Delhi
08.09.2014
Pravachan of Acharya Mahashraman
आज की प्रेरणा........
धार्मिक जगत में दो साधना पद्धतियाँ रही है - एकाकी और संघबद्ध| दोनों की
अपनी अपनी कठिनाइयाँ भी रही है | हम भारत में ही देखें - कितने कितने
सम्प्रदाय है और सब अपने अपने ढंग से कार्यरत्त हैं | सांप्रदायिक सौहार्द के
पुरौधा आचार्य तुलसी ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया| सम्प्रदाय एक
लिफाफा और धर्म उसके अंदर का पत्र, सम्प्रदाय छिलका और धर्म उसके अं-
दर का रस, सम्प्रदाय शरीर व धर्म उसकी आत्मा | पत्र मूल, लिफाफा गौण -
रस मूल, छिलका गौण - आत्मा मूल, शरीर गौण | विभिन्न सम्प्रदायों में
भिन्नता होते हुए भी एकता भी होती है | गायों के रंग भिन्न होने पर भी सब
के दूध का रंग सफ़ेद ही होता है|आदमियों के शरीर का रंग अलग अलग होने
पर भी सबके खून का रंग लाल ही होता है | उसी प्रकार सम्प्रदाय भिन्न होते
हुए भी अहिंसा और सत्य सबके लिए मान्य होता है| आचार्य तुलसी के अणु-
व्रत में धार्मिक सद्भाव और सौहार्द की बात को मुख्य रूप से कहा गया है |
आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी सांप्रदायिक वैमस्य को अच्छा नहीं माना है| पूर्व
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से जब एक भेंट वार्ता में उन्होंने यह कहा कि राष्ट्र
का स्थान पहला और पार्टी का स्थान दूसरा क्योंकि पार्टी राष्ट्र हित के लिए
होती है, तो यह सुनकर कलाम साहब झूम उठे | नाक सदा भाल के नीचे ही
शोभित होता है | वैसे ही सम्प्रदाय भी सत्य के साथ ही शोभित होता है |
दिनांक - ८ सितम्बर, २०१४
ASHOK PARAKH
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