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दिनांक - 07/02/2017
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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻
Source: © Facebook
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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'
📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 210📝
*तेरापंथ*
लय... देव! तुम्हारे...
*62.*
आर्य भिक्षु की शाश्वत वाणी,
लिखत हाजरी वरदायी।
श्रावक-निष्ठा-पत्र सुघड़,
है शासन-मर्यादा स्थायी।।
*अर्थ--* आचार्य भिक्षु की वाणी शाश्वत सत्य के रूप में हमारे सामने है। उसके आधार पर ही लिखत, हाजरी आदि संघ के लिए वरदान बन रहे हैं। श्रावक निष्ठापत्र भी अपने आप में सुघड़ है। धर्मशासन की मौलिक मर्यादाएं स्थायी--अपरिवर्तनीय हैं।
*भाष्य--* आचार्य भिक्षु सत्य के सन्धित्सु थे। सत्य की खोज करने के लिए उन्होंने साधना का पथ स्वीकार किया। सत्य की खोज के बाद उसका अनुशीलन और प्रतिपादन भी उनका लक्ष्य था। लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते समय उपस्थित अवरोध ने उनको नया पथ खोजने के लिए विवश कर दिया। उसी विवशता की निष्पत्ति है तेरापंथ। नए पथ के लिए अभिनिष्क्रमण करते समय नया संघ बनाना उनका उद्देश्य नहीं था। किन्तु जब संघ बन गया और उसका नामकरण भी स्वतः हो गया तो उन्होंने संगठन को सुदृढ़ बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। विक्रम संवत 1832 में उन्होंने एक *'लिखत'* लिखा। उसके बाद समय-समय पर कुछ *'लिखत'* फिर लिखे गए। विक्रम संवत 1859 माघ शुक्ला सप्तमी, शनिवार को उनके द्वारा अंतिम *'लिखत'* लिखा गया। उसमें प्रथम लिखत की कुछ धाराओं का भी समावेश था। *वही 'लिखत' तेरापंथ धर्मसंघ का संविधान या मर्यादापत्र है।*
आचार्य भिक्षु के समय में धर्मसंघ का स्वरूप स्थिर हो गया। उसे व्यावहारिक रूप देने अथवा उसके अनुरूप संस्कार-निर्माण करने का काम किया चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्य ने। उन्होंने अनेक *'हाजरियों'* की रचना की और प्रतिदिन एक-एक हाजरी के वाचन का क्रम चालू किया। अंतिम लिखत के आधार पर उन्होंने *'मर्यादा-महोत्सव'* की स्थापना की। महोत्सव के अवसर पर चतुर्विध धर्मसंघ की उपस्थिति में मर्यादापत्र का वाचन होने लगा। प्रतिदिन पढ़ी जाने वाली हाजरी के क्रम में आगे चलकर कुछ परिवर्तन होता रहा। आचार्य श्री तुलसी ने उन सबके आधार पर एक नई हाजरी, एक नई मर्यादावलि और नए लेखपत्र का निर्माण कर दिया। पक्ष में एक बार हाजरी का वाचन परिषद में, प्रत्येक चौमासी पाक्षिक दिन से पहले मर्यादावलि का वाचन और प्रतिदिन प्रातःकाल प्रतिक्रमण से पहले लेखपत्र बोलने की व्यवस्था की गई है। यह संस्कार-निर्माण की सुंदर प्रक्रिया है। एक बात को बार-बार दोहराने से संस्कार पुष्ट होते हैं।
*आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं बनाईं, उनमें कुछ मर्यादाएं मौलिक हैं। उत्तरवर्ती आचार्य उन्हीं के आधार पर शासन का संचालन कर रहे हैं। उन मर्यादाओं का स्वरूप आज की भाषा में कैसा है...?* जानेंगे-समझेंगे… हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः कल।
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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दिनांक - 07/02/2017
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