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#Amazing 😇 आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज जब अपने गृहस्थ में थे तब महाराज श्री खेती के समय बैलों को ज़यादा कष्ट न हो इसीलिए खुद के कंधो पे हल लगाकर खुद ही खेती किया करते थे #AcharyaShantisagar
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प्रश्न: अरिहंत और तीर्थंकर में क्या अंतर होता है?, अरिहंत और तीर्थंकर कौन होते है? #CommonQn अरिहंत भगवान् के उदाहरण: राम, हनुमान, भरत, कुम्भकर्ण, मेघनाथ, बाहुबली इत्यादि! 🙂🔥
उत्तर: जिन्होंने चार घतिया कर्मो का नाश करदिया है तथा केवलज्ञान प्राप्त हो गया है उनको अरिहंत कहते है! सभी केवली (जिन्हें केवलज्ञान हुआ हैं) अरिहंत होते है - जैसे ही जीव को केवल ज्ञान प्राप्त होजाता है वो केवली हो जाते है और अरिहंत कहलाते है, वे अरिहंत जिनके कल्याणक नहीं होते वे सामान्य अरिहंत कहलाते है, सभी केवली अरिहंत ही होते है चाहे तीर्थंकर हो या न हो, तीर्थंकर तो एक नाम कर्म के उदय से होते है जो की विशेष सोलह कारण भावनाओ के भाने से तीर्थंकर प्रकर्ति का बंध होता है और तीर्थंकर [तीर्थ + कर = धर्मं तीर्थ को चलाने वाले]. हर जीव को मुक्त होने से पहेले अरिहंत अवस्था जरुर प्राप्त होता है!!
अरिहंत अनंत हो सकते है, जबकि तीर्थंकर एक कल में 24 ही होते है तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते है. तीर्थंकर जन्म से 4 ज्ञान के धारी होते है, तीर्थंकरों का समोशरण लगता है जबकि अरिहंतो का समोशरण नहीं लगता गंधकुटी लगती है! अरिहंत भगवान् के उदाहरण: राम, हनुमान, भरत, बाहुबली, अनंतवीर्य इत्यादि!
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News in Hindi
All I can आप लोगों ने ऐसी Explanation नहीं पढ़ी होगी!!ऐसे पवित्र श्लोक का अर्थ पूज्य #मुनिक्षमासागर जी द्वारा जो अक्सर और अधिकांशत: हम पूजन में प्रयुक्त करते है || #MuniKshamaSagar
उदकचंदनतन्दुलपुष्पकै, श्चरुसुदीपसुधुपफलार्घकै:!
धवलमंगलगानरवाकुले,जिनग्रहे जिननाथमहंयजे!!
*उदक* का मतलब *जल* होता, *चंदन* का मतलब *चंदन* और *तन्दुल* का मतलब *चावल(अक्षत)*, *कै* अर्थात *इनके द्वारा* *चरु* का मतलब होता है_ नैवेध(खाने-पीने की सामग्री को नैवेध बोलते है)* और *सुदीप*(दीपक कौन सा चिटक रंगी हुई या दीपक जलता हुआ) (और तिलोयपन्नति ग्रन्थ में जाओ तो कहते है *ज्योति उसमे से निकल रही है ऐसा दीप-रत्नदीप,रत्नों का दीप वो चढ़ाएंगे सबसे श्रेष्ठ*) *सुधूप* ऐसा नही कि उसमे से गन्ध ही नही आ रही हो। सुधूप कहते है जो कि पूरे मंदिर के वातावरण को सुगन्धित कर दे ऐसी धूप लाया हूँ) फल- *फल* के द्वारा और *अर्घकै* *अर्घ और इन सबके द्वारा*(अर्घ कोई अलग चीज है क्या,नही सबको मिला दो लेकिन वे सब मिलना चाहिये,वे अलग अलग दिखते है नही तो।)
जैसे कि सोप होवे,खसखस होवे,बुरा होवे,बादाम होवे यह सब चीज मिला दे फिर भी ठंडाई का स्वाद नही आएगा,ये सब ऐसी मिल जाये कि फिर एकमेक हो जाये अलग अलग नही दिखे तो कहते है *ऐसे ही अपने भावों की चाशनी में इन आठो को मैं पागु,तब बनेगा अर्घ*।)
_अर्घ के मायने होता है मूल्यवान और अनर्घ्य के मायने होता है मूल्य, मांग रहे है अमूल्य और चढ़ा रहे है मूल्यवान🔅*_
_(सस्ता चढाओगे सस्ता मिलेगा क्यों क्योकि हिम्मत तो ज्यादा की है और कम चढ़ा रहे है इसको कहते है सस्ता..!!)_
_*भगवान को चढ़ा रहा हूँ अर्थात अपनी प्रिय वस्तु का त्याग कर रहा हूँ,वो तो माली के जाना है ऐसा नही..!!*_
_तब फिर इन आठो द्रव्यों से और अर्घ के द्वारा_
_और आगे कहते है *मंदिर कैसा जहाँ धवल अर्थात उज्जवल मंदिर है* सन्नाटा खींचा हो ऐसी जगह नही और जहाँ मंगल गान का रव(रव का अर्थ होता है ध्वनि कुले अर्थात व्याप्त)_
*_जहाँ मंगल गान की ध्वनि व्याप्त हो रही है सब जगह....!!_*
_जिननाथ ऐसे *जिनेंद्र भगवान के आलय में*...!!_
_यज धातु पूजा के अर्थ में प्रयुक्त होती है...!!_
*_अर्थात इन अष्ट द्रव्य के द्वारा उज्ज्वल मंगल गान से युक्त जिनालय में जिनेंद्र भगवान की पूजा शुरू कर रहा हूँ...!!_*
_और पता है *हम इतनी बार क्यों चढ़ाते है* क्योकि किसी भी तरह से मन तो लगें, *दस बार पढेंगे एकाध बार तो सही हो जायेगा* इसके लिये है ये ऐसा नही कि सीधा एक बार चढ़ा दिया...!!_
*_9 बार चूक भी जाऊँगा तो भी एक बार तो मन लग ही जायेगा...!!_*
_अपन 6 प्रकार की पूजा करते है इसीलिये 6 तरह के अर्घ चढ़ाते है...!!_
*✍🏻मेरे ऋषिवर श्री क्षमासागर जी
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जो भी आत्मा इस पंचमकाल में जन्म लेती है वो मिथ्यादर्शन के साथ ही जन्म लेती है फिर चाहे वो आचार्य कुंद-कुंद स्वामी हो, आचार्य आदिसागर जी, आचार्य शान्तिसागर जी हो, आचार्य विद्यासागर जी..इसलिए साधू का जन्म दिन का उत्सव नहीं मनाया जाता और ये बड़ा ही गंभीर विषय है मिथ्यादर्शन के साथ हो जन्म ले लिया क्या मिथ्यादर्शन के साथ ही मरना चाहोगे...और बाद में जीव सम्यक आदि प्राप्त करलेता है और पूज्य हो सकता है तो दीक्षा दिवस मन सकते हो और वही सच्चा जन्म है जिस दिन मुनि दीक्षा हुई थी! दीक्षा के दिन एक बार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा था "दीक्षा की तिथि याद मत रखो बल्कि याद ये रखो दीक्षा क्यों लो थी और उस दिन क्या भाव थे!!" इसी तरह जन्म की तिथि ये ये याद हो आना चाहिए इतना समय व्यतीत हो गया...जीवन हर समय निकलता जा रहा है....क्या कर रहो! क्या सोच रहे हो! क्या करने का मन में है! ••• #मुनिसुधासागर जी महाराज से प्रवचन से... #MuniSudhasagar
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