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#जिज्ञासा_समाधान - #muniSudhasagar / #acharyaVidyasagar
रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना ही वास्तविक रात्रि भोजन त्याग है, इसमें पानी की भी छूट नहीं है।* परंतु फिर भी यदि कोई इतना नहीं कर पाता, तो उसे कम से कम उसे रात्रि में अन्न की बनी वस्तुओं का त्याग तो करना ही चाहिए, क्योंकि अन्न की वस्तुओं में जीव जल्दी पढ़ते हैं।
2⃣ _*खानपान की शुद्धि से ही सही आचार-विचार पलते हैं। इसके अभाव में मन की शुद्धि भी बिगड़ सकती है।* आहारचर्या पर जितना ध्यान जैन दर्शन में दिया गया है, उतना किसी अन्य दर्शन में नहीं दिया गया। परन्तु *आज जैनी का खानपान बिगड़ रहा है, जिसके कारण उसके संस्कार भी बिगड़ने लगे हैं। जो बोतलों का पानी आप पीते हैं, वह बोतलें पैरों में पड़ी रहती हैं। विचार करो शुद्धि आएगी कहां से?*_
3⃣ _होली का जैन दर्शन में कोई महत्व नहीं है। आज होली का स्वरूप बहुत निकृष्ट होता जा रहा है, कीचड़ से होली खेलना, नशा-पत्ता करना यह सब गवाँर लोगों के कार्य हैं। *अच्छे लोग इन्हें पसंद नही करते। इसलिए वह हमेशा मंदिरों और तीर्थ क्षेत्र पर जाकर धर्म ध्यान करते हैं, जैनी के घर में रंग-गुलाल का प्रवेश सर्वथा वर्जित होना चाहिए।
4⃣ _*अष्ट द्रव्य से पूजन की परंपरा अनादि निधन है। मूलाचार में भी नवधा भक्ति के अंतर्गत अष्टद्रव्य से पूजन का उल्लेख आया है। अतः पूजन तो अष्ट द्रव्य से ही करनी चाहिए।*_
_सीधे जमीन पर बैठकर पूजा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी एनर्जी सीधे पृथ्वी में चली जाती है। फिर भी यदि चटाई आदि नहीं मिलती है, तो पूजन करने में कोई बाधा नहीं है।_
5⃣ _*पंचमकाल में मध्य क्षेत्र में वैमानिक देव तो नहीं आते, परंतु भुवनकत्रय देव आ सकते हैं आते हैं। इनके संबंध में कई उदाहरण शास्त्रों में मिलते हैं। अतः आज भी देवताओं का गमना-गमन होता रहता है, इसे मात्र चमत्कार के रुप में देखना चाहिए।*_
6⃣ _*पंचमेरु कम से कम एक हाथ के होना चाहिए, और उसमें मूर्ति स्थापित होनी चाहिये।* पीतल स्टील या अन्य कोई धातु के बिना मूर्ति वाले पंचमेरु को पंचमेरु न मानकर मात्र मेरु मानना चाहिए। यह पूज्यनीय नही हैं।_
8⃣ _*ऋषभदेव ने वैश्यों के लिए कहा था, कि दूसरों के यहां नौकरी करने की अपेक्षा ऐसे कार्य करो, जिससे दूसरे लोग तुम्हारे यहाँ नौकरी करें।* जैनियों को यह गॉड गिफ्ट है, कि बिना पढ़े लिखे के यहां सी.ए. नौकरी करते । *कृषि और व्यापार ये दो जैनियों के मुख्य कार्य कहे गए हैं।*_
9⃣ _*गृहस्थ सम्यकदृष्टि श्रावक को अपनी विशेष परिस्थितियों में अनिष्ट निवारण के लिए यदि पूजा-पाठ-विधान आदि करता है, तो इसमें कोई वाधा नहीं है।* शास्त्रों में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं, जिसमे अपना कष्ट निवारण के लिए भगवान का स्मरण किया है। जैन दर्शन की प्रत्येक क्रिया में सांसारिक और पारमार्थिक सुखों की चर्चा आई है। परन्तु अपने पाप कर्मों के लिए भगवान का नाम नहीं लेना चाहिए।_
पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। *किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं 📺पूज्य गुरुदेव का जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये -जिनवाणी चैनल पर, सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से
✍🏻 दिलीप जैन, शिवपुरी
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हे निजानुभवी...गुरुदेव! #two_vidyasagar_together:)
*_आपको क्या हो गया?_*
*_न अच्छे से आहार करते हो!_*
*_न निद्रा लेते हो!_*
*_न बोलते हो!_*
*_न देखते हो!_*
*_न जाने कहां खोये रहते हो..._*
*_क्या निजानुभूति प्रिया की यादों में रहते हो?_*
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*"निजानुभूति रमणी के संग,शुद्धात्म में रमते हैं।*
*जाग को लगता हमें देखते,पर वह निज को लखते हैं।।*
*देखो कहकर बात टाल कर,निज में देखा करते हैं।*
*निज आतम के परिणामों का प्रतिफल लेखा करते हैं।।"*
*🖌रचियत्री-आर्यिका माँ 105 पूर्णमति जी
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News in Hindi
आचार्य गुरुवर *विद्यासागर* जी के परम प्रभावी शिष्य मुनि श्री *क्षमासागर* जी ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी मुनिचर्या का पालन किया और *चैत्र कृष्ण अष्टमी 2541 (13th March 2015)* को सल्लेखना पूर्वक समाधि धारण की।
मुनिश्री की प्राणीमात्र के प्रति आत्मीयता और सभी के कल्याण की भावना, उनके न होने पर भी उनकी वाणी के रूप में हम सभी का मार्गदर्शन करती आयी है।
मुनिश्री की दी हुई शिक्षाएँ एक प्रकाश किरण के रूप में हमारा मार्गदर्शन करती रहे इसी भावना के साथ उनके *समाधि दिवस चैत्र कृष्ण अष्टमी 2543 (20th March 2017, दिन सोमवार)* पर सागर में एकत्रित होकर उन्हें *विनयांजलि* समर्पित करेंगे ।
सुबह समाधि स्थल पर प्रार्थना, विधान पूजन, दोपहर में विनयांजलि सभा के बाद, शाम को महाराज जी द्वारा आचार्यश्री विद्यासागर जी के जीवन पर लिखी पुस्तक आत्मान्वेषी पर आधारित नाटक *आत्मान्वेषी* का मंचन देखेगे।
आपके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था मोरा जी, सागर में की गयी है. अपने आगमन की सूचना हमें अवश्य दें।
*_सकल दिगम्बर जैन समाज, सागर_* एवं
*_मैत्री समूह_*
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सहन कहाँ तक अब करूँ, मोह मारता डंक
दे दो इसको शरण ज्यों, माता सुत को अंक #ChandraPrabhBhagwan
कौन पूजता मूल्य क्या, शून्य रहा बिन अंक
आप अंक हैं शून्य मैं, प्राण फूँक दो शंख
चन्द्र कलंकित किन्तु हो, चन्द्रप्रभ अकलंक
वह तो शंकित केतु से शंकर तुम निशंक
रंक बना हूँ मम अत:, मेटो मन का पंक
जाप जपूँ जिननाम का, बैठ सदा पर्यंक ||
ओम् ह्रीं अर्हं श्री चन्द्रप्रभ जिनेंद्राय नमो नम: |
स्वयंभू स्तोत्र स्तुति आचार्य श्री विद्यासागर द्वारा रचित #AcharyaVidyasagar
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