Update
👉 विजयनगर (बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सिंधनूर - तेयुप के आगामी कार्यकाल 2017-2018 के लिए चुनाव परिसम्पन्न
👉 पाली (राजस्थान) - आध्यात्मिक मिलन
👉 कालीकट - महिला मंडल वार्षिक अधिवेशन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉तुषरा - प्रेक्षा वाहिनी" की कार्यशाला का आयोजन
👉 नाथद्वारा - आचार्य श्री महाश्रमण कन्या सुरक्षा सर्कल का लोकार्पण
👉राउरकेला - "पर्यावरण दिवस" पर कार्यक्रम आयोजित
👉 न्यूजर्सी - ज्ञानशाला के वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम आयोजित
👉 कोचिन - महासभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष संगठन यात्रा पर
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 76* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
स्थूलभद्र की आंखों के सामने अतीत का चित्र घूमने लगा। श्रीयक के विवाहोत्सव में राजा नंद के सम्मान हेतु निर्मित राजमुकुट, छत्र, चामर, विविध शस्त्र आदि की सूचना पाकर दम्भी वररुचि द्वारा रचा गया षड्यंत्र नरेश नंद के हृदय में महामंत्री शकडाल पर राज्य को छीन लेने का संदेश, राजा के भ्रूविक्षेप में झांकता समग्र मंत्री-परिवार को लील देने वाला विनाशकारी रूप, लघु भ्राता श्रीयक द्वारा नंद के सामने उनके विश्वासी मंत्री की हत्या आदि विविध प्रसंगों की स्मृति से स्थूलभद्र कांप गए। वे विरक्त हुए। संयम पथ अंगीकार करने का निर्णय लेकर लुंचित मस्तक साधुमुद्रा में स्थूलभद्र राजा नंद की सभा में पहुंचे। स्थूलभद्र के विचारों को समझकर जनता आवक् रह गई। श्रीयक ने भी निर्णय को बदलने के लिए उनसे अनुरोध किया पर स्थूलभद्र अपने संकल्प पर दृढ़ थे। वे धीर-गंभीर परिजनों के मोह से विमुख बन अज्ञात दिशा की ओर चले गए। कहीं हमें धोखा देकर गणिका कोशा के भवन में पुनः नहीं पहुंच रहा है, यह सोचकर मगध नरेश प्रासाद के गवाक्ष से आर्य स्थूलभद्र के बढ़ते चरणों पर दृष्टि टिकाए रहे। वृक्षों की पंक्ति के बीच से निर्जन वन की ओर स्थूलभद्र के गमन को देखकर उन्हें अपने चिंतन के प्रति अनुताप हुआ। नागरिकों को कई दिनों तक स्थूलभद्र की स्मृति सताती रही।
अमात्य पद का दायित्व श्रीयक के कंधों पर आया। मगध नरेश जो सम्मान अनुभवी राजनीति कुशल, विश्वासपात्र, राजभक्त, प्रजावत्सल अमात्य शकडाल को प्रदान करता था, वही सम्मान श्रीयक को देने लगा।
महामात्य पद के लिए श्रीयक जैसे समर्थ व्यक्ति की उपलब्धि से राज्य में पुनः चार चांद लग गए, पर महामात्य शकडाल के अभाव में राजा नंद के हृदय में अत्यंत दुःख था। एक दिन शोकसंतप्त मुद्रा में मगध नरेश ने श्रीयक के सामने सभा में मंत्री के गुणों का स्मरण करते हुए कहा
*भक्तिमाञ्शक्तिमान्नित्यं*
*शकटालो महामतिः।*
*अभवन्मे महामात्यः*
*शक्रस्येव बृहस्पतिः।।98।।*
*एवमेव विपन्नौ ऽसौ*
*दैवादद्य करोमि किम्।*
*मन्ये शून्यमिवाऽऽस्थानमहं*
*तेन विनाऽऽत्मनः।।99।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 8)*
"भक्तिमान, शक्तिमान, महामति महामात्य शकडाल शक्र के सामने वृहस्पति की भांति प्रतीत होता था। दैवयोग से वह चला गया, क्या करूं? उसके बिना मुझे रिक्तता का अनुभव हो रहा है।"
राजा नंद के इन शब्दों ने एक बार सभी सभासदों को मोह विह्वल कर दिया।
*गणिका कोशा, श्रीयक, वररुचि, स्थूलभद्र आदि के जीवन में आगे क्या घटित होता है...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆
💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢⭕💢
आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 76📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*41. मान था भगत...*
टोहाना (हरियाणा) के श्रावक लाला मानसिंहजी शरीर से जितने दुबले-पतले थे, श्रद्धा में उतने ही मजबूत थे। वे शासनभक्त श्रावक थे। जैन तत्त्वज्ञान को सूक्ष्मता से समझते थे। उनको अनेक थोकड़े और शास्त्रों की बातें याद थीं। वे अपने पास बैठने वाले लोगों के सामने भव्य-अभव्य, परीत-अपरीत, सुलभबोधि-दुर्लभबोधि आदि की चर्चा करते रहते थे। साधु-साध्वियों का सान्निध्य प्राप्त होने पर अत्यंत विनम्रभाव से जिज्ञासा करते थे। उनके जीवन में अहं का लेश भी नहीं था। वे *'भगत'* कहलाते थे। हरियाणा में कई दृष्टियों से वे अपनी कोटि के एक ही व्यक्ति थे। उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों को श्रद्धा और ज्ञान की विरासत सौंपने का प्रयत्न किया। उनकी चार पुत्रियों में कमला बाई की इस विषय में अच्छी रुचि है। उन्हें थोकड़ों का भी ज्ञान है। उनका पुत्र ईश्वर भी श्रद्धा के मामले में कमजोर नहीं है। वह धर्मसंघ की सेवा के लिए आधी रात को तैयार रहता है। वैसे पूरे परिवार की धर्मसंघ में गहरी आस्था है।
हरियाणा के तत्त्वज्ञ श्रावकों में अनेक व्यक्तियों का उल्लेख किया जा सकता है। मानसिंहजी उनमें एक थे। यहां कुछ नाम दिए जा रहे हैं—
सम्मचंद जैन, ऊमरा
दिलीपचंद जैन, ऊमरा
कबूलचंद जैन, सिसाय
मानसिंह *'भगत'*, टोहाना
लाला दुर्गादत्त, हांसी
लाला घासीराम, हिसार
लाला विष्णुदयाल, हांसी
शिवचंद्र जैन, कापड़ा
*आचार्य भिक्षु के तेरह श्रावकों में से एक गेरूलालजी व्यास के जीवन प्रसंग* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 76* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
स्थूलभद्र की आंखों के सामने अतीत का चित्र घूमने लगा। श्रीयक के विवाहोत्सव में राजा नंद के सम्मान हेतु निर्मित राजमुकुट, छत्र, चामर, विविध शस्त्र आदि की सूचना पाकर दम्भी वररुचि द्वारा रचा गया षड्यंत्र नरेश नंद के हृदय में महामंत्री शकडाल पर राज्य को छीन लेने का संदेश, राजा के भ्रूविक्षेप में झांकता समग्र मंत्री-परिवार को लील देने वाला विनाशकारी रूप, लघु भ्राता श्रीयक द्वारा नंद के सामने उनके विश्वासी मंत्री की हत्या आदि विविध प्रसंगों की स्मृति से स्थूलभद्र कांप गए। वे विरक्त हुए। संयम पथ अंगीकार करने का निर्णय लेकर लुंचित मस्तक साधुमुद्रा में स्थूलभद्र राजा नंद की सभा में पहुंचे। स्थूलभद्र के विचारों को समझकर जनता आवक् रह गई। श्रीयक ने भी निर्णय को बदलने के लिए उनसे अनुरोध किया पर स्थूलभद्र अपने संकल्प पर दृढ़ थे। वे धीर-गंभीर परिजनों के मोह से विमुख बन अज्ञात दिशा की ओर चले गए। कहीं हमें धोखा देकर गणिका कोशा के भवन में पुनः नहीं पहुंच रहा है, यह सोचकर मगध नरेश प्रासाद के गवाक्ष से आर्य स्थूलभद्र के बढ़ते चरणों पर दृष्टि टिकाए रहे। वृक्षों की पंक्ति के बीच से निर्जन वन की ओर स्थूलभद्र के गमन को देखकर उन्हें अपने चिंतन के प्रति अनुताप हुआ। नागरिकों को कई दिनों तक स्थूलभद्र की स्मृति सताती रही।
अमात्य पद का दायित्व श्रीयक के कंधों पर आया। मगध नरेश जो सम्मान अनुभवी राजनीति कुशल, विश्वासपात्र, राजभक्त, प्रजावत्सल अमात्य शकडाल को प्रदान करता था, वही सम्मान श्रीयक को देने लगा।
महामात्य पद के लिए श्रीयक जैसे समर्थ व्यक्ति की उपलब्धि से राज्य में पुनः चार चांद लग गए, पर महामात्य शकडाल के अभाव में राजा नंद के हृदय में अत्यंत दुःख था। एक दिन शोकसंतप्त मुद्रा में मगध नरेश ने श्रीयक के सामने सभा में मंत्री के गुणों का स्मरण करते हुए कहा
*भक्तिमाञ्शक्तिमान्नित्यं*
*शकटालो महामतिः।*
*अभवन्मे महामात्यः*
*शक्रस्येव बृहस्पतिः।।98।।*
*एवमेव विपन्नौ ऽसौ*
*दैवादद्य करोमि किम्।*
*मन्ये शून्यमिवाऽऽस्थानमहं*
*तेन विनाऽऽत्मनः।।99।।*
*(परिशिष्ट पर्व, सर्ग 8)*
"भक्तिमान, शक्तिमान, महामति महामात्य शकडाल शक्र के सामने वृहस्पति की भांति प्रतीत होता था। दैवयोग से वह चला गया, क्या करूं? उसके बिना मुझे रिक्तता का अनुभव हो रहा है।"
राजा नंद के इन शब्दों ने एक बार सभी सभासदों को मोह विह्वल कर दिया।
*गणिका कोशा, श्रीयक, वररुचि, स्थूलभद्र आदि के जीवन में आगे क्या घटित होता है...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 76📝
*संस्कार-बोध*
*प्रेरक व्यक्तित्व*
*संस्कारी श्रावक*
*41. मान था भगत...*
टोहाना (हरियाणा) के श्रावक लाला मानसिंहजी शरीर से जितने दुबले-पतले थे, श्रद्धा में उतने ही मजबूत थे। वे शासनभक्त श्रावक थे। जैन तत्त्वज्ञान को सूक्ष्मता से समझते थे। उनको अनेक थोकड़े और शास्त्रों की बातें याद थीं। वे अपने पास बैठने वाले लोगों के सामने भव्य-अभव्य, परीत-अपरीत, सुलभबोधि-दुर्लभबोधि आदि की चर्चा करते रहते थे। साधु-साध्वियों का सान्निध्य प्राप्त होने पर अत्यंत विनम्रभाव से जिज्ञासा करते थे। उनके जीवन में अहं का लेश भी नहीं था। वे *'भगत'* कहलाते थे। हरियाणा में कई दृष्टियों से वे अपनी कोटि के एक ही व्यक्ति थे। उन्होंने अपने पुत्र-पुत्रियों को श्रद्धा और ज्ञान की विरासत सौंपने का प्रयत्न किया। उनकी चार पुत्रियों में कमला बाई की इस विषय में अच्छी रुचि है। उन्हें थोकड़ों का भी ज्ञान है। उनका पुत्र ईश्वर भी श्रद्धा के मामले में कमजोर नहीं है। वह धर्मसंघ की सेवा के लिए आधी रात को तैयार रहता है। वैसे पूरे परिवार की धर्मसंघ में गहरी आस्था है।
हरियाणा के तत्त्वज्ञ श्रावकों में अनेक व्यक्तियों का उल्लेख किया जा सकता है। मानसिंहजी उनमें एक थे। यहां कुछ नाम दिए जा रहे हैं—
सम्मचंद जैन, ऊमरा
दिलीपचंद जैन, ऊमरा
कबूलचंद जैन, सिसाय
मानसिंह *'भगत'*, टोहाना
लाला दुर्गादत्त, हांसी
लाला घासीराम, हिसार
लाला विष्णुदयाल, हांसी
शिवचंद्र जैन, कापड़ा
*आचार्य भिक्षु के तेरह श्रावकों में से एक गेरूलालजी व्यास के जीवन प्रसंग* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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👉 *पूज्य प्रवर का आज का लगभग 6 किमी का विहार..*
👉 *आज का प्रवास - लीलवा, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)*
👉 *आज के विहार के दृश्य..*
दिनांक - 08/06/2017
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