि संत दर्शन आत्म उन्नति की ओर ले जाता है। जो व्यक्ति संत को वेशभूषा में, व्यक्तित्व में देखता है तो उसमें राग-द्वेष उत्पन्न होगा यदि संत को संतत्व की दृष्टि से देखता है तो उसकी भावना शुद्ध होगी।
महासाध्वी श्री अर्चना जी म.सा. ने धर्म श्रद्धा से, विज्ञान तर्क से और संसार विश्वास से चलने की चर्चा करते हुए अपना उद्बोधन दिया।
महिला मण्डल द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई।
आज दोपहर में अरिहंत पार्क- त्रिकम नगर, अक्षर टाऊन महिला मण्डल द्वारा चौबीसी का आयोजन हुआ।
इस अवसर पर ऋषभ विहार दिल्ली से श्रीसंघ उपस्थित होकर युवाचार्य श्री महेन्द्रऋषि जी म.सा. के उत्तर भारत में चातुर्मास करने की विनंति की। कार्यक्रम का संचालन श्री अशोक मेहता ने किया।
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