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भोपाल (म. प्र.) में छोटे-बड़ें मूक पशुओं को काटने हेतु नया कत्लखाना क्यों?... -विश्व जैन संगठन:((share this maximum taaki sabko pata chale
भोपाल नगर निगम द्वारा 20 करोड़ की लागत से भोपाल में छोटे-बड़े मूक पशुओं को काटने हेतु दिनांक 25 मई 2016 तक टेंडर आमंत्रित किये गए है! क्या म. प्र. सरकार मूक पशुओं के खून की कमाई से खर्च चलाना चाहती है?
बंधुओं....इसे रोकना होगा! अपनी आवाज मूक पशुओं की रक्षा हेतु बुलंद करों, क्युकी वें तो बेजुबान है, अपना दर्द कैसे व्यान करेंगे! हमारी लड़ाई देश में पुराने कत्लखानों को भी बंद कराना है और ये नया स्थापित करने की योजना बना रहे है.....बस और नहीं......खून मत बहाओं निर्दोष पशुओं का.....अहिंसा परमो धर्मं...
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Meditation: Hear You Inner Voice
|| ध्यान, स्वंय से बात करने की विधि है ||
हर मनुष्य के अन्दर एक शांत मनुष्य रहता है जिसे हम अंतरात्मा कहते है| हमारी अंतरात्मा हमेशा सही होती है और इसीलिए शायद यह कहा जाता है कि हम ईश्वर का अंश है| सभी महान लोगों ने यह स्वीकार किया है कि अंतरात्मा की आवाज ईश्वर की आवाज है और यह बात किसी धर्म विशेष से सम्बंधित नहीं है|
खुश रहने का सीधा सा तरीका यह होता है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें क्योंकि हमारी अंतरात्मा हमेशा हर परिस्थिति में सही होती है
हम जब कभी भी कुछ बुरा कर रहे होते है तो हमें कुछ अजीब सा लगता है मानो कोई हमें यह कह रहा हो कि वह बुरा काम मत करो| यह हमारी अंतरात्मा होती है जो हमें कुछ बुरा करने या किसी को दुःख पहुँचाने से रोकती है| और जब हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते है तो हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो जाता है|
जब हम दूसरी बार कुछ बुरा करने जा रहे होते है तो हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज फिर महसूस होती है लेकिन इस बार वह आवाज इतनी मजबूत नहीं होती क्योंकि हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो चुका होता है|
जैसे जैसे हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते जाते है वैसे वैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि हमें वो आवाज बिल्कुल नहीं सुनाई देती|
जैसे जैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है वैसे वैसे हम उदास रहने लगते है और खुशियाँ भौतिक वस्तुओं में ढूंढने लगते है| हम समस्याओं को हल करने में असक्षम हो जाते है जिससे “तनाव” हमारा हमसफ़र बन जाता है|
और ऐसी परिस्थिति में हमें स्वंय को वापस अपनी अंतरात्मा के साथ जोड़ना होता है और इसका सबसे अच्छा तरीका ध्यान या मैडिटेशन है|
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:)) chaalo re chaalo sab kundalpur chaalo:))
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रविवारीय प्रवचन - पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के मंगल प्रवचन
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कुण्डलपुर । उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो रास्ता बनाते जाते हैं महापुरूष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। यह विचार आचार्य श्रीविद्यासागर महाराज ने विद्याभवन में अपने साप्ताहिक मंगल प्रवचनों में व्यक्त किए। इसके पूर्व मंगलाचरण के बाद बड़े बाबा के चित्र का अनावरण किया गया।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लेकिन सम्यग्दर्शन मिले जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। चक्रवर्ती भरत के 923 बालक जिन्होंने कभी नहीं बोला वे दादा तीर्थंकर से 8 वर्ष पूर्ण होने के बाद कहते हैं कि हमें भगवन हमें दीक्षा प्रदान करें। साक्षात तीर्थंकर भगवान का निमित्त पाकर बिना उपदेश सुने ही स्वयं दीक्षित हो जाते हैं। यह समवशरण का अतिशय है। वे दीक्षा धारण कर सीधे जंगल चले जाते हैं। उपदेश के बिना समग्यदर्शन भी संभव है। जानकर भी शास्त्र का श्रद्धान नहीं करना शास्त्र का अवर्णवाद है। मोक्ष मार्ग का निरूपरण करते समय स्वयं को संयत कर लेना चाहिए, वरना स्वयं के साथ-साथ मोक्ष मार्ग का भी बिगाड़ हो जाता है। कषाय के रूप अनेक प्रकार के होते हैं। जिस तरह सूर्य चंद्रमा और दीपक से अलग अलग रोशनी मिलती है। मुझे मोक्ष मार्ग मिला है तो दूसरों को भी प्राप्त हो जाए, ऐसा बात्सल्य भाव ज्ञानी को होता है। जिस तरह गाय अपने बछड़े के प्रति वात्सल्य भाव रखती है। जो केवल ज्ञान का विषय होता है वह उसे मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान का विषय नहीं बना सकते
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aap log kundalpur bade baba and chote baba ke darshan karne jaaye to waha ki pics hame jarur mail kare taaki hum yaha share kar sake or aapka naam bhi add karenge:)) mail id: [email protected]
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Kids learning @ Jainism -the Philosophy:)
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save cow save non-violence/Ahinsa:))
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अरिहंत सिद्ध आचार्य नमन्,हे उपाधयाय हे साधु नमन्!
जय पञ्च परम परमेष्ठी जय,भव सागर तारण हार नमन!!
मन-वच-काया पूर्वक करता हूँ,शुद्ध हृदय से आह्वानन!
मम हृदय विराजो तिष्ठ तिष्ठ,सन्निकट होहु मेरे भगवन!!
निज आत्मतत्व की प्राप्ति हेतु,ले अष्ट द्रव्य करता पूजन!
तव चरणों की पूजन से प्रभु,निज सिद्ध रूप का हो दर्शन!!
ॐ ह्रीं अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु पंच परमेष्ठिन:!
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पुरुषार्थ से भावों में परिवर्तन संभव @ kundalpur
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने अपने प्रात:कालीन प्रवचन में कहा कि एक किसान ने बादाम का पेड़ लगाया, खूब मेहनत कर बड़ा किया, उसमें फल आए और बादाम को तोड़कर उसकी बीजी निकाली,फि र उस बादाम को अपने मित्रो को खाने दिया। सभी ने उसे खाया, लेकिन स्वाद अच्छा नहीं था, संकोचवश और किसान की मेहनत व अपने प्रति स्नेह देख कर किसी ने कुछ नहीं कहा। उन्हें लगा कि खराब लगेगा सत्य कहने में। उन्होंने कहा कि संत कहते हैं कि यदि कर्म के उदय से झूठ बोला जाए तो सत्य का संभाषण नहीं होगा, असत्य बोलना कर्म पर आधारित नहीं है। हां, असत्य बोलने से कर्म बंधन जरूर बंध जाते हैं। आत्मा में इतनी शक्ति होती है कि पुरुषार्थ के द्वारा कर्म को भी परिवर्तित किया जा सकता है। हम पुरुषार्थ करें तभी भावों में परिवर्तन संभव है। सदैव सत्य बोलने का भाव रखें, जीभ को असत्य-सत्य बोलने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। वक्ता के अनुसार जीभ बोलती है।
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आज बैशाख कृष्णा नवमी को धर्म शिरोमणि आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज का 27वां समाधी दिवस वर्तमान पट्टाचार्य आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में मनाया जा रहा है।
भोले बाबा के नाम से विख्यात धर्म सागर जी महाराज ने लाखों जीवों को संसार सागर से पार उतारने के लिए धर्म की गंगा बहाई।
समाधी दिवस पर आचार्य भगवन के चरणों में शत शत नमन।
आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज की जय
आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज की जय
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जय जय ज्ञानमती माँ, जो प्रवरण है इस निर्माण की!
प्रतिमा में हो गई प्रतिष्ठा, आदिनाथ भगवान् की!
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#रविवारीय प्रवचन @ कुण्डलपुर -विद्यासागर महाराज के मंगल प्रवचन:) exclusive picture
उपदेश के बिना भी विद्या प्राप्त हो सकती है। जिस राह नहीं चलते वहां रास्ता नहीं यह धारणा नहीं बनाना चाहिए। कुछ लोग होते हैं जो रास्ता बनाते जाते हैं महापुरूष आगे चलते जाते हैं और रास्ता बनता जाता है। यह विचार आचार्य श्रीविद्यासागर महाराज ने विद्याभवन में अपने साप्ताहिक मंगल प्रवचनों में व्यक्त किए। इसके पूर्व मंगलाचरण के बाद बड़े बाबा के चित्र का अनावरण किया गया।
आचार्यश्री ने अपने मंगल प्रवचनों में आगे कहा कि समवशरण में सब कुछ प्राप्त हो जाता है। लेकिन सम्यग्दर्शन मिले जरूरी नहीं। बाहरी कारण मिलने के साथ भीतरी कारण मिले यह नियम नहीं होता। अंतरंग निमित्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। चक्रवर्ती भरत के 923 बालक जिन्होंने कभी नहीं बोला वे दादा तीर्थंकर से 8 वर्ष पूर्ण होने के बाद कहते हैं कि हमें भगवन हमें दीक्षा प्रदान करें। साक्षात तीर्थंकर भगवान का निमित्त पाकर बिना उपदेश सुने ही स्वयं दीक्षित हो जाते हैं। यह समवशरण का अतिशय है। वे दीक्षा धारण कर सीधे जंगल चले जाते हैं। उपदेश के बिना समग्यदर्शन भी संभव है। जानकर भी शास्त्र का श्रद्धान नहीं करना शास्त्र का अवर्णवाद है। मोक्ष मार्ग का निरूपरण करते समय स्वयं को संयत कर लेना चाहिए, वरना स्वयं के साथ-साथ मोक्ष मार्ग का भी बिगाड़ हो जाता है। कषाय के रूप अनेक प्रकार के होते हैं। जिस तरह सूर्य चंद्रमा और दीपक से अलग अलग रोशनी मिलती है। मुझे मोक्ष मार्ग मिला है तो दूसरों को भी प्राप्त हो जाए, ऐसा बात्सल्य भाव ज्ञानी को होता है। जिस तरह गाय अपने बछड़े के प्रति वात्सल्य भाव रखती है। जो केवल ज्ञान का विषय होता है वह उसे मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान का विषय नहीं बना सकते
-अभिषेक जैन लुहाडिया
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jay jay